कर्नाटक चुनावों में हार से राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हो सकती है भाजपा

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कहने को तो बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बन गए मगर उनकी सरकार पूरी तरह बीएस येदियुरप्पा के नियंत्रण में ही कार्य करती रही थी। बसवराज बोम्मई की मुख्यमंत्री के रूप में छवि एक कमजोर नेता की बन गयी। जिस कारण प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था।

कर्नाटक में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव देश की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माने जाएगें। इस चुनाव से देश की राजनीति की दिशा व दशा बदल सकती है। कर्नाटक चुनाव में मतदाताओं ने जहां सत्तारुढ़ भाजपा का सफाया कर दिया। वहीं कांग्रेस पार्टी को बंपर बहुमत से जीता कर उसे नई संजीवनी प्रदान की है। लगातार जीत के नशे में चूर केंद्र में सरकार चला रहे भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व वाली छवि को भी इस विधानसभा चुनाव परिणाम से गहरा आघात लगा है। अब तक माना जाता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने करिश्माई व्यक्तित्व के चलते हार को भी जीत में बदलने की क्षमता रखते हैं। मगर कर्नाटक में दिन-रात धुआंधार प्रचार व सैंकड़ों किलोमीटर के रोड शो करने के उपरांत भी चुनाव में करारी हार से उनका करिश्माई व्यक्तित्व कमजोर पड़ा है।

कर्नाटक के मतदाताओं ने जोड़-तोड़ की राजनीति को भी पूरी तरह नकार दिया है। इसीलिए एक लंबे समय के बाद कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत देकर एक स्थाई सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। ताकि सरकार प्रदेश का चहुंमुखी विकास कर सके। इसके साथ ही पिछली बार बहुमत से दूर रहने के उपरांत भी भाजपा द्वारा जोड़-तोड़ व खरीद-फरोख्त कर कांग्रेस व जनता दल सेकुलर की सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बनाने का भी मतदाताओं ने भाजपा को कड़ा दंड दिया है। कर्नाटक के मतदाताओं ने बता दिया है कि उनका ऐसी किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं मिलेगा जो विधायकों को तोड़कर प्रदेश में कार्य कर रही सरकार को गिरा कर अपनी पार्टी की सरकार बनाएं।

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कर्नाटक विधानसभा का इस बार का चुनाव कई मायनों में खास माना जाएगा। कर्नाटक के मतदाताओं ने 224 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 135 सीटों के साथ ही 42. 88 प्रतिशत यानी एक करोड़ 67 लाख 89 हजार 272 वोट देकर सत्ता की चाबी सौंप दी है। वहीं अब तक प्रदेश में सत्तारुढ़ रही भाजपा को 66 सीटों के साथ मात्र 36 प्रतिशत वोट यानी एक करोड़ 40 लाख 96 हजार 529 वोट देकर सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वहीं प्रदेश में अब तक तीसरी ताकत माने जाने वाली जनता दल सेकुलर पार्टी को महज 18 सीट 13.29 प्रतिशत यानी 52 लाख पांच हजार 489 वोट मिल पाये है। प्रदेश की राजनीति में सत्ता बनाने और बिगाड़ने की चाबी अभी तक जनता दल सेकुलर के हाथ में रहती आई थी। जिसे मतदाताओं ने इस बार छीन कर जनता दल सेकुलर की स्थिति को बहुत कमजोर बना दिया है।

कांग्रेस को इस बार भाजपा से 26 लाख 92 हजार हजार 743 वोट ज्यादा मिले। जिस कारण कांग्रेस को भाजपा से दोगुनी से भी अधिक सीटें मिली है। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को भाजपा से छ लाख 64 हजार 247 वोट अधिक मिले थे। उसके बावजूद भी कांग्रेस 80 सीटों पर ही रह गई थी। जबकि भाजपा 104 सीटें जीतने में सफल रही थी। मगर इस बार स्थिति पूरी तरह से पलट गई है। इस बार के चुनाव में 26 लाख वोट अधिक लेकर कांग्रेस ने भाजपा से 69 सीट अधिक जीत ली है जो एक रिकॉर्ड है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले ही राजनीति के जानकार लोगों को लग रहा था कि इस बार भाजपा के हाथ सत्ता की चाबी नहीं आने वाली है। 2018 में कांग्रेस, जनता दल सेकुलर के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे। तभी से भाजपा उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास में लग गई थी। कांग्रेस, जेडीएस के विधायकों से इस्तीफा दिलवा कर भाजपा ने कुमार स्वामी सरकार को गिरा दिया तथा 26 जुलाई 2019 को भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद संभाल लिया था। उसके 2 वर्ष बाद भाजपा के बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बने। जिनका कार्यकाल 2 वर्ष से कुछ कम रहा।

