पनामा पेपर्स से हुए विस्फोट ने सरकार पर दबाव बढ़ाया

नमितांशु वत्स । Apr 22, 2016 12:20PM
दस्तावेज़ों का सम्बन्ध पनामा के एक ऐसे लॉ फर्म से है, जो अन्य देशों के नागरिकों को पनामा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, बहामा, सेशेल्स, हांगकॉन्ग जैसे क्षेत्रों में गुप्त तरीके से कम्पनी खुलवाने में मदद करती है और उन्हें बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के साथ कम्पनियों की देखरेख का ज़िम्मा भी लेती है।

भारत में आज के राजनीतिक माहौल में जब विपक्ष बार बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को काले धन से जुड़े उनके चुनावी वादे की याद दिलाने से नहीं चूकता, 'पनामा पेपर्स' के वैश्विक विस्फोट ने सरकार को इस बाबत और अधिक चौकन्ना होने का दबाव बढ़ा दिया है। देश की बदहाली में काले धन पर आधारित एक समानांतर भूमिगत वित्तीय व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अपराध के विकसित ढाँचे का बड़ा हाथ रहा है और लोग इस परिस्थिति से लम्बे समय से परिचित हैं। कुछ साल पहले विकीलीक्स और अब पनामा पेपर्स से हुए खुलासों के सामने आने के बाद फिर से लोगों का ध्यान काले धन की समस्या के निराकरण की ओर गया है।

पनामा पेपर्स से तात्पर्य उन एक करोड़ से भी ज़्यादा कम्प्यूटर दस्तावेज़ों से है, जो किसी अज्ञात माध्यम से दुनिया भर में मीडिया के हाथ लगा है। इन दस्तावेज़ों का सम्बन्ध पनामा के एक ऐसे लॉ फर्म से है, जो अन्य देशों के नागरिकों को पनामा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, बहामा, सेशेल्स, हांगकॉन्ग जैसे क्षेत्रों में गुप्त तरीके से कम्पनी खुलवाने में मदद करती है और उन्हें बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के साथ कम्पनियों की देखरेख का ज़िम्मा भी लेती है।

मोसाक फोंसेका नामक क़ानूनी सेवा प्रदान करने वाली संस्था द्वारा निर्मित कम्पनियों में अधिकांश छद्म अस्तित्व की होती हैं जिनके जरिये अन्य देशों से लाये गये काले धन को सफ़ेद दिखाने का कारोबार होता है। पनामा पेपर्स के रहस्योद्घाटन में दो लाख से भी ज़्यादा विदेशी कम्पनियों को निबन्धित पाया गया है। ये कम्पनियाँ दुनिया के हरेक हिस्से से जुड़ी हैं। 1970 के दशक से लेकर हाल तक के कई बड़े लोगों का नाम इसमें सामने आया है। चीन, रूस, अर्जेंटीना, पाकिस्तान, ब्रिटेन, आइसलैण्ड, यूक्रेन, सऊदी अरब अमीरात, अराक, सूडान जैसे देशों के वर्तमान राजनीतिकों, उनके सम्बन्धियों, मित्रों के नाम से निबंधित कम्पनियों के उजागर होने के साथ कर-चोरी, भ्रष्टाचार, अपराध से पैदा हुए काले धन के वैश्विक तंत्रजाल पर रोशनी पड़ी है। आशंका यह भी है कि पनामा जैसे कर-पनाहगाहों का इस्तेमाल जघन्य प्रकार के अपराधों के वैश्विक तंत्र को चलाने में भी होता रहा है। जो देश, संस्था या व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबन्धित हैं, या रहे हैं वो भी पनामा की गुप्त कानूनी प्रक्रियाओं के सहारे अपना कारोबार चलाते रहे हैं। अर्थात टैक्स पनाहगाहों की आड़ में, अपराध से भी प्राप्त धन को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दंड से बचाने का खेल धड़ल्ले से होता रहा है।

पनामा पेपर्स मामले ने वैश्विक राजनीतिक पटल पर जैसे तूफ़ान खड़ा कर दिया है। एक तरफ, आइसलैण्ड के प्रधानमन्त्री को जहाँ इस्तीफ़ा देना पड़ा है, वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को अपने पिता द्वारा खोली गई कम्पनी के शेयरों से लाभान्वित होने के लिये राजनीतिक फ़ज़ीहत झेलनी पड़ रही है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पत्नी के भाई का नाम इसमें होने को लेकर लोग किस हद तक नाराज़ हैं, इसका सही अंदाज़ा लगाने में थोड़ा वक़्त लगेगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन पनामा पेपर्स के खुलासे को पश्चिमी देशों की ओर से उनके और उनके देश के खिलाफ साजिश करार दे रहे हैं। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन का नाम भी इसमें शामिल बताया जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इसमें शामिल भारतीय लोगों एवं कम्पनियों से जुड़े दस्तावेज़ों की जाँच के लिये एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर पंद्रह दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है। विदित रहे कि पनामा की इस लॉ फ़र्म से प्राप्त दस्तावेज़ों की संख्या इतनी अधिक है कि इसका अध्ययन पूरा होने में काफ़ी समय लग सकता है। सार्वजनिक हुई जानकारियाँ पहाड़ के एक छोटे से हिस्से के समान ही हैं अभी ढेरों सूचनायें आनी बाकी हैं। भारत जैसे देश के लिये, जहाँ की सरकार के नेता ने अपने चुनाव प्रचार में काले धन को एक बड़ा मुद्दा बनाया था, पनामा पेपर्स के अध्ययन से निकलने वाली सूचनाओं का बहुत महत्व है। इस देश के लिये, यह एक बड़ा मौक़ा है, जब एक विकासशील देश अपने यहाँ से निकले हुये काले धन के विदेशी कर पनाहगाहों में पहुँचने से जुड़ी जानकारियाँ हासिल करने के लिये अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में तेज़ी लाने की माँग ज़ोरशोर से कर पायेगा।

राष्ट्रीय स्तर पर पनामा पेपर्स उद्घाटन का यह समय सम्भवतः सबसे अनुकूल है। एक तरफ़ सरकार काले धन को लेकर काफ़ी सक्रिय है तो दूसरी तरफ़ इस भूचाल ने काले धन को लेकर वैश्विक जनमत को जागरूक कर दिया है। पिछले तीन दशकों से हुए आर्थिक वैश्विकरण और उदारीकरण ने दुनिया को आज एक बेहद ही क्लिष्ट आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया है। दुनिया भर के अपराधी तत्व और नकारात्मक प्रवृत्तियाँ भी आपस में गहरी जुड़ चुकी हैं इसलिये, वैश्विक विस्तार वाली ऐसी समस्याओं से निबटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयास और प्रतिबद्धता की जरूरत है।

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