अपूर्व असरानी के खुलासे से फिल्म इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद के आरोपों को मिला बल

Apurva Asrani

अपने ब्लॉग में अपूर्व असरानी ने लिखा है कि इसके बाद मेरे खिलाफ मीडिया में एक अभियान चलाया गया। जिनमें अलग-अलग रिपोर्टों में दावा किया गया कि मैंने यह फिल्म संपादित नहीं की, मैंने उस फिल्म की कहानी नहीं लिखी...आदि आदि।

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद से हिन्दी फिल्म उद्योग नेपोटिज्म के आरोप झेल रही है। हालाँकि ऐसे आरोप पहले भी लगते रहे लेकिन सुशांत की आत्महत्या ने फिल्म उद्योग में भाई-भतीजावाद के मुद्दे को प्रमुखता से उछाल दिया। सुशांत की मृत्यु के बाद से ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब कोई निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री या अन्य किसी विधा से जुड़ा कलाकार अपनी व्यथा ना सुना रहा हो। ताजा मामला फिल्ममेकर अपूर्व असरानी का है। अपूर्व असरानी ने एक लंबा-चौड़ा ब्लॉग लिखकर बताया है कि कैसे फिल्म इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद हावी है। उन्होंने यह भी संकल्प जताया है कि वह सुशांत सिंह राजपूत को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ेंगे। 

अपर्वू असरानी ने कहा है कि मैं जो लिख रहा हूँ वह कोई पब्लिसिटी स्टंट नहीं बल्कि इंसाफ दिलाने का अभियान है। हालांकि वह ब्लॉग में लिखते हैं कि सुशांत सिंह राजपूत को वह निजी तौर पर नहीं जानते थे लेकिन कहते हैं, ''मैं समझ सकता हूँ कि सुशांत किस दौर से गुजर रहा होगा जब उसकी छवि खराब करने का और उसे बदनाम करने का अभियान चलाया जा रहा होगा। कई बेहतरीन और सुपरहिट फिल्मों के साथ जुड़े रहे लेखक, निर्देशक और फिल्ममेकर अपूर्व असरानी का यह पूरा ब्लॉग http://urbanturban21.blogspot.com/2020/07/do-words-have-power-to-kill.html पर पढ़ा जा सकता है।

अपूर्व असरानी लिखते हैं कि सुशांत की मौत के बाद सबने अनुमान लगा लिया कि वह बहुत ज्यादा तनाव से गुजर रहा था और हालात को नियंत्रण में नहीं कर पाया इसीलिए आत्महत्या कर ली। लेकिन ऐसा कहने वाले सुशांत को जानते तक नहीं हैं, ना ही उनके पास उसकी कोई मेडिकल हिस्ट्री है, जिसके आधार पर वह ऐसा दावा कर सकें कि सुशांत बहुत ज्यादा तनाव से गुजर रहा था। अपूर्व कहते हैं कि सोशल मीडिया पर बैठकर सामने दिख रही तसवीरों और कही जा रही बातों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा रहा है।

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अपूर्व अपना अनुभव बताते हुए लिखते हैं कि सिमरन फिल्म के समय मेरा निर्देशक हंसल मेहता के साथ विवाद हुआ था। इस फिल्म की अभिनेत्री कंगना रनौत थीं। वह लिखते हैं, ''मैंने यह फिल्म लिखी और संपादित की। मुझसे वादा किया गया था कि सह-लेखक के रूप में मेरा नाम आयेगा लेकिन मैं तब हैरान रह गया जब मैंने देखा कि मेरा नाम सिर्फ संपादन के लिए रखा गया है। मैंने आवाज उठाई, एक लंबी लड़ाई लड़ी तब जाकर मुझे क्रेडिट मिला। लेकिन यह सारा दौर मेरे लिए काफ कष्टदायी रहा, मेरा दिल टूट गया था क्योंकि मेरे जानने वाले लोग यह सब चुपचाप देखते रहे और मैं अकेला अपने हक के लिए लड़ता रहा।

अपने ब्लॉग में अपूर्व असरानी ने लिखा है कि इसके बाद मेरे खिलाफ मीडिया में एक अभियान चलाया गया। जिनमें अलग-अलग रिपोर्टों में दावा किया गया कि मैंने यह फिल्म संपादित नहीं की, मैंने उस फिल्म की कहानी नहीं लिखी...आदि आदि। वह लिखते हैं कि मनोज वाजपेयी ने मुझे सहारा और समर्थन नहीं दिया होता तो मैं अकेला पड़ जाता। इस सबके दौरान उनके मन-मस्तिष्क में चल रही उथलपुथल का भी उन्होंने अपने ब्लॉग में विस्तार से वर्णन किया है।

