Nimisha Priya Death Sentence: आ गई यमन में सजा-ए-मौत की तारीख, अब कैसे बचेगी निमिषा प्रिया की जान?

केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेनगोडे की रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया स्वास्थ्य सेवा में अपना करियर बनाने के लिए 2008 में यमन चली गईं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं और उसे उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करनी थी।
केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे की भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 2017 में एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद 16 जुलाई को यमन में फांसी की सजा दी जाएगी। भू-राजनीतिक और कानूनी चुनौतियों से जटिल इस मामले ने नई दिल्ली का तत्काल कूटनीतिक ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है। 37 वर्षीय महिला काम के सिलसिले में यमन गई थी। वह राजधानी सना की एक जेल में पहुँच गई, जो ईरान समर्थित हूती प्रशासन के नियंत्रण में है, जिसके साथ भारत के कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं।
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कौन हैं निमिषा प्रिया?
केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेनगोडे की रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया स्वास्थ्य सेवा में अपना करियर बनाने के लिए 2008 में यमन चली गईं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं और उसे उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करनी थी। उनके पति और नाबालिग बेटी वित्तीय कारणों से 2014 में भारत लौट आए और उसी वर्ष, यमन गृहयुद्ध की चपेट में आ गया और वे वापस नहीं जा सके क्योंकि देश ने नए वीजा जारी करना बंद कर दिया। प्रिया को 2020 में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा मृत्युदंड दिया गया था और यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने नवंबर 2023 में फैसले को बरकरार रखा था। यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी ने कथित तौर पर प्रिया की मौत की सजा को मंजूरी दे दी है।
निमिषा प्रिया की निर्धारित फांसी के बीच भारतीय की कोशिशें जारी
भारत प्रिया की फांसी को रोकने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। एक भारतीय अधिकारी ने कहा, उसे मौत की सजा सुनाए जाने के बाद से हम इस मामले पर कड़ी नज़र रख रहे हैं। हम यमनी अधिकारियों और उसके परिवार के सदस्यों के साथ नियमित संपर्क में हैं और हर संभव सहायता प्रदान की है। उन्होंने आगे कहा कि हम मामले पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं। सरकार ने पहले संसद में कहा था कि वह निमिषा प्रिया के परिवार को हर संभव सहायता प्रदान कर रही है। हालाँकि, एक प्रमुख चुनौती हूती प्रशासन के साथ औपचारिक राजनयिक माध्यमों का अभाव रही है, जिससे बातचीत मुश्किल हो गई है।
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