क्या न्याय सिर्फ हिंदू महिलाओं को ही मिलेगा

[email protected] । Apr 6 2016 12:47PM

मेरा मूल प्रश्न यही है कि क्या इस देश में न्याय सिर्फ हिंदू औरतों को ही मिलेगा? मुस्लिम औरतों को क्यों नहीं? उनका क्या गुनाह है कि उनके साथ ढोरों-जैसा बर्ताव किया जाए? क्या वे भारत मां की बेटियां नहीं हैं?

शिंगनापुर के शनि मंदिर में औरतों के प्रवेश की मांग पर मुंबई के उच्च न्यायालय ने मुहर लगा दी है। उन्हें न्याय मिल रहा है लेकिन क्या उन करोड़ों औरतों को भी इस देश में कभी न्याय मिलेगा, जिनकी गर्दन पर तलाक की तलवार लटकी रहती है। किसी भी मुसलमान औरत को उसका आदमी जब चाहे जैसे भी तलाक कर देता है। वह तीन बार ‘तलाक-तलाक-तलाक’ बोल दे तो तलाक हो जाता है। बहुपत्नी प्रथा भी प्रचलित है।

यहां मेरा मूल प्रश्न यही है कि क्या इस देश में न्याय सिर्फ हिंदू औरतों को ही मिलेगा? मुस्लिम औरतों को क्यों नहीं? उनका क्या गुनाह है कि उनके साथ ढोरों-जैसा बर्ताव किया जाए? क्या वे भारत मां की बेटियां नहीं हैं? हमारी संसद ऐसे कानून क्यों नहीं बनाती, जो मुस्लिम औरतों को भी अपने मर्दों के समान अधिकार, सम्मान और स्वतंत्रता दे? अब उत्तराखंड की एक बहन शायरा बानो ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाकर मांग की है कि तलाक के कानून को बदला जाए। ऐसी मांग करने वाली शायरो बानो पहली मुस्लिम महिला नहीं है। उत्तरप्रदेश के कुछ मुस्लिम महिला संगठनों ने पहले भी यह मांग उठाई थी। वे यह मांग भी उठा रहे हैं कि मुस्लिम महिलाओं को पुरोहिताई के अधिकार भी मिलें। वे निकाह आदि पढ़वा सकें।

इस तरह के कई मुद्दों पर विचार करने के लिए भारत सरकार ने 2012 में विद्वानों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने भी मुस्लिम औरतों के तलाक, मुआवजे, बहुविवाह आदि समस्याओं पर दो-टूक राय दी थी। लेकिन भारत सरकारों में इतना दम नहीं है कि वे उन सुधारों और सुझावों को लागू कर दें या कानून बना दें। वे सांप्रदायिक ताकतों से डरती हैं। हमारी तथाकथित ‘सेक्युलर’ सरकारों से ज्यादा दमदार सरकारें तो उन दर्जन भर बड़े मुस्लिम देशों की सरकारें हैं, जिन्होंने ‘त्रिशूल तलाक’ पर प्रतिबंध लगा रखा है। भारत क्या अपने आप को सऊदी अरब, पाकिस्तान और ईरान से भी ज्यादा कट्टर मुस्लिम राष्ट्र सिद्ध करना चाहता है? उसकी यह चाहत ही उसके सेक्युलरिज्म को शुद्ध पाखंड सिद्ध करती है। दुर्भाग्य है कि हमारे देश में मुसलमानों का कोई समझदार बड़ा नेता अभी तक उभर नहीं पाया। क्या वजह है कि इस देश में आरिफ खान एक ही है? शाह बानो के लिए लड़ने वाला कोई दूसरा आरिफ खान सामने क्यों नहीं आता? कल शाह बानो थी, आज शायरा बानो है।

भारत का संविधान सभी नागरिकों के लिए समान आचार संहिता की बात करता है। लेकिन मजहब के नाम पर कुछ लोगों को ऐसी छूट मिली हुई है कि जिसमें संविधान की धज्जियां उड़ जाती हैं। अब समान आचरण के नाम पर पुणे के त्रयंवकेश्वर मंदिर में नया पाखंड शुरु हुआ है। वहां औरतों के साथ-साथ अब मर्दों पर भी ‘गर्भगृह’ में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है याने मर्दों को औरतों के बराबर कर दिया गया है। यह दोहरी मूर्खता है। यह अदालत को चकमा देना है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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