Dadasaheb Phalke Death Anniversary: क्या है भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के की कहानी, कई मुश्किलों से बनाई थी पहली फिल्म

दादा साहब फाल्के के नाम से तो हिंदी सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग भलीभांति परिचित ही होंगे। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दादा साहब फाल्के का नाम नहीं सुना होगा। फाल्के साहब का नाम फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी इज्जत और सम्मान के साथ लिया जाता है। दादा साहब को भारतीय सिनेमा का पितामह भी कहा जाता है।
दादा साहब फाल्के के नाम से तो हिंदी सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग भलीभांति परिचित ही होंगे। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दादा साहब फाल्के का नाम नहीं सुना होगा। फाल्के साहब का नाम फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी इज्जत और सम्मान के साथ लिया जाता है। दादा साहब को भारतीय सिनेमा का पितामह भी कहा जाता है। सिनेमा को लेकर फाल्के साहब की दीवानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। जब उन्होंने एक फिल्म के निर्माण के लिए अपनी पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए थे। आज ही के दिन यानी की 16 फरवरी को दादा साहब फाल्के का निधन हुआ था।
दादा साहब फाल्के का जन्म और शिक्षा
महाराष्ट्र के नाशिक में 30 अप्रैल 1870 को दादा साबह फाल्के का जन्म हुआ था। बचपन में उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ा था। दादा साहब का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। उनके पिता गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्धान होने के साथ ही मंदिर में पुजारी थे। उनकी शुरूआती शिक्षा बंबई (वर्तमान में मुंबई) में हुई, यहां से हाई स्कूल की पढ़ाई करने के बाद वह आगे की शिक्षा के लिए जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स कॉलेज गए और फिर इसके बाद वड़ोदरा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। जहां दादा साहब ने चित्रकला, इंजीनियरिंग, ड्राइंग, मूर्तिकला और फोटोग्राफी सीखी।
मुश्किलों से शुरु हुआ फिल्मी सफर
उनको फिल्म निर्माण के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी हालात के सामने समझौता नहीं किया और फिल्म बनाकर ही मानें। साल 1913 में दादा साहब ने पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' बनाई थी। वह न सिर्फ एक सफल फिल्म निर्देशक बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। अपने 19 साल के फिल्मी करियर में दादा साहब फाल्के ने करीब 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाई थीं। बताया जाता है कि अपनी फिल्म में नायिका की तलाश के लिए वह रेड लाइट एरिया भी पहुंच गए थे।
आमतौर पर देखा जाए तो फिल्मों के लिए दादा साहब ने वह सब किया जो सभ्य समाज की आंखों में खटकता है। द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने का ख्याल आया। इस फिल्म ने उनपर इतनी गहरी छाप छोड़ी थी कि उन्होंने ठान लिया था कि वह भी फिल्म बनाएंगे। हालांकि यह आसान काम नहीं था। लेकिन इसके लिए दादा साहब ने कड़ी मेहनत की और वह दिन में करीब 4-5 घंटे सिनेमा देखा करते थे।
ताकि वह उसकी बारिकियां सीख सकें। कई घंटों तक सिनेमा देखने के कारण दादा साहब की आंखों पर भी इसका बुरा असर पड़ा था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, दादा साहब की पहली फिल्म का बजट 15 हजार रुपए था। इस फिल्म के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था।
बता दें कि उस दौरान फिल्म बनाने के जरूरी उपकरण सिर्फ इंग्लैंड में ही मिलते थे। इंग्लैंड जाने के लिए दादा साहब ने अपनी पूरी जिंदगी की सारी जमापूंजी उस यात्रा में लगा दी थी। वहीं पहली फिल्म बनाने में उन्हें करीब 6 महीने का समय लग गया था। दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। दादा साहब द्वारा भारतीय सिनेमा की शुरूआत किए जाने के तौर पर उनके सम्मान में 'दादा साहब फाल्के अवॉर्ड' दिया जाता है। 'दादा साहब फाल्के अवॉर्ड' की शुरूआत साल 1969 में हुई थी। सबसे पहली बार इस अवॉर्ड से देविका रानी को नवाजा गया था।
दादा साहब फाल्के की मुख्य फिल्में
मोहिनी भस्मासुर, राजा हरिश्चंद्र, सावित्री, सत्यवान, लंका दहन, कृष्ण जन्म कालिया मर्दन, शकुंतला, कंस वध,संत तुकाराम,भक्त गोरा, सेतु बंधन, गंगावतरण
दादा साहब फाल्के का निधन
बॉलीवुड इंडस्ट्री को उसका आधार देने वाले महान फिल्म निर्माता दादा साहब फाल्के अपने जीवन के आखिरी समय में नासिक चले गए थे। बता दें कि साल 1938 में इंडियन सिनेमा की रजत जयंती पूरी होने पर निर्माताओं, निर्देशक, आदि ने कुछ धनराशि एकत्र कर फाल्के साहब के लिए नासिक में घर बनवाया था। इसी घर में भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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