पौधारोपण बहुत ज़रूरी है, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो हम भी सुरक्षित रहेंगे

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फ़िरदौस ख़ान । Jun 4 2019 12:19PM

यह हैरत और अफ़सोस की ही बात है कि जिस देश में, समाज में पेड़-पौधों को पूजने की प्रथा रही है, अब उसी देश में, उसी समाज में पेड़ कम हो रहे हैं। बदलते दौर के साथ लोगों का प्रकृति से रिश्ता टूटने लगा।

जब से दुनिया शुरू हुई है, तभी से इंसान और क़ुदरत के बीच गहरा रिश्ता रहा है। पेड़ों से पेट भरने के लिए फल-सब्ज़ियां और अनाज मिला। तन ढकने के लिए कपड़ा मिला। घर के लिए लकड़ी मिली। इनसे जीवनदायिनी ऑक्सीज़न भी मिलती है, जिसके बिना कोई एक पल भी ज़िन्दा नहीं रह सकता। इनसे औषधियां मिलती हैं। पेड़ इंसान की ज़रूरत हैं, उसके जीवन का आधार हैं। अमूमन सभी मज़हबों में पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर दिया गया है। भारतीय समाज में आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया गया है। भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों को पूजा जाता है। विभिन्न वृक्षों में विभिन्न देवताओं का वास माना जाता है। पीपल, विष्णु और कृष्ण का, वट का वृक्ष ब्रह्मा, विष्णु और कुबेर का माना जाता है, जबकि तुलसी का पौधा लक्ष्मी और विष्णु, सोम चंद्रमा का, बेल शिव का, अशोक इंद्र का, आम लक्ष्मी का, कदंब कृष्ण का, नीम शीतला और मंसा का, पलाश ब्रह्मा और गंधर्व का, गूलर विष्णू रूद्र का और तमाल कृष्ण का माना जाता है। इसके अलावा अनेक पौधे ऐसे हैं, जो पूजा-पाठ में काम आते हैं, जिनमें महुआ और सेमल आदि शामिल हैं। वराह पुराण में वृक्षों का महत्व बताते हुए कहा गया है- जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, एक बड़, दस फूल वाले पौधे या बेलें, दो अनार दो नारंगी और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह नरक में नहीं जाएगा।

यह हैरत और अफ़सोस की ही बात है कि जिस देश में, समाज में पेड़-पौधों को पूजने की प्रथा रही है, अब उसी देश में, उसी समाज में पेड़ कम हो रहे हैं। बदलते दौर के साथ लोगों का प्रकृति से रिश्ता टूटने लगा। बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है। नतीजतन जंगल ख़त्म हो रहे हैं। देश में वन क्षेत्रफल 19.2 फ़ीसद है, जो बहुत ही कम है। इससे पर्यावरण के सामने संकट खड़ा हो गया है। घटते वन क्षेत्र को राष्ट्रीय लक्ष्य 33.3 फ़ीसद के स्तर पर लाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा वृक्ष लगाने होंगे। साथ ही ख़ुशनुमा बात यह भी है कि अब जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आ रही है। लोग अब पेड़-पौधों की अहमियत को समझने लगे हैं। महिलाएं भी इस पुनीत कार्य में बढ़ चढ़कर शिरकत कर रही हैं।

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बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के गांव मझार की किरण ने अपने विवाह से पहले एक हज़ार पौधे लगाए। उन्होंने विवाह की मेहंदी लगाने के बाद अगले दिन सुबह से ही गड्ढ़े खोदे और उनमें पौधे लगाए। इस मुहिम में मझार और इसके आसपास के गांवों के लोगों ख़ासकर लड़कियों और महिलाओं ने भी मदद की। किरण का कहना है कि वे पौधारोपण के ज़रिये अपने विवाह को यादगार बनाना चाहती थीं। आज इस तरह जंगल ख़त्म हो रहे हैं, पेड़ सूख रहे हैं, इसे देखते हुए पौधारोपण बहुत ज़रूरी है। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तो हम भी सुरक्षित रहेंगे। किरण के पिता जितेंद्र सिंह अपनी बेटी के इस काम से बहुत ख़ुश हैं। वे कहते हैं कि लोगों को इससे प्रेरणा मिलेगी.

