नेहरा और हरभजन ने बताया, क्यों थूक व पसीने की जगह नहीं ले सकती वेसलीन

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पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज आशीष नेहरा और स्पिनर हरभजन सिंह को लगता है कि गेंद को चमकाने के लिये थूक का इस्तेमाल ‘जरूरी’ है। पूर्व सलामी बल्लेबाज आकाश चोपड़ा हालांकि इस विचार से सहमत हैं लेकिन वह जानना चाहते हैं कि सीमा कहां तक होगी।

नयी दिल्ली।अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) जहां कोविड-19 महामारी के बाद वायरस को फैलने से रोकने के लिये गेंद पर कृत्रिम पदार्थ के इस्तेमाल को वैध करने पर विचार कर रही है, वहीं भारत के कुछ क्रिकेटरों का मानना है कि थूक और पसीना ऐसी चीजें हैं जिन्हें पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज आशीष नेहरा और स्पिनर हरभजन सिंह को लगता है कि गेंद को चमकाने के लिये थूक का इस्तेमाल ‘जरूरी’ है। पूर्व सलामी बल्लेबाज आकाश चोपड़ा हालांकि इस विचार से सहमत हैं लेकिन वह जानना चाहते हैं कि सीमा कहां तक होगी।

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चर्चायें हालांकि शुरूआती चरण में हैं लेकिन सवाल पूछे जा रहे हैं कि अगर गेंद से छेड़छाड़ को वैध किया जाता है तो कौन से कृत्रिम पदार्थों का इस्तेमाल किया जा सकता है। तो क्या यह जेब में रखा बोतल का ढक्कन होगा जिससे गेंद की एक तरह को खुरचा जा सके या फिर गेंद को चमकाने के लिये वैसलीन (जॉन लीवर द्वारा मशहूर किया गया) या फिर चेन जिपर? नेहरा ने कृत्रिम पदार्थों के इस्तेमाल के विचार को पूरी तरह से खारिज करते हुए  कहा, ‘‘एक बात ध्यान रखिये, अगर आप गेंद पर थूक या पसीना नहीं लगायेंगे तो गेंद स्विंग नहीं करेगी। यह स्विंग गेंदबाजी की सबसे अहम चीज है। जैसे ही गेंद एक तरफ से खुरच जाती है तो दूसरी तरफ से पसीना और थूक लगाना पड़ता है। ’’ उन्होंने फिर समझाया कि कैसे वैसलीन से तेज गेंदबाजों की मदद नहीं हो सकती।

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नेहरा ने कहा, ‘‘अब समझिये कि थूक की जरूरत क्यों पड़ती है? पसीना थूक से ज्यादा भारी होता है लेकिन दोनों मिलाकर इतने भारी होते हैं कि ये रिवर्स स्विंग के लिये गेंद की एक तरफ को भारी बनाते हैं। वैसलीन इसके बाद ही इस्तेमाल की जा सकती है, इनसे पहले नहीं। क्योंकि यह हल्की होती है, यह गेंद को चमका तो सकती है लेकिन गेंद को भारी नहीं बना सकती। ’’ हरभजन भी इस बात से सहमत थे कि थूक ज्यादा भारी होता है और अगर किसी ने ‘मिंट’ चबाई हो तो यह और ज्यादा भारी हो जाता है क्योंकि इसमें शर्करा होती है। लेकिन जब कृत्रिम पदार्थ के इस्तेमाल की बात है तो वह जानना चाहते हैं कि इसके विकल्प क्या हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि ‘मिंट’ को मुंह में डाले बिना ही इस्तेमाल किया जाये। शर्करा के थूक में मिलने से यह गेंद को भारी बनाता है।

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खुरची हुई गेंद भी स्पिनरों के लिये अच्छी होती है जिससे इसे पकड़ना बेहतर होता जबकि चमकती हुई गेंद ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन मेरा सवाल है कि अगर आप अनुमति देते हो तो इसकी सीमा क्या होगी? ’’ वहीं चोपड़ा ने कहा कि आईसीसी जब तक यह नहीं बताती कि कृत्रिम पदार्थ क्या होंगे, तब तक कुछ भी कहना बेकार है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे हमेशा लगता है कि ‘मिंट’ के इस्तेमाल में समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन अब वे इसे भी अनुमति नहीं देना चाहते। लेकिन अगर आप नियम बदलोंगे तो फिर उन्हें नाखून और वैसलीन का इस्तेमाल करने दीजिये लेकिन यह सब कहां खत्म होगा, भगवान ही जानता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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