सुरक्षा को लेकर पीडीपी के बाद पंचायत प्रतिनिधि भी चिल्लाए

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सुरेश डुग्गर । Dec 22 2018 12:57PM

पिछले हफ्ते पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के संरक्षक मनोनीत होने के बाद सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने अपने पार्टीजनों के संरक्षक की भूमिका को पूरी तरह निभाने का संकेत देते हुए उनकी सुरक्षा में कटौती पर एतराज जताया था।

कश्मीर में सुरक्षा को लेकर मामला तूल पकड़ता जा रहा है। पहले ही पीडीपी के नेताओं ने राज्यपाल पर उनके नेताओं की सुरक्षा में कटौती कर उनकी जान खतरे में डालने का आरोप लगाया था कि अब नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि भी व्यक्तिगत सुरक्षा की मांग कर माहौल को गर्माने लगे हैं। पिछले हफ्ते पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के संरक्षक मनोनीत होने के बाद सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने अपने पार्टीजनों के संरक्षक की भूमिका को पूरी तरह निभाने का संकेत देते हुए उनकी सुरक्षा में कटौती पर एतराज जताया था। उन्होंने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को पत्र लिखकर पीडीपी के सभी नेताओं और पूर्व विधायकों के सुरक्षा कवच को पहले जैसा मजबूत बनाने के लिए हस्तक्षेप करने के लिए कहा है।

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संरक्षक बनने के बाद मुजफ्फर हुसैन बेग ने पहली बार सक्रियता दिखाई और पीडीपी के पूर्व विधायकों, पूर्व मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं की सुरक्षा में कटौती के खिलाफ राज्यपाल को खत लिखा। राज्यपाल को संबोधित अपने पत्र में बेग ने लिखा है कि मैं आपको बड़ी उम्मीद से यह खत लिख रहा हूं। मैं पार्टी के पूर्व विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की सुरक्षा की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। हमारे बहुत से नेताओं और पूर्व विधायकों को प्रदान किए गए वाहन व सुरक्षाकर्मी वापस ले लिए गए हैं। जिनके पास हैं, उन्हें कंडम व नकारा वाहन दिए गए हैं।

''सुरक्षाकर्मियों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है। यह सिर्फ पीडीपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही हुआ है। मुझे यकीन है कि आप मुझसे सहमत होंगे कि कश्मीर के हालात सामान्य नहीं हैं। यहां सुरक्षा और कानून व्यवस्था का मसला है। मैं आपसे विनम्र आग्रह करता हूं कि आप इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए अधिकारियों को निर्देश देकर हमारी पार्टी की चिंता को दूर करेंगे। मैं जब जम्मू आऊंगा तो मुझे पूरी उम्मीद है आपसे भेंट करने का मौका मिलेगा।''

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अभी यह मामला गर्माया ही था कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के सीधे निशाने पर रहने वाले पंच-सरपंचों ने भी इस बार निजी सुरक्षा की मांग कर डाली। गत वर्षों में 16 पंच-सरपंचों की आतंकी हमलों में मौत से भविष्य के प्रति आशंकित पंचायत प्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उम्मीदें हैं। दिल्ली में इस सप्ताह बुधवार को प्रधानमंत्री से मिले पंचायत प्रतिनिधियों ने आतंकवादियों की धमकियों से उपजे हालात के बारे में रूबरू कराया। उन्होंने उम्मीद जताई है कि केंद्र उनकी सुरक्षा को अहमियत देगा।

जम्मू कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस का प्रतिनिधिमंडल प्रधान शफीक मीर के नेतृत्व में बुधवार को प्रधानमंत्री से मिला था। राज्य में इस माह संपन्न हुए पंचायत चुनाव में ग्रामीणों ने आतंकियों की धमकियों को दरिकनार कर राज्य की 4490 पंचायतों के 40 हजार प्रतिनिधियों को चुना है। पंचायत चुनाव में 74 फीसद मतदान हुआ था। कश्मीर के पंचायत प्रतिनिधियों का सुरक्षा के प्रति गंभीर होना स्वाभाविक है। वर्ष 2011 में पंचायत चुनाव के बाद से 16 पंच-सरंपच आतंकी हमलों में मारे गए हैं। इस बार भी ग्रामीण आतंकियों, अलगाववादियों की धमकियों को नजरअंदाज कर और चुनाव का बहिष्कार करने वाले दलों को नकार कर आगे आए हैं।

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प्रधानमंत्री से मिले शफीक मीर का कहना है कि आतंकियों की धमकियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ग्रामीण प्रतिनिधि लोगों के बीच जाकर काम करवा सकें, इसके लिए उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त होना जरूरी है। राज्य में पंच-सरपंचों की चुनौतियों के बारे में प्रधानमंत्री पहले से जानते हैं। उन्होंने विश्वास दिलाया है कि लोगों के काम हो सकें, इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों को सहयोग मिलेगा। हम पंचायत चुनाव करवाने की मांग को लेकर कुछ साल पहले प्रधानमंत्री से मिले थे। ऐसे में अब हमारे 48 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मिलकर राज्य में पंचायत चुनाव की कामयाबी के लिए आभार जताया है।

सरपंच अल्ताफ ठाकुर कश्मीर के पंचायत प्रतिनिधियों की सुरक्षा को अहम मानते हैं। कश्मीर में जीते 2200 पंचायत प्रतिनिधियों में से 1200 सरपंच आतंकवाद का गढ़ माने जाने दक्षिण कश्मीर से जीतकर आए हैं। उन्होंने आतंकवादियों, अलगाववादियों की धमकियों को नकार कर कश्मीर में ग्रामीण लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया है। ऐसे में उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त होना अहम है। अब तक 200 पंचायत प्रतिनिधियों को आवास उपलब्ध कराया है। पंच-सरपंचों की सुरक्षा का मुद्दा जम्मू संभाग में अहमियत रखता है। जम्मू कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के प्रधान अनिल शर्मा का कहना है कि आतंकवाद ग्रस्त इलाकों में सुरक्षा का बंदोबस्त होना जरूरी है। ऐसा न होने के स्थिति में ग्रामीण प्रतिनिधियों के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा। जिन्हें खतरा है, उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए।

-सुरेश डुग्गर

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