हिंदी का वैश्विक दायरा बढ़ने से बढ़े कॅरियर के अवसर

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[email protected] । Jul 21 2018 4:45PM

विश्व भर में जिस तरह हिंदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है उसी तरह हिंदी भाषा के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न विभाग, राज्य सरकारों (हिंदी भाषी राज्यों) के विभिन्न विभागों में हिंदी भाषा में काम करना अनिवार्य हो गया है।

चीनी भाषा के बाद हिंदी दुनिया भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी भाषा है। भारत और विदेशों में हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या करीब 500 मिलियन है। यही नहीं हिंदी भाषा को अच्छी तरह समझने वाले लोगों की संख्या करीब 900 मिलियन है।?

सभी भाषाओं का स्वयं का अपना स्वरूप है जिनकी जड़ें किसी न किसी भाषा से जुड़ी हुई हैं। इसी तरह हिंदी भाषा का जन्म शास्त्रीय संस्कृत भाषा से हुआ है। हिंदी की अधिकतर शब्दावली संस्कृत से संबंधित है। इसके व्याकरण में भी समानताएं हैं। हिंदी को देवनागरी लिपि भी कहते हैं।

आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी

भारत के संविधान के (अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा देवनागरी लिपि या हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची की पच्चीस भाषाओं में एक हिंदी है। भारत के संविधान ने सरकारी कार्यप्रणाली के लिए दो भाषाओं को मान्यता प्रदान की है जिसमें पहली हिंदी और दूसरी भाषा अंग्रेजी है।

स्वतंत्रता प्राप्त के बाद यह निश्चित किया गया था कि सन् 1965 से भारत की पूरी कार्यप्रणाली हिंदी भाषा में संपादित होगी और (अनुच्छेद 344 (2) और अनुच्छेद 351 के निर्देशों के अनुसार राज्यों को अपनी भाषा के चयन का अधिकार होगा, लेकिन आधिकारिक भाषा अधिनियम 1963 के तहत सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी का भी प्रयोग में लाने का निश्चय किया गया। यही कारण है कि अंग्रेजी आज भी आधिकारिक दस्तावेजों, अदालतों आदि में प्रयोग की जाती है। 

भारत के कई राज्यों में हिंदी को आधिकारिक भाषा में रूप में मान्यता मिली हुई है। ऐसे राज्य हैं- बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली आदि। इसके साथ ही इन राज्यों की अपनी एक सह-सरकारी भाषा भी है, जैसे- उत्तर प्रदेश में उर्दू एक सहकारी भाषा है तो कई राज्यों में हिंदी को सह- भाषा का दर्जा दिया गया है।

हिंदी एक वैश्विक भाषा

अच्छी बात यह है कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच भारतीय संस्कृति व भाषा सीखने की रुचि बढ़ी है। यही कारण है कि कई विदेशी देशों ने भारतीय अध्ययनों को बढ़ावा देने के लिए अपने यहां हिंदी सीखने के लिए अध्ययन केंद्र स्थापित किए हैं।

इन संस्थानों में भारतीय धर्म, इतिहास और संस्कृति पर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के साथ-साथ हिंदी, उर्दू और संस्कृत जैसे कई भारतीय भाषाओं की शिक्षा भी प्रदान की जाती हैं। वर्तमान के वैश्वीकरण और निजीकरण के समय में अन्य देशों के साथ भारत के बढ़ते व्यापारिक संबंधों ने एक-दूसरे देशों की भाषाओं को सीखने की आवश्यकता को और भी अधिक बढ़ा दिया है।

एक-दूसरे देश के साथ सहयोग एवं विकास की भावना के कारण हिंदी की लोकप्रियता अन्य देशों में बहुत अधिक बढ़ी है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका के कुछ स्कूलों ने फ्रेंच, स्पैनिश और जर्मन के साथ एक विदेशी भाषा के रूप में हिंदी को शुरू करने का फैसला है। इससे भी हिंदी को वैश्विक पहचान मिली है। 

तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी

भारतीय भाषा हिंदी के तकनीकी भाषा के रूप में विकास की शुरुआत 1991 में स्थापित इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग मिशन (टी.डी.आई.एल.) के साथ शुरू हुई। भारतीय भाषाओं की समृद्धि को देखते हुए इसे मिशन मानते हुए कई गतिविधियां शुरू की गईं। इसके बाद 1991 में यह निश्चित किया गया कि संवैधानिक रूप से हिंदी सहित प्रत्येक स्वीकृत भाषाओं के लिए तीन मिलियन शब्द का संग्रह विकसित किया जाएगा। इसके बाद हिंदी कॉरपोरेशन का विकास आई.आई.टी. दिल्ली को सौंपा गया।

1981-1919 के दौरान हिंदी कॉरपोरा से संबंधित स्रोत किताबों, पत्रिकाओं, पत्रिकाएं, समाचार पत्र और सरकारी दस्तावेजों में प्रकाशित किए गए थे। इसे छह मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें सामाजिक विज्ञान, भौतिक-व्यावसायिक विज्ञान, सौंदर्यशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान, वाणिज्य, आधिकारिक और मीडिया भाषा और अनुवादित सामग्री शामिल हैं। शब्द स्तरीय टैगिंग के लिए सॉफ़्टवेयर उपकरण, शब्द गणना, पत्र गणना, आवृत्ति गणना भी विकसित की गई हैं। विभिन्न संस्थानों द्वारा हिंदी में पठनीय मशीन के लगभग 30 लाख शब्द विकसित किए गए हैं।

हिंदी के विकास में हिंदी वर्ड प्रोसेसर की भी बहुमूल्य भूमिका है। कई संस्थानों ने हिंदी वर्ड प्रोसेसर का निर्माण कर हिंदी के विकास को गति प्रदान की है। इसके साथ-साथ 1991 में सरकार द्वारा जी.आई.एस.टी., शेलिपी, सुलीपी, ए.पी.एस., अक्षर विकास कार्यक्रम के तहत कई संस्थानों (सिद्धार्थ 1983 में डी.सी.एम.), लिपी (हिन्दीट्रौनिक्स 1983), आई.एस.एम., लिप ऑफिस (सी.डी.ए.सी., पुणे) के साथ कई अन्य संस्थानों ने भी हिंदी वर्ड प्रोसेसर का भी निर्माण किया है। पुणे स्थित सी.डी.ए.सी. संस्थान ने जी.आई.एस.टी. प्रौद्योगिकी की शुरुआत की, ताकि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया जा सके। यह इनफॉर्मेशन इंटरचेंज, स्कीन पर उसका प्रदर्शन एवं विशेष फोंट (आई.एस.एफ.ओ.सी.) के लिए भारतीय स्क्रिप्ट कोड का प्रयोग करता है। इसके साथ ही यह विभिन्न स्क्रिप्ट्स (आई.एन.एस.सी.आर.आई.पी.टी.) आदि के लिए कुंजीपटल ले-आउट का इस्तेमाल करता है।

हिंदी भाषा में नौकरी या व्यवसाय के अवसर

विश्व भर में जिस तरह हिंदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है उसी तरह हिंदी भाषा के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न विभाग, राज्य सरकारों (हिंदी भाषी राज्यों) के विभिन्न विभागों में हिंदी भाषा में काम करना अनिवार्य हो गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों और केंद्रीय / राज्य सरकारों की इकाइयों में हिंदी अधिकारी, हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक, प्रबंधक (आधिकारिक भाषा) जैसे कई पद होते हैं, जहां नियुक्तियां की जाती हैं।