इस बार ईद-उल-फ़ित्र के मौक़े पर ईद की नमाज़ के बाद जगह-जगह पौधारोपण किया गया। ईदी के तौर पर एक-दूसरे को पौधे भी दिए गए। तक़रीर में इमाम साहब ने कहा कि इस्लाम में पर्यावरण संरक्षण को बहुत मह्त्व दिया गया है। क़ुरान कहता है- जल और थल में बिगाड़ फैल गया ख़ुद लोगों की ही हाथों की कमाई के कारण, ताकि वह उन्हें उनकी कुछ करतूतों का मज़ा चखाए, शायद वे बाज़ आ जाएं। पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. ने फ़रमाया- अगर क़यामत आ रही हो और तुम में से किसी के हाथ में कोई पौधा हो, तो उसे ही लगा ही दो और नतीजे की फ़िक्र मत करो। पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. ने फ़रमाया-जिसने अपनी ज़रूरत से ज़्यादा पानी को रोका और दूसरे लोगों को पानी से वंचित रखा, तो अल्लाह फ़ैसले के दिन उस शख़्स से अपना फ़ज़लो-करम रोक लेगा। पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. ने फ़रमाया- जो शख़्स कोई पौधा लगाता है या खेतीबाड़ी करता है। फिर उसमें से कोई परिंदा, इंसान या अन्य कोई प्राणी खाता है, तो यह सब पौधा लगाने वाले की नेकी में गिना जाएगा। पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. ने फ़रमाया- जो भी खजूर का पेड़ लगाएगा, उस खजूर से जितने फल निकलेंगे, अल्लाह उसे उतनी ही नेकी देगा। पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. ने फ़रमाया- जिस घर में खजूर का पेड़ हो, वह भुखमरी से परेशान नहीं हो सकता।

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ईसाई भी पर्यावरण संरक्षण को महत्व देते हैं। वे मानते हैं- पर्यावरण का संरक्षण ही हमारा जीवन है, चाहे हम विश्वास करें या न करें, पर्यावरणीय संकट हमारे जीवन के सभी क्षेत्र, हमारे सामाजिक स्वास्थ्य, हमारे संबंध, हमारे आचरण, अर्थव्यवस्था, राजनीति, हमारी संस्कृति और हमारे भविष्य को प्रभावित करता है। प्रकृति का संरक्षण ही हमारी प्राणमयी ऊर्जा है।

किसानों का पर्यावरण से गहरा नाता रहा है। वे बढ़ते पर्यावरण असंतुलन पर चिंता ज़ाहिर करते हुए जहां जैविक खेती को अपना रहे हैं, वहीं कृषि वानिकी पर भी ख़ासा ध्यान दे रहे हैं। दरअसल कृषि वानिकी को अपना कर कुछ हद तक पर्यावरण संतुलन को बेहतर बनाया जा सकता है। फ़सलों के साथ वृक्ष लगाने को कृषि वानिकी के नाम से जाना जाता है। खेतों की मेढ़ों पर वृक्ष लगाए जाते हैं। इसके अलावा गांव की शामिलात भूमि, परती भूमि और ऐसी भूमि, जिस पर कृषि नहीं की जा रही हैं, वहां भी उपयोगी वृक्ष लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा बनाया जा रहा है। पशुओं के बड़े-बड़े बाड़ों के चारों ओर भी वृक्ष लगाए जा रहे हैं। कृषि वानिकी के तहत ऐसे वृक्ष लगाने चाहिए, जो ईंधन के लिए लकड़ी और खाने के लिए फल दे सकें। जिनसे पशुओं के लिए चारा और खेती के औज़ारों के लिए अच्छी लकड़ी भी मिल सके। इस बात का भी ख़्याल रखना चाहिए कि वृक्ष ऐसे हों, जल्दी उगें और उनका झाड़ भी अच्छा बन सके। बबूल, शीशम, नीम, रोहिड़ा, ढाक, बांस, महुआ, जामुन, कटहल, इमली, शहतूत, अर्जुन, खेजड़ी, अशोक, पोपलर, सागौन और देसी फलों आदि के वृक्ष लगाए जा सकते हैं।

बहुत-सी सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाएं पौधारोपण की मुहिम चला कर इस पुनीत कार्य में हिस्सेदार बन रही हैं। लोग अब अपने किसी ख़ास दिन को यादगार बनाने के लिए पौधे लगा रहे हैं। कोई पौधारोपण कर अपना जन्मदिन मना रहा है, तो कोई अपनी शादी की सालगिरह पर पौधा रोप रहा है। इतना ही नहीं, लोग अपने प्रिय नेता और अभिनेता के जन्मदिन और बरसी पर भी पौधारोपण कर वातावरण को हराभरा बनाने के काम में लगे हैं। बेशक पौधे लगाना नेक काम है। लेकिन सिर्फ़ पौधा लगाना ही काफ़ी नहीं है। पौधे की समुचित देखभाल भी की जानी चाहिए, ताकि वे वृक्ष बन सकें।

आओ पौधे लगाएं, अपनी धरा को हरा बनाएं।

-फ़िरदौस ख़ान

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)

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