Election in Turkey: अतातुर्क के तुर्की में चुनाव, सत्ता में बने रहने के लिए क्या करेंगे एर्दोगन? इतिहास के आईने से जानें 20 सालों का सफर

Elections in Ataturk Turkey
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 3 2023 4:08PM

तुर्की एक मुस्लिम बहुल्य देश हैं जहां करीब 98 फीसदी जनता इस्लाम को मानती है और तुर्की की गिनती उन गिने-चुने मुस्लिम देशों में होती है जिन्हें सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष यानी सेक्युलर माना जाता रहा है।

तुर्की की तुलना में कोई भी देश होगा जो नाटो गठबंधन के लिए अधिक जटिल साबित नहीं हुआ हो। अन्य नाटो सदस्यों के लिए यूक्रेन में रूस के आक्रमण ने एक आम दुश्मन के खिलाफ गठबंधन के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया। फिर भी नाटो सदस्य तुर्की ने न केवल रूस के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा। इसने स्वीडन और फ़िनलैंड की नाटो उम्मीदवारी को अवरुद्ध करने की भी धमकी दी है। पिछले दो दशकों से कभी प्रधानमंत्री के रूप में तो कभी राष्ट्रपति के रूप में देश की सत्ता को संभालने वाले राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने चुनाव की घोषणा कर दी है। देश में इस  बार 14 मई 2023 को चुनाव होंगे। तुर्की में इस बार चुनाव निर्धारित समय से एक महीने पहले हो रहे हैं। अगर किसी उम्मीदवार को 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं तो 28 मई को दूसरे चरण का मतदान होगा। ऐसे में इस रिपोर्ट के जरिए जानते हैं कि तुर्की में चुनाव के बाद क्या एर्दोगन के 20 सालों का अंत हो जाएगा। क्या कहते हैं चुनावी सर्वेक्षण और क्या है इस देश का इतिहास। 

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आर्थिक मोर्चे पर कहां खड़ा है देश?

वर्षों के आर्थिक कुप्रबंधन के बाद नवंबर 2022 में तुर्की की मुद्रास्फीति दर 85 प्रतिशत पर पहुंच गई। फिर ये दिसंबर में कुछ कम होकर 64 प्रतिशत हो गई। यह यूरोप में अब तक की सबसे ऊंची दर है। तुर्की का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है और राष्ट्र को बढ़ते चालू-खाता घाटे का सामना करना पड़ रहा है। 3.6 मिलियन सीरियाई शरणार्थियों की उपस्थिति से तुर्की की आबादी तेजी से असंतुष्ट है, जिसे तुर्की ने सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत में स्वीकार किया था। एर्दोगन के बढ़ते निरंकुश 20 साल के शासन से भी थकान बढ़ रही है। पूरी पीढ़ी किसी अन्य नेता को नहीं जानती।

क्या हो जाएगा एर्दोगन के 20 सालों के शासन का अंत

2014 के बाद से तुर्की के 12 वें और वर्तमान राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 2003 से 2014 तक प्रधान मंत्री के रूप में शासन किया है। एर्दोगन के लिए ये चुनाव बेहद ही अहम है। 20 वर्षों के बड़े पैमाने पर निर्विवाद शासन के बाद, हार से उनके, उनके परिवार, उनके साथियों और उनकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (AKP) के कई अन्य लोगों के लिए गंभीर परिणाम साबित हो सकते हैं, जिन्हें उनके शासन से व्यक्तिगत रूप से लाभ हुआ है और संभवतः अभियोजन का सामना करना पड़ सकता है। विपक्ष की जीत भी शासन परिवर्तन का एक रूप होगी, यह देखते हुए कि इसके नेता तुर्की की संसदीय प्रणाली की बहाली और राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती का समर्थन करते हैं। एर्दोगन की भेद्यता की भावना इतनी तीव्र हो गई है कि सरकार ने अदालतों का उपयोग एक प्रमुख संभावित विपक्षी उम्मीदवार, इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करने के लिए किया है। ये एक चरम कदम जो अंततः बैकफ़ायर कर सकता है। 

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तुर्की में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक साथ ही होते हैं

तुर्की में प्रधानमंत्री के पास ही सबसे अधिक शक्ति होती है। एर्दोगन ने प्रधानमंत्री का पद ही समाप्त कर दिया था। देश में राष्ट्रपति की प्रथा को शुरू किया। नई व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक ही दिन होते हैं। विपक्ष ने तुर्की की आर्थिक मंदी और एर्दोगन पर नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के क्षरण का आरोप लगाते हुए कहा कि संशोधित सरकारी प्रणाली एक व्यक्ति शासन है। 

क्या कह रहे हैं चुनावी सर्वे?

वर्तमान सर्वेक्षणों से पता चलता है कि एर्दोगन और एकेपी 14 मई को होने वाले चुनाव में हार सकते हैं। किसी भी अन्य नेता के लिए इस तरह की अलोकप्रियता और आर्थिक अस्वस्थता निश्चित हार का कारण बन सकती है। लेकिन एर्दोगन को उनकी दृढ़ता और चुनाव जीतने की उनकी क्षमता के लिए जाना जाता है। यह देखते हुए कि कितना कुछ दांव पर लगा है, हार से बचने के लिए उनके द्वारा लगभग किसी भी साधन का उपयोग करने की संभावना जताई जा रही है। जैसा कि उनकी हालिया विदेश नीति के कदम बताते हैं, उनके पास खेलने के लिए कई कार्ड भी हैं। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को संभावित नुकसान को कम करने के लिए इस तरह के विकास के लिए तैयार रहना चाहिए और इसका मुकाबला करने के लिए एक रणनीति होनी चाहिए। तुर्की इतना महत्वपूर्ण देश है कि उसे पश्चिमी प्रभाव से दूर जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

क्या है तुर्की का इतिहास

तुर्की एक मुस्लिम बहुल्य देश हैं जहां करीब 98 फीसदी जनता इस्लाम को मानती है और तुर्की की गिनती उन गिने-चुने मुस्लिम देशों में होती है जिन्हें सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष यानी सेक्युलर माना जाता रहा है। वर्ष 1299 से 1922 तक तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य का शासन था। 1923 में तुर्की को इस साम्राज्य से आजादी मिल गई और इसका श्रेय तुर्की के पूर्व तानाशाह मुस्तफा कमाल अतातुर्क को जाता है। संविधान के तहत ही अतातुर्क ने तुर्की की सेना को देश में हमेशा सेक्युलरिज्म कायम रखने की जिम्मेदारी दी। तुर्की में धार्मिक प्रतीक चिन्हों के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी थी। एर्दवान तुर्की जैसे आधुनिक और सेक्युलर मूल्यों वाले देश के कट्टर इस्लामिक राष्ट्रपति हैं जो उसी आईने में विदेश संबंधों को भी देखते हैं।

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