माता मनसा देवी के मंदिर में आकर धागा बांधें, मन्नत जरूर पूरी होगी

Mata Mansa Devi temple in Haridwar
रेनू तिवारी । Jun 22 2018 6:02PM

हिंदू धर्म में अनेक देवी देवताओं को पूजा जाता हैं जिसमें से एक है मनसा माता। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां मनसा की शरण में आने वालों का कल्याण होता है।

हिंदू धर्म में अनेक देवी देवताओं को पूजा जाता हैं जिसमें से एक है मनसा माता। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां मनसा की शरण में आने वालों का कल्याण होता है। मां की भक्ति से अपार सुख मिलते हैं। ग्रंथों के मुताबिक मानसा मां की शादी जगत्कारू से हुई थी और इनके पुत्र का नाम आस्तिक था। माता मनसा को नागो के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। मनसा देवी के मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह जगह एक तरह से हिमालय पर्वत माला के दक्षिणी भाग पर पड़ती है। नवरात्रों में मां के दरबार में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।

मनसा मां के मंदिर की महिमा

इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियां हैं। एक मूर्ति की पांच भुजाएं एवं तीन मुंह हैं। जबकि दूसरी मूर्ति की आठ भुजाएं हैं। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं माँ मनसा शक्ति का ही एक रूप है जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलाई। नाम के अनुसार मनसा माँ अपने भक्तों की मनसा (इच्छा) पूर्ण करने वाली हैं। मां के भक्त अपनी इच्छा पूर्ण कराने के लिए यहां आते हैं और पेड़ की शाखा पर एक पवित्र धागा बाँधते हैं और जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो दुबारा आकर मां को प्रणाम करके मां का आशीर्वाद लेते हैं और धागे को शाखा से खोलते हैं। कहा जाता है कि देवी मनसा का पूजन पहले निम्न वर्ग के लोग ही करते थे परंतु धीरे धीरे इनकी मान्यता भारत में फैल गई। उनके मंदिर की पूजा मूल रूप से आदिवासी करते थे पर धीरे धीरे उनके मंदिरों को अन्य दैवीय मंदिरों के साथ किया गया।

नागराज वासुकी की मां हैं मनसा

वैसे तो मनसा देवी को कई रूपों में पूजा जाता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14वीं सदी के बाद इन्हें शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। मां की उत्पत्ति को लेकर कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ। 

विष की देवी 

विष की देवी के रूप में इनकी पूजा बंगाल क्षेत्र में होती थी और अंत में शैव मुख्यधारा तथा हिन्दू धर्म के ब्राह्मण परंपरा में इन्हें मान लिया गया। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता ये नाम इस प्रकार हैं जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।

 

कहां है मां का खूबसूरत मंदिर

इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर सिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। मंदिर से मां गंगा और हरिद्वार के समतल मैदान अच्छे से दिखते हैं। श्रद्धालु इस मंदिर तक केबल कार से पहुंच सकते हैं। यह केबल कार यहां ‘उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। हरिद्वार शहर से पैदल आने वालों को करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। हालांकि मंदिर से कुछ पहले कार या बाइक से भी पहुंचा जा सकता है।

मंदिर खुलने का समय

मंदिर सुबह 8 बजे खुलता है और शाम 5 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है। दोपहर 12 से 2 तक मंदिर बंद रहता है।

अन्य मनसा देवी के मंदिर: इस जगह के अलावा माँ मनसा के मंदिर भारत में और भी जगह हैं। जैसे राजस्थान में अलवर और सीकर में, मनसा बारी कोलकाता में, पञ्चकुला हरियाणा में, बिहार में सीतामढ़ी में और दिल्ली के नरेला में।

-रेनू तिवारी

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