कहने को तो बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बन गए मगर उनकी सरकार पूरी तरह बीएस येदियुरप्पा के नियंत्रण में ही कार्य करती रही थी। बसवराज बोम्मई की मुख्यमंत्री के रूप में छवि एक कमजोर नेता की बन गयी। जिस कारण प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था। कर्नाटक सरकार में ठेकेदारी करने वाले ठेकेदारों ने बोम्मई सरकार के मंत्रियों व अधिकारियों पर 40 प्रतिशत कमीशन लेकर बिल पास करने के आरोप लगाए। जिसके चलते आम जन में भ्रष्टाचारी सरकार की छवि बन गई थी। सभी मंत्री अपनी मनमानी कर रहे थे। वहीं अधिकारियों पर भी काबू नहीं रहा था। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी कर्नाटक में सुशासन स्थापित करने में पूरी तरह सफल रहा था।

विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा विधायक मदन विरुपक्षप्पा का बेटा प्रशांत कुमार 40 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया था। प्रशांत कुमार अपने पिता के नाम पर रिश्वत ले रहा था जो कर्नाटक सॉप्स एंड डिटर्जेंट्स लिमिटेड के चेयरमैन थे। प्रशांत कुमार स्वयं बेंगलुरु जलापूर्ति और सीवरेज बोर्ड में चीफ अकाउंटेंट ऑफिसर है। प्रशांत कुमार को लोकायुक्त अधिकारियों ने उनके पिता के कार्यालय में 40 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा था। इस घटना से भी भाजपा की छवि बहुत दागदार हो गई थी।

इस बार के चुनाव में भाजपा का हिंदुत्व मॉडल व बजरंग बली की जय का नारा भी काम नहीं कर पाया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 विधानसभा सीटों पर प्रचार किया था। जिनमें से भाजपा 7 सीटें हार गई। भाजपा में बीएस येदियुरप्पा के अलावा कोई बड़ा स्थानीय नेता नहीं था जिनके नाम पर वोट बटोरे जा सके। वहीं कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर कर्नाटक के मतदाताओं को एक बड़ा संदेश दिया था। कर्नाटक चुनाव में मल्लिकार्जुन खरगे ने जमकर प्रचार किया। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने पूरी चुनाव की कमान अपने हाथों में थाम रखी थी। भाजपा के अधिकांश स्टार प्रचारकों के उत्तर भारत से होने के कारण भी कर्नाटक के मतदाताओं ने उनकी अपील को स्वीकार नहीं किया।

चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार का टिकट काटना भी भाजपा को भारी पड़ गया। भाजपा से टिकट कटने पर शेट्टार कांग्रेस में शामिल होकर हुबली से चुनाव मैदान में उतर गए। हालांकि वह स्वयं चुनाव हार गए मगर उनके पार्टी छोड़ने से भाजपा को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा। गुजरात की तर्ज पर कर्नाटक में भी कई वरिष्ठ नेताओं के टिकट काटे गए थे। जिनमें से अधिकांश नेता पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतर गए और भाजपा प्रत्याशियों को हराने में महती भूमिका निभाई।

कर्नाटक चुनाव परिणामों ने भाजपा विरोधी दलों को एक बार फिर से एक मंच पर एकत्रित होने का सुनहरा अवसर प्रदान कर दिया है। भाजपा विरोधी दलों को लगने लगा है कि जिस तरह से कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा को हराया है। उसी तरह आगे तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित कई प्रदेशों में होने वाले विधानसभा चुनाव तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को हराया जा सकता है। कर्नाटक में जीतकर कांग्रेस का मनोबल पहले से कई गुना अधिक मजबूत होगा। कांग्रेस पार्टी आने वाले चुनावों में सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर चुनाव मैदान में उतरगी तो निश्चय ही सभी जगह भाजपा को मात देने में सफल हो सकेगी। कर्नाटक चुनाव में हारने से भाजपा का दक्षिण भारत से पूरी तरह सफाया हो गया है। कर्णाटक चुनाव से भाजपा का जो जनाधार कमजोर होना शुरू हुआ है। उसका खामियाजा भाजपा को आगे आने वाले चुनावों में भी उठाना पड़ सकता है।

-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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