निजी टीवी और रेडियो चैनलों के आगमन और स्थापित पत्रिकाओं / समाचार पत्रों के हिंदी संस्करणों के विकास के कारण इन क्षेत्रों में भी नौकरियों के अवसर में कई गुना बढ़ौतरी हुई है। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में संपादकों, पत्रकारों, संवाददाताओं, उप संपादक, प्रूफ रीडर, रेडियो जॉकी, एंकर आदि की आवश्यकता होती हैं, इन लोगों का अधिकांश कार्य भी हिंदी में ही होता है। हिंदी में शैक्षणिक योग्यता रखने के साथ-साथ पत्रकारिता / जनसंचार में डिग्री / डिप्लोमा की योग्यता के साथ अभ्यर्थी एक से अधिक स्थानों पर नौकरी का अवसर पा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अभ्यर्थी रेडियो / टीवी / सिनेमा के क्षेत्र में स्क्रिप्ट लेखक / संवाद लेखक / गीतकार के रूप में उपलब्ध अवसर का लाभ उठा सकते हैं। इन क्षेत्रों में रचनात्मक, कलात्मक लेखन की मांग होती है जो अभ्यर्थी इन क्षेत्रों की डिग्री या डिप्लोमा हासिल कर स्वयं में विकसित कर सकते हैं।

इसके साथ ही प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय लेखक, जो अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं में अपने लेख लिखते हैं उन लेखों का अनुवाद भी हिंदी में किया जा सकता है। हिंदी / अंग्रेजी में फिल्मों / विज्ञापनों की लिपियों का अनुवाद भी ऐसा ही कार्य है। इसी तरह द्विभाषी दक्षता रखकर कोई भी फ्रीलान्स अनुवादक के रूप में अपनी आजीविका अर्जित कर सकता है और अपनी अनुवाद कंपनियां भी स्थापित कर सकता है। ऐसी कंपनियां अनुबंध के आधार पर काम करती हैं और कई पेशेवर अनुवादकों को रोजगार प्रदान करती हैं। विदेशी एजेंसियों के पास अनुवाद परियोजनाओं के बहुत से अवसर उपलब्ध होते हैं। यह काम आसानी से इंटरनेट के माध्यम से किया जा सकता है।

पूरी दुनिया में सीस्ट्रान, एस.डी.एल. इंटरनेशनल, डेट्रॉइट ट्रांसलेशन ब्यूरो, प्रोज़ इत्यादि कई कंपनियां कई भाषाओं में अनेक सेवाएं उपलब्ध कराती हैं, जिनमें से एक भाषा हिंदी है। अन्य कंपनियां इन कंपनियों से अनुबंध के आधार पर भाषा सेवाएं मांगती हैं। आमतौर पर इन कंपनियों में कैरियर के अवसर स्थायी या फ्रीलांस अनुवादकों और दुभाषियों के रूप में उपलब्ध होते हैं।

हमने यह भी देखा है कि वैश्विक स्तर पर प्रकाशित की जाने वाली किताबों के प्रकाशक भी हिंदी भाषी लोगों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि प्रमुख बहुराष्ट्रीय प्रकाशन संस्थानों ने न सिर्फ हिंदी भाषा में किताबों का प्रकाशन करना शुरू किया है बल्कि पुरानी और लोकप्रिय किताबों का बड़े पैमाने पर हिंदी अनुवादित कर प्रकाशित भी किया है। इसलिए बड़े प्रकाशन संस्थानों में अनुवादक, संपादक और संगीतकार के रूप में एक बहुत अवसर मौजूद होते हैं।

हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर की योग्यता रखने वाले लोगों को विदेशी देशों में भी नौकरी का अवसर मिल सकता है। खासकर उन लोगों ने जिन्होंने अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली है। विदेशों विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाना या विदेशी भाषाओं के साथ-साथ दूसरे भाषा के रूप में हिंदी को पढ़ाकर अभ्यर्थी अपनी जीविका चला सकते हैं। भारत के विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एक शिक्षक और प्रोफेसर के रूप में हिंदी पढ़ाने का कार्य शुरू से चल ही रहा है।

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Source: Collegedunia (यह आलेख कॉलेजदुनिया.कॉम ने प्रभासाक्षी के लिए विशेष रूप से लिखा है)

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