GST किस तरह से इकट्ठा होता है और कैसे राज्यों में बंटता है, क्या है झगड़े की असल वजह

Centre vs States On GST
अभिनय आकाश । Oct 7 2020 8:00PM

जाएसटी काउंसिल लक्जरी और दूसरी वस्तुओं पर लगने वाले कम्पेनसेशन सेस को जून 2022 से भी आगे बढ़ाने की बात कही है। सरकार ने जीएसटी लागू किया उसके बाद से इसे पांच साल के लिए किया गया था लागू। यानी कि अगले पांच साल तक आप कम्पेनसेशन सेस देंगे।

जीएसटी काउंसिल ने एक बड़ा फैसला किया है। ये फैसला राज्यों को नुकसान से बचाने के लिए जीएसटी काउंसिल ने अपनी बैठक में ये फैसला लिया है। इस फैसले के अनुसार जाएसटी काउंसिल लक्जरी और दूसरी वस्तुओं पर लगने वाले कम्पेनसेशन सेस को जून 2022 से भी आगे बढ़ाने की बात कही है। जीएसटी काउंसिल और सरकार का कहना है कि हमने राज्यों को बचाने के लिए उन पर बोझ न पड़े इसलिए ये फैसला लिया है। जब से सरकार ने जीएसटी लागू किया उसके बाद से इसे पांच साल के लिए किया गया था लागू। यानी कि अगले पांच साल तक आप कम्पेनसेशन सेस देंगे। लेकिन अब सरकार ने ये फैसला लिया है और 20 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश ने सरकार की इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। लेकिन कांग्रेस शासित प्रदेशों ने साफ तौर पर इसे खारिज करते हुए इसे मानने से इंकार कर दिया है। जीएसटी किस तरह से इकट्ठा होती है, कैसे राज्यों में बंटता है और जीएसटी को लेकर क्या है राज्यों की शिकायतें। इन सारे सवालों का जवाब आज के इस विश्लेषण में बताएंगे। 

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भारत के दिल यानी दिल्ली में संसद भवन में 30 जून और 1 जुलाई 2017 के दरमियानी रात को प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सभी पार्टियों के नेता इकट्ठा हुए थे। रात के 12 बजे एक ऐप के ज़रिए जीएसटी लागू किया गया। 'गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स' के नाम से जाने जाने वाले इस टैक्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 'गुड एंड सिंपल टैक्स' कहा और उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यों के 17 पुराने टैक्स और 23 सेस ख़त्म कर एक नया टैक्स लगा दिया जो पूरे देश में एक समान ही होना था। उनके अनुसार इसका एक उद्देश्य ये भी था कि आम लोगों पर इसका ज़्यादा असर ना पड़े। 'एक देश-एक कर' कही जाने वाली इस कर प्रणाली को सरकार ने स्वतंत्रता के 70 साल बाद का सबसे बड़ा टैक्स सुधार कहा गया।  इस जीएसटी में अपने टैक्स से कमाई करने वाले राज्यों के लिए क्या था? इसके लिए जीएसटी को तीन तरह से बांटा गया – IGST, SGST और CGST

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IGST यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी। जब सामान एक राज्य में बनकर दूसरे राज्य में बिकता है, यानी अंतर्राज्यीय कारोबार होता है, तो IGST लगता है और ये टैक्स केंद्र के पास आता है। लेकिन अगर एक राज्य में चीज़ बनी और उसी राज्य में बिक गई, तो इसमें SGST यानी स्टेट जीएसटी और CGST यानी सेंट्रल जीएसटी लगेगा। अगर कुल जीएसटी 18 फीसदी है, तो 9 फीसदी SGST और 9 फीसदी CGST लगता है। SGST राज्यों के पास जाता है और सीजीएसटी केंद्र के पास आता है। अब इस वर्गीकरण के हिसाब से राज्यों का जीएसटी में हिस्सा तो तय कर दिया गया। लेकिन राज्यों को एक चिंता और थी। जीएसटी डेस्टिनेशन टैक्स है। यानी सेवा या वस्तु जहां बिकेगी, वहां टैक्स लगेगा। कहां उत्पादन हो रहा है, इससे फर्क नहीं पड़ता। तो जो बड़े मैन्युफैक्चरिंग राज्य थे, उन्होंने ऑब्जेक्शन किया कि ऐसे तो हमें आय में घाटा हो जाएगा। तो इन चिंताओं को दूर करने के लिए केंद्र ने एक व्यवस्था दी। जीएसटी कम्पनसेशन या मुआवजा। ये व्यवस्था पांच साल के लिए थी।

