‘फुटबाल’ क्यों बना दी गई हंडवाड़ा छेड़छाड़ की पीड़िता

आखिर उस 16 साल की नाबालिग युवती का दोष क्या था कि उसे सेना, पुलिस और अलगाववादियों के बीच ‘फुटबाल’ बना दिया गया। क्या सच में वह दोषी है अगर ऐसा नहीं है तो उसे पिछले कई दिनों से पुलिस स्टेशन में ‘कैद’ करके क्यों रखा गया था। क्यों बार-बार उस पर सेना और पुलिस के ‘पक्ष’ में कथित तौर पर बयान देने के लिए दबाव बनाया गया। सवालों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो जाता। सारे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर सेना और पुलिस को इतनी क्या जल्दी पड़ी थी कि उन्होंने पीड़िता को कैमरे के सामने बोलने पर मजबूर किया और फिर उसके वीडियो को बतौर सबूत सारी दुनिया में फैला दिया।
मामले में सबसे संदिग्ध भूमिका सेना की मानी जा रही है जिसने पीड़िता का वीडियो बतौर सबूत पत्रकारों को भिजवाने में जरा भी देर नहीं की। जिस दिन हंडवाड़ा के मुख्य चौक में सेना की गोली से दो युवक मारे गए और एक महिला की बाद में मौत हुई तो देर शाम सेना ने पीड़िता का वीडियो पत्रकारों को बतौर विज्ञप्ति भिजवा दिया। बस दो लाइन में यही लिखा गया कि यह उस युवती का वक्तव्य है जिसके साथ कथित छेड़छाड़ को लेकर हिंसा फैली है। वीडियो में पीड़ित युवती का बयान कश्मीरी भाषा में था। अगर उसके वक्तव्य को गौर से सुनें तो वह जिन दो युवकों पर छेड़खानी करने का आरोप लगाती थी उसमें ये एक यूनिफार्म में था, वह भी कहती थी। पर किसी ने उसके इन शब्दों पर ध्यान नहीं दिया।
सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर किसने इस वीडियो को तैयार किया और वह भी इतनी जल्दी। किसके कहने पर। और क्यों। सेना ने इसे बतौर सबूत पत्रकारों को क्यों बांटा जबकि कानून कहता है कि पीड़िता के किसी भी बयान को सार्वजनिक न किया जाए और जब वह नाबालिग हो तो उसके साथ उसके घर वाले या उसके वकील होने चाहिए।
पर किसी को इन बातों से कोई लेना देना नहीं था। इस बयान की सच्चाई फिलहाल संदिग्ध है। हालांकि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद एक बार फिर पीड़ित युवती को ‘फुटबाल’ बनाते हुए कोर्ट में पेश किया गया और उसका बयान रिकार्ड किया गया। कोर्ट में दोहराए गए बयान से उसकी मां और सिविल सोसायटी के लोग सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं कि पुलिस के दबाव के कारण पीड़िता बयान को दोहरा रही है।
कोर्ट में उसकी मां द्वारा दाखिल की गई अर्जी में आरोप लगाया गया था कि पीड़िता, उसके अब्बू और मौसी को पुलिस ने कई दिनों से ‘हिरासत’ में रखा हुआ है। हालांकि कोर्ट ने पुलिस से यह भी पूछा था कि आखिर किस कानून के तहत उन्हें ‘हिरासत’ में रखा गया है। इस पर पुलिस ने बयान दिया था कि वे सिर्फ उसे सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं।
कोर्ट ने शनिवार को पुलिस को निर्देश दिए थे कि छेड़छाड़ की शिकार हुई लड़की के मजिस्ट्रेट के सामने बयान करवाए जाएं। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में छेड़छाड़ की शिकार हुए लड़की का वीडियो जारी किए जाने के खिलाफ एक पीआईएल दाखिल की गई थी। उसके परिवार ने नए आरोप लगाए थे। परिवारवालों का कहना था कि लड़की पर दबाव बनाकर उसका वह बयान लिया गया था जिसमें उसने छेड़छाड़ के लिए सुरक्षा बलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया था। इसके साथ ही परिवार ने कोर्ट पहुंचकर मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी।
