सीता नवमी व्रत से होती है सौभाग्य-सुख की प्राप्ति

sita navami

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सीता नवमी के दिन सीता जी राजा जनक को कलश में मिली थीं। जिस प्रकार श्रीराम नवमी का महत्व है वैसे ही सीता नवमी भी देश के कई हिस्सों में बहुत उत्साह पूर्वक मनायी जाती है।

सीता नवमी मां सीता के प्राकट्यत्सोव के रूप में मनाया जाता है। सीता नवमी को जानकी जयंती के नाम से पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है तो आइए हम आपको सीता नवमी व्रत की पूजा विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।

इसे भी पढ़ें: गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान से होते हैं सभी कष्ट दूर, जानें इसका महत्व

जानें सीता नवमी के बारे में 

वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सीता नवमी के दिन सीता जी राजा जनक को कलश में मिली थीं। जिस प्रकार श्रीराम नवमी का महत्व है वैसे ही सीता नवमी भी देश के कई हिस्सों में बहुत उत्साह पूर्वक मनायी जाती है। श्रीराम जी स्वयं विष्णु एवं मां सीता लक्ष्मी माता का स्वरूप हैं। इसलिए सीता नवमी के दिन सीता-राम की आराधना से भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। जानकी नवमी पर जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से भक्त के कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके अलावा इस दिन आठ सौभाग्यशाली महिलाओं को सौभाग्य की वस्तुएं देनी चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि सदैव लाल वस्त्र का दान करें। इस प्रकार के दान से कष्ट दूर होते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इसे भी पढ़ें: अद्वेतवाद के प्रवर्तक थे जगतगुरू आदि शंकराचार्य

सीता नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा

सीता नवमी से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक मारवाड़ क्षेत्र में ब्राह्मण निवास करता था। जिसकी अत्यंत रूपवान पत्नी थी। यह स्त्री सदैव व्यभिचार में लिप्त रहती थी। इसका दूसरे पुरुषों के साथ भी सम्बन्ध था। एक बार गांव वालों ने पति से उसकी शिकायत की तो उसने गांव में आग लगा कर गांव जला दिया। इतने कुकर्म करने के बाद अगले जन्म में चंडालिनी जन्म ली और उसे कोढ़ हो गया। वह एक दिन भूखी-प्यासी घूमते हुए राम-जानकी के मंदिर के पास पहुंची और खाना मांगने लगी। लेकिन साधु ने कहा कि आज तो सीता नवमी है आज के दिन केवल तुलसी पत्र तथा जल मिलेगा। भूख से बिलखती उस औरत ने दम तोड़ दिया लेकिन अनजाने में उसका बैसाख नवमी का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत को पूरा होने के कारण उसे स्वर्ग मिला। अगले जन्म में वह एक राजा की पत्नी के रूप में जन्म ली और उसने अपने राज्य में बहुत से मंदिर तथा देवालय बनवाए तथा लोगों को दान-पुण्य किया। इस प्रकार बैसाख नवमी का व्रत करने से व्यक्ति सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। 

सीता नवमी पर ऐसे करें पूजा, होगी मनोकामना पूरी 

हिन्दू धर्म में सीता नवमी का खास महत्व होता है इसलिए सीता नवमी की पूजा अष्टमी के दिन से शुरू हो जाती है। अष्टमी के दिन सभी कार्यों से निवृत होकर एक मंडप बना लें तथा उसे बीच में राम-जानकी की प्रतिमा रखें। अगर आपके पास मूर्ति नहीं है तो आप फोटो भी लगा सकते हैं। राम-जानकी की फोटो के साथ राजा जनक, माता सुनैना, हल तथा धरती की प्रतिमा भी स्थापित कर सकते हैं। उसके बाद नवमी के स्नान के पश्चात राम-जानकी की पूजा करें। उससे पहले गणेश तथा माता भगवती की पंचोपचार से पूजा करें। फिर मंडप के पास ही अष्टदल कमल पर विधिपूर्वक कलश को स्थापित करें। अगर मंडप में प्राण-प्रतिष्ठा हो तो मंडप में स्थापित प्रतिमा या चित्र में प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। साथ ही प्रतिमा के कपड़ों का स्पर्श करना चाहिए। उसके बाद सीता माता की मंत्रों के उच्चारण से पूजा करनी चाहिए।

इसे भी पढ़ें: घर में चींटियों का इस तरह निकलना भी होता है खास संकेत, जानिए इसका जीवन पर असर

सीता नवमी का व्रत रखने से होता है यह लाभ 

मां सीता, लक्ष्मी माता का ही एक स्वरूप हैं। इसलिए इस व्रत को करने से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। सीता नवमी के दिन जो भी भक्त श्रीराम सहित माता -सीता की विधिपूर्वक पूजा करता है उसे सभी तीर्थों के दर्शन का फल प्राप्त होता है। इस व्रत से न केवल सौभाग्य मिलता है बल्कि संतान की भी प्राप्ति होती है। जानकी जयंती के व्रत कई प्रकार के सदगुण भी प्राप्त होते हैं जिनमें त्याग, समर्पण, सदगुण तथा ममत्व प्रमुख है।  

प्रज्ञा पाण्डेय

All the updates here:

अन्य न्यूज़