RSS और नितिन गडकरी के गढ़ में ही कांग्रेस ने की सेंधमारी

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नागपुर जिला परिषद की 58 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे तो बुधवार को आ गए... उत्तर भारत में हल्की बारिश हो रही थी और नागपुर के नतीजे घोषित हो रहे थे। नतीजे सामने आने के बाद कांग्रेस और एनसीपी का खेमा खुशियां मना रहा था और भाजपा दुखी थी।

नागपुर... भीड़भाड़ वाला शहर... जहां का संतरा मशहूर है। संघ के मुख्यालय और नितिन गडकरी की पहचान वाला नागपुर... लेकिन इसी नागपुर में भाजपा को तगड़ा झटका है। अपने परम्परागत शहर नागपुर में ही भाजपा जीत नहीं पाई और कार्यकर्ता भी शिवसेना के कार्यकर्ताओं से भिड़ गए। नागपुर जिला परिषद की 58 सीटों पर चुनाव हुआ था नतीजे भी आ गए। आज सवाल इसी मुद्दे पर करेंगे और समझेंगे असल मामला...

चुनाव नतीजे किसके पक्ष में आए ?

नागपुर जिला परिषद की 58 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे तो बुधवार को आ गए... उत्तर भारत में हल्की बारिश हो रही थी और नागपुर के नतीजे घोषित हो रहे थे। नतीजे सामने आने के बाद कांग्रेस और एनसीपी का खेमा खुशियां मना रहा था और भाजपा दुखी थी। क्योंकि 58 में से 30 सीटे जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो भाजपा को 15 सीटों से ही काम चलाना पड़ा। दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और एक बार फिर से भाजपा की रणनीति को ध्वस्त कर दिया। गठबंधन ने कुल 40 सीटें जीती। शिवसेना को तो एक ही सीट से काम चलाना पड़ा। 

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नितिन गडकरी के गांव का क्या हाल था ?

नितिन गडकरी के शहर नागपुर में तो भाजपा हारी ही, गांव धापेवाड़ा में भी हार हुई। और तो और पूर्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के कोराडी में भी हार का सामना करना पड़ा। धापेवाड़ा वो गांव है जहां पर नितिन गडकरी को हर एक व्यक्ति जानता है और इसी धापेवाड़ा से कांग्रेस के महेंद्र डोंगरे विजयी हुए। और कोराडी का हाल भी कुछ ऐसा ही था। वहां से कांग्रेस के उमीदवार नाना कंभाले ने भाजपा प्रत्याशी संजय मैन्द को 1300 वोटों से हराया। 

अपने ही गढ़ में क्यो हारी भाजपा ?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस और एनसीपी का एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ना भाजपा को भारी पड़ा है। मने दोनों पार्टियां साथ में आकर भाजपा के वोट काट गई और नुकसान तो शिवसेना के अलग होने से भी हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शिवसेना ने अलग होकर सबसे ज्यादा भाजपा के वोटबैंक को चोट पहुंचाई है। जबकि पिछली बार तो दोनों ने साथ ही में चुनाव लड़ा था। 

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कुछ लोग मानते हैं कि नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस अगर अपने-अपने क्षेत्रों में गए होते तो भी पार्टी इसके बेहतर परफॉर्म करती लेकिन उन्होंने चुनाव के दौरान निजी क्षेत्रों का ही दौरा नहीं किया। कांग्रेस और एनसीपी ने तीन मंत्रियों को मैदान पर उतारा था। जिनमें  नितिन राऊत, अनिल देशमुख, सुनील केदार शामिल थे। और यह लोग शपथ ग्रहण समारोह के बाद से नागपुर जिला परिषद में पूरी तरह से सक्रिय रहे।

तो क्या जनता का मूड बदल रहा है ?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा सत्ता गंवाए जाने के बाद से कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना के बीच आपसी सहमति बन गई। जिसका असर अब जमीनी स्तर पर देखा जा सकता है। अगर हम बात जिला परिषद चुनाव की करें तो कांग्रेस ने नतीजों के बाद भाजपा पर तगड़ा हमला किया है। कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ने अब के जमाने के सबसे पावरफुल रिपोर्टर यानी की ट्विटर पर लिखा कि नागपुर जिले में आरएसएस का मुख्यालय है और यहां जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली है। 

यह व्यक्तिगत हमले से कम नहीं है क्योंकि भाजपा और संघ दोनों का ही यह गढ़ है और पार्टी के दो बड़े चेहरे नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस यहां का नेतृत्व क्रमश: लोकसभा और विधानसभा में करते हैं। इस चुनाव में जीतकर कांग्रेस ने कहीं न कहीं भाजपा की नींव पर एक सुराग कर दिया है। और आप सब तो जानते ही हैं कि भाजपा हमेशा से चुनावों में बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को महत्व देती आई है। मगर पिछले कुछ चुनावों से भाजपा की रणनीति विपक्ष के सामने कमजोर दिखाई दे रही है।

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जनता का मूड बदल रहा है यह कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 के दरमियां भी विपक्षी पार्टियां यहीं कह रही थी कि भाजपा के दिन गए लेकिन भाजपा ने दुगुनी ताकत के साथ अपने दम पर ही बहुमत साबित कर लिया।

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