दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण देख कर आप रह जाएंगे दंग

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जयबाण तोप को एक बार ही परीक्षण-फायरिंग के लिए चलाया गया था तो जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित चाकसू नामक कस्बे में गोला गिरने से एक तालाब बन गया था। इस तोप को बनाने के लिए जयगढ़ दुर्ग में ही एक कारखाना बनवाया गया था।

पहियों पर रखी हुई दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण देखनी है तो चले आये जयपुर के समीप जयगढ़ किले पर। मुझे कुछ दिन पूर्व इसे देखने का मौका मिला। मेरे साथ सैकड़ों सैलानी आश्चर्य के साथ इसे निहार रहे थे। एक फ्रांस के पर्यटक से पूछ लिया हाऊ यू फील तो बोला उठा क्याइट वन्डरफुल। यह तोप वास्तव में जयगढ़ दुर्ग की शान और पर्यटकों के आकर्षण का विशेष केंद्र है।

लाखो पर्यटकों की पसंद जयबाण तोप का निर्माण 1720 ई. में जयपुर के मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा मुगल राजा मोहमद शाह के समय करवाया गया था। विश्व की सबसे बड़ी यह तोप जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे की बुर्ज पर स्थित है। अधिक बवजन होने से इसे कभी किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न कभी यह किसी युद्ध में काम मे लाई गई। यह दुनिया में सबसे प्रसिद्ध तोप है।

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जयबाण एक दोपहिया गाड़ी पर स्थित है। पहियों व्यास में 4.5 फीट हैं। गाड़ी परिवहन के लिए दो हटाने योग्य अतिरिक्त पहिये लगाए गए हैं। इन पहियों का व्यास 9.0 फुट हैं। इस तोप से 100 किलोग्राम  गनपाउडर से बना 50 किलोग्राम वजन का गोले दागा जा सकते था। 

तोप की बैरल की लंबाई 20.2 फीट है और इसका वजन 50 टन है। बैरल के आगे की ओर नोक के निकट परिधि 7.2 फीट है और पीछे की 9.2 फीट है। बैरल के बोर का व्यास 28 सेमी है और छोर पर बैरल की मोटाई 21.6 सेमी है। बैरल के पीछे की तरफ मोटाई धीरे-धीरे बढ़ जाती है। बैरल पर दो कड़ियाँ है जो कि एक क्रेन की सहायता से इसे उठाने के लिए उपयोग की जाती थीं। बैरल पर आगे की ओर पुष्प आकृति है और केंद्र में मोर की एक जोड़ी बनाई गई है। पीछे की ओर बतख की एक जोड़ी दिखाई देती है।

इस तोप को एक बार ही परीक्षण-फायरिंग के लिए चलाया गया था तो जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित चाकसू नामक कस्बे में गोला गिरने से एक तालाब बन गया था। इस तोप को बनाने के लिए जयगढ़ दुर्ग में ही एक कारखाना बनवाया गया था। इसकी नाल भी यहीं पर विशेष तौर से बनाए सांचे में ढाली गई थी। लोहे को गलाने के लिए भट्टी भी यहां बनाई गई। इसके प्रमाण जयगढ में आज भी मौजूद है। इस कारखाने में और भी तोपों का निर्माण हुआ। विजयदशमी के दिन इस तोप की विशेष पूजा की जाती है। यहां के तोप ढालने के कारखाने में बनी अनेक छोटी-बड़ी करीब दो दर्जन से अधिक तोपों को एक संग्रहालय बना कर प्रदर्षित किया गया हैं।इनकी बनावट एवं कारीगरी देखते ही बनती हैं।

जयगढ़ किले का निर्माण सवाई जयसिंह (1699-1743) ने करवाया था यों तो सभी किलों में तोपें बनती थीं, किन्तु सब जगह इनका अस्तित्व समाप्त हो गया है। एकमात्र यही एक स्थान है यहाँ अभी पुरानी लेथ मशीन अपने मूल स्वरूप में सुरक्षित है। तोपों के सांचे और ढलाई की भट्टी भी है। मध्यकालीन भारत के प्रख्यात विद्वान स्व. प्रो, नुरूल हसन ने इस कारखाने को देखकर कहा था कि सम्पूर्ण एशिया में कोई भी पुराना कारखाना इतनी अच्छी हालत में सुरक्षित नहीं बचा है। कहा जाता है कि इस स्थान के महत्व को देखते हुए इसे और सुरक्षित कर राजा मानसिंह (1589-1614) ने यहाँ अपना खजाना छिपाया था।

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राजस्थान के दुर्गो में जलसंग्रह के लिए बनाये गये टाकों में जयगढ़ दुर्ग का टाकां बहुत बड़ा है। यहां तीन विशाल जल संग्रह टांके बने हैं। दुर्ग में विलास, ललित मंदिर, विलास मंदिर एवं आराम मंदिर सहित बारूदखाना, टकसाल, मधुसूदन और शीतला माता के मन्दिर, सूफी सन्त मिट्ठे साहब की दरगाह तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा एवं तोपों का संग्रहाल्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। यह किला 3 किलोमीटर लंबा और 1 किलोमीटर चैड़ा है। इस किले की बाहरी दीवारें लाल बलुआ पत्थरों से बनी हैं और भीतरी लेआउट भी बहुत रोचक है। इसके केंद्र में एक खूबसूरत वर्गाकार बाग मौजूद है। इसमें बड़े बड़े दरबार और हॉल हैं जिनमें पर्देदार खिड़कियां हैं।

जयपुर-दिल्ली राजमार्ग पर अवस्थित जयपुर से 15 किमी. दूर आमेर के महलों पर एक दृष्टि डालें तो पहाडि़यों के ऊपर एक पतली पट्टी सी दिखाई देती है। उस पट्टी के बीचों-बीच खड़ी एक मीनार और एक कोने के दो बुर्जे बस नीचे से इतना ही दिखाई देता है। सात मंजिला दिया बुर्ज दुर्ग का सबसे ऊंचा स्थान है जहां से शहर का खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारा मन मोहक नज़र आता है। यहां पर्यटन विभाग की बसों एवं निजी वाहनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। कार से आप सीधे जयबाण तोप तक पहुंच जाते हैं। इस दुर्ग की संरचना, खूबसूरती, लोकेशन का महत्व इसी से लगाया जा सकता है कि अनेक फिल्मों में यहां की शूटिंग की गई है।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार

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