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क्या है केंद्र-राज्यों में जीएसटी शेयर करने का फॉर्मूला

जीएसटी को 1 जुलाई 2017 से लागू किया गया। जीएसटी कानून में यह तय किया गया था कि इसे लागू करने के बाद पहले पांच साल में राज्यों को राजस्व का जो भी नुकसान होगा, उसकी केंद्र सरकार भरपाई करेगी। आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी। पांच साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी। कहा गया कि राज्यों को मिलने वाला सभी मुआवजा जीएसटी के कम्पेनसेशन फंड से दिया जाएगा।

क्या होता है कम्पेनसेशन  फंड 

राज्यों को मुआवजे की भरपाई के लिए जीएसटी के तहत ही एक कम्पेनसेशन सेस यानी मुआवजा उपकर लगाया जाता है। यह उपकर तंबाकू, ऑटोमोबाइल जैसे गैर जरूरी और लग्जरी आइटम पर लगाया जाता है। इस उपकर के कलेक्शन से जो फंड बनता है उसी से राज्यों के मुआवजे की भरपाई सरकार करती है। लेकिन लॉकडाउन में इस फंड में भी कुछ खास रकम नहीं आई जिसके बाद केंद्र सरकार के लिए राज्यों को मुआवजा देने में काफी मुश्किल आने लगी।

तीन साल में ही क्यों आ गया संकट 

समस्या पिछले दो साल में शुरू हुई जब जीएसटी मुआवजे के संग्रह में कोई बढ़त नहीं हुई और राज्यों के बकाये में 14 फीसदी के चक्रवृद्धि दर से बढ़त होने लगी। कोरोना संकट या लॉकडाउन से काफी पहले अगस्त 2019 में ही देश की आर्थिक हालत इतनी खस्ता थी कि जीएसटी कलेक्शन राज्यों को दिए जाने वाले हिस्से का आधा भी नहीं हो पाया था।

कम्पेनसेशन सेस काफी नहीं 

केंद्र सरकार ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि जीएसटी के तहत निर्धारित कानून के तहत राज्यों की हिस्सेदारी देने के लिए उसके पास पैसे नहीं है। सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है। कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे।

अगर सरकार कुछ वस्तुओं पर कम्पेनसेशन सेस बढ़ा भी दे तो राजस्व में सालना 2000 से 3000 करोड़ रुपये की ही बढ़त होगी। इस साल अप्रैल से जून के बीच कम्पेनसेशन सेस के रूप में सिर्फ 14,675 करोड़ रुपये जमा हो पाये। इसमें से 7,665 करोड़ रुपये तो अकेले जून महीने का है जब अनलॉक-1 हुआ था। केंद्र सरकार ने जून महीने में राज्यों को नवंबर से फरवरी तक का 36,400 करोड़ रुपये का बकाया जारी किया। फरवरी से अगस्त तक का सरकार ने अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया था।

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2022 के बाद भी जारी रहेगा कम्पनसेशन सेस

बैठक में यह तय हुआ है कि लग्जरी और कई अन्य तरह की वस्तुओं पर लगने वाले कम्पनसेशन सेस को 2022 से भी आगे बढ़ाया जाएगा। यानी कार, सिगरेट जैसे प्रोडक्ट पर कम्पनसेशन सेस आगे भी लगता रहेगा, राज्यों को नुकसान से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया है। नियम के मुताबिक यह जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ पांच साल तक लगना था। पहले जीएसटी उपकर लगाये जाने की समयसीमा जून 2022 थी।

राज्यों को विकल्प

केंद्र ने राज्यों को जीएसटी संग्रह में कमी की भरपाई के लिए बाजार से या फिर रिजर्व बैंक से कर्ज लेने का विकल्प दिया है। केंद्र के अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में राज्यों को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में 2.35 करोड़ रुपये के राजस्व की कमी का अनुमान है। केंद्र के आकलन के अनुसार करीब 97,000 करोड़ रुपये की कमी जीएसटी क्रियान्वयन के कारण है, जबकि शेष 1.38 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की वजह कोविड-19 है। इस महामारी के कारण राज्यों के राजस्व पर प्रतिकूल असर पड़ा है। केंद्र ने इस कमी को पूरा करने राज्यों को दो विकल्प दिए हैं। इसके तहत 97,000 करोड़ रुपये रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली विशेष सुविधा से या पूरा 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से लेने का विकल्प दिया गया है।- अभिनय आकाश

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