पंचायत चुनाव नेपाल में हो रहे हैं, लेकिन उम्मीदवारों के लिए भारतीय क्यों अहम हो गये हैं?

nepal poll
ANI
डॉ. रमेश ठाकुर । May 13 2022 12:34PM

सन् 1950 में भारत और नेपाल के बीच हुई विशेष संधि ने दोनों सीमावर्ती नागरिकों को विशेष अधिकार दिए हैं। मतलब दोनों ओर के लोग आपस में रहकर संपत्ति अर्जित कर सकते हैं। सिविल सेवा को छोड़कर सरकारी नौकरियां भी कर सकते हैं।

पड़ोसी देश नेपाल में पंचायत चुनाव हो रहे हैं। उनका ये चुनाव इस बार कुछ अलग है। नेपालियों में उत्साह है, उमंग है। वहां की जनता काफी समय से निकाय चुनाव की मांग कर रही थी। नया संविधान लागू होने के बाद दूसरी मर्तबा पंचायत चुनाव हो रहे हैं। बिल्कुल हिंदुस्तानी अंदाज में। वहां के चुनाव आयोग ने बाकायदा भारतीय निर्वाचन आयोग से मदद ली है। नेपाल के छह महानगरों के 11 उप-महानगरीय शहरों में 276 नगर पालिका और 460 ग्रामीण नगर पालिकाओं में 17 करोड़ 72 लाख नेपाली मतदाता अपने अधिकार का इस्तेमाल इस बार करेंगे। व्यवस्थाएं हुबहू हमारे ग्राम प्रधान व जिला पंचायतों जैसी ही हैं। सुरक्षा की दृष्टि से फिलहाल इंडो-नेपाल की सेनाएं बॉर्डर पर लगी हैं और प्रत्येक गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं।

इसे भी पढ़ें: प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से दोनों देशों के संबंध और मजबूत होंगे: नेपाल का विदेश मंत्रालय

कई लोग इस बात से हैरत में होंगे कि चुनाव तो वहां हैं, तो भला सरगर्मी हिंदुस्तान में क्यों? दरअसल, सीमा से सटे इस ओर तराई क्षेत्र के गांवों के हजारों लोग वहां मतदान करेंगे, क्योंकि उनके पास नेपाली नागरिकता भी है, वहां के मतदाता भी हैं। अधिकारियों और आम लोगों के लिए ये बात बेशक कौतूहल हो, लेकिन अधिकारियों के लिए नहीं? उसके कुछ कारण हैं। तराई के कुछ खास जिले पीलीभीत, लखीमपुर, बहराइच, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर व बिहार के कुछ जिले ऐसे हैं जो नेपाल सीमा से सटे हैं। इन जिलों के लोग हमेशा दोनों तरफ काम धंधों के लिए आते-जाते हैं और ब्याह भी कर लेते हैं। वोटर कार्ड व जरूरी कागजात भी बनवा चुके हैं। भारत-नेपाल का तराई क्षेत्र कमोबेश एक जैसा है, आपस में गहरे संबंध हैं।

नेपाल के भारतीय सीमावर्ती से सटे रूपनदेही, कपिलवस्तु व नवलपरासी आदि जिलों के लोग हमारे यहां के लोगों से भी वोट करने की अपील कर रहे हैं। उन्हें हमारे अधिकारी भी कुछ नहीं कहते। प्रचार के दिनों में जैसे ही दिन छिपता था नेपाली प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार तेज हो जाता था। उम्मीदवारों की प्रचार गाड़ियां सरहद के जिलों में खूब दौड़ती दिखीं। प्रत्याशी और उनके समर्थक हिंदुस्थानी सीमा क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचकर रोटी-बेटी के रिश्ते की दुहाई देते दिखे। गौरतलब है कि भारत-नेपाल सीमाओं पर पाकिस्तान, चीन या अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा सख्ती नहीं बरती जाती। ज्यादा पाबंदियां क्यों नहीं बरती जातीं, इस थ्योरी को भी समझते हैं। दोनों मुल्कों के बीच जनता सभ्यता-संस्कृति आपस में साझा करती है। नेपाल हिंदू राष्ट्र रहा है। दोनों के आपस में अच्छे संबंध रहे, इसके लिए कुछ संधियां औरों से अलहदा हैं।