बता दें कि इस हफ्ते की शुरुआत में इस छात्रा से एक जवान द्वारा छेड़छाड़ किए जाने का मामला सामने आया था। इसी के बाद से पूरे कश्मीर में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इनमें अभी तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल हुए हैं। बाद में इस लड़की का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह सेना के जवान द्वारा छेड़छाड़ की बात से इन्कार कर रही थी।
इस लड़की की मां ने कहा था कि मेरी बेटी सिर्फ 16 साल की है और जब उसका बयान दर्ज किया गया था तब वह पुलिस स्टेशन में अकेली थी। पुलिस ने वह बयान देने के लिए उस पर दबाव बनाया था। एक सिविल सोसायटी समूह ने छात्रा के परिवार के लिए शनिवार को ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, लेकिन पुलिस की तरफ से इसकी इजाजत नहीं दी गई। रिपोर्टरों से बात करते हुए लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने परिवार को बताए बिना उनकी बेटी को हिरासत में लिया था और उसका चेहरा ढके बिना उसका विडियो स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया और उसकी पहचान जाहिर कर दी।
लड़की की मां ने कहा कि मंगलवार को लड़की जब स्कूल से घर लौट रही थी तो वह बाथरूम में गई और वहां सेना के एक जवान ने उसका पीछा किया। जब उसने बाथरूम में इस जवान को देखा तो वह चिल्लाई जिससे नजदीकी दुकानदारों का ध्यान उस तरफ गया। पुलिस भी वहां पर आई लेकिन तब तक सेना का जवान भाग चुका था। उसके बाद हमारी जानकारी के बिना उसे थाने ले जाया गया था। हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और मामले में स्वतंत्र जांच की मांग की है। हम नहीं चाहते कि पुलिस या आर्मी इस मामले की जांच करें।
वैसे मामले पर पुलिस और सेना कुछ बोलने से अब कतरा रही हैं। सेना प्रवक्ता का कहना था कि वे मामले की जांच में जुटे हैं अतः ऐसे वक्त पर कोई भी बयान जांच को प्रभावित कर सकता है और पुलिस अधिकारी कहते थे कि उन्होंने बाप-बेटी को सुरक्षा प्रदान कर रखी है न कि हिरासत में ले रखा है।
अर्थ साफ हुआ। पीड़िता से लिए गए बयान के बाद वह फुटबाल बन चुकी है। उसके लिए आगे खाई और पीछे कुआं वाली स्थिति पैदा हो चुकी है। एक तरफ सेना और पुलिस है तो दूसरी ओर अलगाववादी नेता। आतंकी खतरा भी उस पर अब मंडराने लगा है।
इतना जरूर था कि पीड़िता के वीडियो को जारी करने वाली पुलिस ने पीड़िता के बयान पर बहुत दिनों के बाद कार्रवाई की और उन दो में से अब एक ही युवक को हिरासत में लिया गया है जिनके बारे में युवती का कहना था कि उन्होंने उसे डराया था। पर अभी भी वह एक युवक फरार है जिसके बारे में युवती कहती थी कि वह यूनिफार्म में था। ऐसा भी नहीं है कि गिरफ्तार किए गए हिलाल अहमद को पुलिस ने खुद ही पकड़ लिया था बल्कि सिविल सोसायटी की ओर से बनने वाले दबाव के बाद उसे हिरासत में लिया गया।
कोई चाहे अब जो भी कहता रहे, पर सच्चाई यह है कि पीड़ित युवती कश्मीर की मलाला न बन जाए यह डर सभी को लगने लगा है क्योंकि सेना, पुलिस और अलगाववादियों के बीच फुटबाल बनाई जा चुकी पीड़ित युवती की जान को भी खतरा पैदा हो चुका है इससे कोई इंकार नहीं करता है। ऐसे में उसकी सुरक्षा कौन करेगा सबसे बड़ा सवाल है। यह सवाल इसलिए भी उठ खड़ा हुआ है क्योंकि अतीत के मामलों को देखा जाए तो आतंकियों ने हमेशा मुखबिरों की हत्याएं उनकी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ कर की हैं। ऐसे में पीड़ित युवती के परिवार के लिए उसकी सलामती सबसे बड़ा सवाल भी बन चुकी है।
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं)
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