Same Sex Marriage को Supreme Court ने भारत में क्यों नहीं बनाया वैध, जानें फैसले से जुड़ी बड़ी बातें

same sex marriage
प्रतिरूप फोटो
Creative Commons licenses
रितिका कमठान । Oct 18 2023 3:43PM

न्यायाधीशों ने इस मामले पर सुनवाई करने के साथ ही पूरा दारोमदार संसद को दे दिया है। केंद्र को कोर्ट ने निर्देश दिया है कि वह समलैंगिक संघ में व्यक्तियों के अधिकारों और अधिकारों की जांच करने के लिए एक समिति का गठन करे।

भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट पूरी कर चुकी है और इस संदर्भ में अपना फैसला भी सुना चुकी है। इसके साथ ही इस बहस पर फिलहाल के लिए विराम लग गया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सीधे तौर पर इंकार कर दिया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दे सकते। कोर्ट का कहना है कि इस मामले पर संसद कोई फैसला ले सकती है।

समलैंगिक विवाह के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्य और उनके सहयोगी कर रहे थे। समलैंगिक विवाह के मसले पर इस समुदाय के लोगों को उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत समलैंगिक शादी को मान्यता देगी। इसके साथ ही वर्षों से चले आ रहे भेदभाव को खत्म करने में सफलता मिलेगी।

इस मामले पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हेमा कोहली की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान डीवाई चंद्रचूड़ कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती है बल्कि सिर्फ उसकी व्याख्या कर सकती है। वहीं विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है। अदालत के इस फैसले की बड़ी बातें जानते है।

शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं

अदालत ने मामले की सुनवाई करने वाले सभी पांच न्यायाधीशों ने शादी को लेकर सहमति व्यक्त की। सभी न्यायाधीशों ने कहा कि गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के लिए शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। इसी के तहत समलैंगिंक जोड़ों की शादी पर भी अदालत ने रोक लगाई है। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने कहा कि शादी एक "सामाजिक संस्था" है। शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि इस अगर विवाह सामाजिक संस्था है तो समाज का कोई भी वर्ग इस तरह की संस्था का निर्माण करने के लिए अदालत से हस्तक्षेप की मांग और राहत की उम्मीद कैसे कर सकता है।

समलैंगिक जोड़ों के लिए गोद लेने का कोई अधिकार नहीं

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के साथ ही याचिकाकर्ताओं ने बच्चा गोद लेने का मुद्दा भी उठाया था। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि बच्चा गोद लेने का अधिकार उन्हें होना चाहिए। वहीं शादी से इंकार के साथ ही ये भी फैसले का मुख्य पहलू है। इस मामले पर न्यायाधीशों के बीच सहमति नहीं बनी और 3:2 के बहुमत से यह माना गया कि समलैंगिक और अविवाहित जोड़े बच्चा गोद नहीं ले सकते। हालांकि इससे पहले चीफ जस्टिस ने कहा था कि कानून ये नहीं मान सकता कि सिर्फ विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते है। उन्होंने आगे कहा, 'यह नहीं माना जा सकता कि अविवाहित जोड़े अपने रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं हैं। यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि केवल एक विवाहित विषमलैंगिक जोड़ा ही एक बच्चे को स्थिरता और अच्छा जीवन प्रदान कर सकता है। हालांकि इस मुद्दे पर कुछ अन्य न्यायाधीशों की राय चीफ जस्टिस से नहीं मिली। न्यायमूर्ति भट्ट ने इस पर अपनी असहमति जताई। वहीं जस्टिस हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने भी यही राय रखी।

इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति भट ने तर्क दिया कि अविवाहित समलैंगिक जोड़े विषमलैंगिक जोड़ों की तरह ही पालन-पोषण में अच्छे हो सकते हैं। मगर इसके साथ ही उन्होंने कुछ चिंताएं भी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि अविवाहित या गैर-विषमलैंगिक जोड़े अच्छे माता-पिता नहीं हो सकते।

विशेष विवाह अधिनियम में कोई बदलाव नहीं

समलैंगिक विवाह के मामले सभी न्यायाधीश इस बात पर सहमत हुए कि समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में बदलाव करना संभव नहीं है। अदालत ने ये फैसला तब सुनाया है जब शादी में पति-पत्नी का उपयोग करने को कहा गया था ना कि पुरुष और महिला का। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द करने से अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए कानूनी ढांचा खतरे में होगा।

समलैंगिकता शहरी या कुलीन अवधारणा नहीं

गोद लेने जैसे मुद्दों पर न्यायाधीशों की राय अलग-अलग रही मगर सभी न्यायाधीशों ने एक मामले पर राय पर सहमति बनाई वो था समलैंगिकता पर। भारत के मुख्य न्यायाधीश, डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिकता ना ही शहरी है और ना ही सिर्फ कुलीन वर्ग से ताल्लुक रखती है। साहित्य का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि समलैंगिंकता नया विषय नहीं है। लोग समलैंगिक हो सकते है, चाहे गांवों के हो या शहरों के। सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाला पुरुष ही समलैंगिक नहीं हो सकता बल्कि गांव में किसानी करने वाली महिला भी समलैंगिक हो सकती है। न्यायाधीशों ने ये टिप्पणी केंद्र के उस तर्क के जवाब में दी जिसमें कहा गया था कि ये सिर्फ अर्बन और कुलीन लोगों में होता है। केंद्र ने तर्क दिया था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाएं "शहरी अभिजात्य" दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।

 

केंद्र और राज्यों को निर्देश

न्यायाधीशों ने इस मामले पर सुनवाई करने के साथ ही पूरा दारोमदार संसद को दे दिया है। केंद्र को कोर्ट ने निर्देश दिया है कि वह समलैंगिक संघ में व्यक्तियों के अधिकारों और अधिकारों की जांच करने के लिए एक समिति का गठन करे। सीजेआई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक समुदाय की सुरक्षा के लिए केंद्र, राज्यों और पुलिस बलों को कई निर्देश जारी किए। उन्होंने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि समलैंगिक समुदाय के साथ फिर से भेदभाव न हो। इस समुदाय के सदस्यों को सेवाएं और सामान प्रदान करने में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

चीफ जस्टीस चंद्रचूड़ ने कहा कि जनता को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। एक हॉटलाइन बनाई जानी चाहिए। उन्होंने पूछा कि यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाएं कि अंतर-लिंगीय बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर नहीं किया जाए। उन्होंने ये भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी हार्मोनल थेरेपी से गुजरने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस को समलैंगिक लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए या उन्हें अपने मूल परिवारों में लौटने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। 

All the updates here:

अन्य न्यूज़