सन् 1950 में दोनों देशों के बीच हुई विशेष संधि ने दोनों सीमावर्ती नागरिकों को विशेष अधिकार दिए हैं। मतलब दोनों ओर के लोग आपस में रहकर संपत्ति अर्जित कर सकते हैं। सिविल सेवा को छोड़कर सरकारी नौकरियां भी कर सकते हैं। हमारे तराई क्षेत्रों में नेपालियों के बसने की भी एक कहानी है। आज से करीब बीस वर्ष पूर्व बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक माओवादी आंदोलन के चलते तराई के विभिन्न क्षेत्रों में आकर बस गए थे। पर, उनकी नेपाली नागरिकता और घर-जमीन अब भी वहां बरकरार है। वहां के निकाय चुनाव कम मार्जिन में होते हैं, इसलिए यही लोग नेपाल का चुनावी समीकरण बदलने का माद्दा रखते हैं, तभी प्रत्याशियों की गिद्ध नजर इन पर बनी हुई है। हालांकि दोनों देशों के अफसर किसी भी अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए मुस्तैद हैं, दोनों तरफ की सेना भी एक-दूसरे के संपर्क में है।

इसे भी पढ़ें: श्रीलंका के बाद नेपाल की भी आर्थिक स्थिति खराब, लगातार बढ़ रही महंगाई, बिहार आकर खरीदारी कर रहे लोग

एकाध सप्ताह से नेपाल चुनाव की गूंज जितनी वहां रही, उतनी ही भारतीय सीमाई इलाकों में देखने को मिली। जैसे हमारे यहां प्रधानी चुनावों में मुर्गा-मच्छी की पार्टियां चलती हैं, वैसी ही वहां होती रहीं। ढोल-नगाड़े भी बजे। गांव-देहातों को चमकाने के वायदे भी हुए। नेपाली टोपी पहने नेपाली प्रत्याशियों ने हमारे यहां के मतदाताओं को रिझाने के लिए ग्रामीण इलाकों- महराजगंज, नौतनवा, सोनौली, भगवानपुर, श्यामकाट, शेख फरेंदा, केवटलिया, डाली, सुंडी व सिद्धार्थनगर के बैरियहवा, ककरहवा, फरसादीपुर, धनगढ़वा आदि इलाकों में व्यक्तिगत रूप से भी जनसंपर्क भी किया। दरअसल, तराई सीमावर्ती क्षेत्र ऐसे हैं जहां के अधिकांश घरों के युवक-युवतियों की शादी दोनों तरफ होती है। इनको महसूस ही नहीं होता कि नेपाल-भारत दो अलग-अलग देश हैं, इसे वह एक ही देश समझते हैं। इसलिए उम्मीदवार एक दूसरे को अपने रिश्तेदार और परिचित मानते हैं, तभी उनके घरों में पहुंचकर प्रत्याशी और समर्थक रोटी-बेटी का रिश्ता जोड़कर वोट मांग रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भारत के लोगों ने भी उनका खुले दिल से स्वागत-सम्मान किया।

बहरहाल, दोनों तरफ लोगों में आपसी भाईचारा इस कदर है कि आज तक कोई अप्रिय घटना तक नहीं घटी। ये लोग दोनों मुल्कों को छोटे-बड़े भाई का दर्जा देते आए हैं। आंतरिक सुरक्षा को कभी खतरा नहीं पहुंचने दिया। इसलिए दोनों देशों के खुफिया तंत्र हमेशा से बेखबर रहे हैं। भारतीय सीमा में सबसे ज्यादा वोटर बहराइच, पलिया, रमनगरा, सिद्धार्थनगर और महराजगंज के ग्रामीण इलाकों से हैं। नेपाल के कपिलवस्तु, नवलपरासी और रूपनदेही जिले की लगभग दो सौ किलोमीटर सीमा हमारे इन क्षेत्रों से आपस में साझा करती है। अनुमान है कि करीब लाख से ज्यादा मतदाता ऐसे हैं जिनके पास दोहरी यानि भारतीय और नेपाली नागरिकता है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा, पहले भी हुआ है जब ये लोग बिना रोक-टोक के चुनावों में भाग लेते आए हैं। बॉर्डर पर सुरक्षाकर्मी भी इनके साथ ज्यादा सख्ती नहीं करते, आराम से इधर-उधर आने-जाने देते हैं।

-डॉ. रमेश ठाकुर

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़