अपूर्व लिखते हैं कि मध्यमवर्गीय परिवारों के युवक-युवतियाँ बड़े सपनों के साथ मुंबई आते हैं लेकिन निर्माता-निर्देशक उनके साथ उत्पाद जैसा व्यवहार करते हैं जिससे वह बिखर कर रह जाते हैं। अपने अनुभवों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए अपूर्व लिखते हैं कि जब मैं एक लेखक और संपादक के नाते इतने कष्ट झेलने के लिए मजबूर किया गया तो अभिनेता या अभिनेत्री के साथ क्या होता होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वह अपने ब्लॉग में निष्कर्ष में लिखते हैं कि इन सब हालातों का डट कर और एकजुटता के साथ ही मुकाबला किया जा सकता है।

गौरतलब है कि अपूर्व हाल ही तब भी चर्चा में आये थे जब उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह स्वीकार किया था कि सिद्धांत जिसे वह अपना कजन बताते थे, वह उसके साथ काफी समय से रिलेशनशिप में हैं। 

अभिनव कश्यप ने उठाई थी सबसे पहले आवाज

उधर, सुशांत की मौत के बाद सबसे पहले निर्माता निर्देशक अभिनव कश्यप ने भाई-भतीजावाद और फिल्म उद्योग में कुछ परिवारों के हावी होने का मुद्दा उठाते हुए एक बड़ा-सा फेसबुक पोस्ट लिखा था। अभिनव कश्यप ने सलमान खान और उनके परिवार पर उनका कॅरियर बर्बाद करने का आरोप लगाया था। फिल्म निर्माता और निर्देशक अनुराग कश्यप के भाई अभिनव कश्यप ने सलमान खान के 'बीइंग ह्यूमन' पर भी जोरदार निशाना साधा था।

कंगना रनौत

अभिनेत्री कंगना रनौत भी फिल्म इंडस्ट्री में किसी भी प्रकार की खेमेबाजी और भाई-भतीजावाद के खिलाफ हमेशा मुखर रही हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उन्होंने भी एक वीडियो संदेश जारी कर कई बड़े फिल्मी घरानों पर सीधा हमला बोला था और यह सवाल भी उठाया था कि कहीं सुशांत की मौत एक योजनाबद्ध तरीके से किया गया मर्डर तो नहीं है।

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अमित त्रिवेदी

हालांकि सभी भाई-भतीजावाद की बात कहते हों ऐसा नहीं है। गीतकार और संगीतकार अमित त्रिवेदी ने हाल ही में कहा कि वह भी सुशांत की मौत से बिखर गये थे लेकिन संगीत के क्षेत्र में ऐसी कोई बात नहीं है यदि यह होगा भी तो अभिनेता और अभिनेत्री के मामले में होगा। 

जीशान अयूब

उधर अगर भाई-भतीजावाद से परेशान कलाकारों की बात करें तो इनमें अभिनेता जीशान अयूब नया नाम हैं जिन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त की है और बड़े पर्दे के पीछे के चेहरे को उजागर कर दिया है। जीशान ने एक साक्षात्कार में कहा है कि समस्या सिर्फ नेपोटिज्म तक सीमित नहीं है बल्कि कलाकारों से फिल्म शुरू होने के दौरान से ही झूठ बोला जाता है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जीशान ने कहा, ''आपसे कहा जाता है कि आपको ये करना है, साथ ही आपको पोस्टर पर भी जगह देने का वादा किया जाता है लेकिन फिल्म पूरी होते-होते आप साइड कैरेक्टर बन जाते हैं क्योंकि शूटिंग के दौरान ही अभिनेता को विश्वास में लिये बिना ही पटकथा में बदलाव कर दिया जाता है। पोस्टर में जगह मिलने की बात तो भूल जाइये आपको फिल्म के प्रमोशन के दौरान भी अकसर नहीं पूछा जाता।''

रूपा गांगुली

नेपोटिज्म को लेकर लोगों में किस कदर गुस्सा है इसका एक ताजा सबूत तब मिला जब महाभारत धारावाहिक में द्रौपदी का रोल कर चुकीं रूपा गांगुली जोकि भाजपा सांसद भी हैं, उन्होंने कहा कि वह ऐसे सेलेब्स की फिल्मों का बहिष्कार करेंगी जो भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। रूपा गांगुली ने कहा, ''मैं अब कुछ खास लोगों की फिल्में नहीं देखूंगी, क्योंकि उन्होंने देश को संदेश दिया है कि छोटे शहरों के लड़कों और लड़कियों को इंडस्ट्री में नहीं आना चाहिए।''

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बहरहाल, फिल्मी परिवारों से ताल्लुक नहीं रखने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियों का कहना है कि आम लोग भी यदि फिल्म उद्योग में किसी भी प्रकार के नेपोटिज्म के खिलाफ हैं तो उन्हें हम जैसे कलाकारों की फिल्में भी देखनी चाहिए। इन कलाकारों की जनता से शिकायत है कि अधिकतर स्थापित कलाकारों की फिल्में या बड़े फिल्मी परिवारों के बच्चों की फिल्में देखने ही जनता थियेटर जाती है जिससे निर्माता-निर्देशकों को हम जैसे कलाकारों को प्रताड़ित करने का अवसर मिल जाता है।

-नीरज कुमार दुबे

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