Tipu Sultan को अंग्रेजों ने नहीं, नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा ने मारा? इतिहास की नजर से टीपू सुल्तान की 'विवादित विरासत' को समझें

Tipu Sultan
prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 20 2023 5:52PM

टीपू सुल्तान को लेकर सियासी तूफान अभी थमने वाला नहीं है। कम से कम कर्नाटक विधानसभा चुनाव तक तो बिल्कुल भी नहीं।

मैसूर के 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान देशभक्त हैं या अत्याचारी इस पर बहस कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही तेज हो चली है।  हाल ही में, कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री अश्वथ नारायण का दावा है कि टीपू को अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि दो वोक्कालिगा सरदारों, उरी गौड़ा और नन्जे गौड़ा ने मारा था। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पहली बार ये दावा मैसूर में हुए एक नाटक में किया गया था। राइटर और डायरेक्टर अडांडा सी करियप्पा ने इस नाटक टीपू निंजा कनसुगलु यानी रीयल ड्रीम ऑफ टीपू को लिखा है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब टीपू सुल्तान चर्चा का विषय बने हैं। साल 2014 में भी टीपू सुल्तान ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे। इसकी शुरुआत कर्नाटक से गणतंत्र दिवस परेड की एक झांकी से हुई थी। परेड में टीपू सुल्तान की एक बड़ी मूर्ति थी। वहीं कुछ ही महीनों में कर्नाटक के विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं तो एक बार फिर से सुल्तान पर संग्राम तेज हो गया है। कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि टीपू की संतानों का अंत होगा तो ओवैसी कह रहे हैं कि हमने नाम ले लिया है हमारा अंत करके दिखाओ। टीपू सुल्तान को लेकर सियासी तूफान अभी थमने वाला नहीं है। कम से कम कर्नाटक विधानसभा चुनाव तक तो बिल्कुल भी नहीं। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि टीपू सुल्तान कौन थे, उनकी मौत कैसे हुई और कर्नाटक चुनाव में हर बार वो मुद्दा क्यों बन जाते हैं?

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कर्नाटक के मंत्री का विवादित बयान, पूर्व सीएम ने भी किया पलटवार

पिछले सप्ताह कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री सी.एन. अश्वथ नारायण ने एक विवादास्पद बयान दिया, जब उन्होंने जनता से कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को 18 वीं शताब्दी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान की तरह "खत्म" करने के लिए कहा। नारायण ने कहा था, ‘‘टीपू का बेटा सिद्धारमैया आएगा... आप टीपू को चाहते हैं या सावरकर को? हमें टीपू सुल्तान को कहां भेजना चाहिए? उरी गौड़ा और नांजे गौड़ा ने क्या किया? उसी तरह उन्हें भी बाहर कर दिया जाना चाहिए और भेज दिया जाना चाहिए। सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘उच्च शिक्षा मंत्री अश्वथ नारायण ने लोगों से उसी तरह मुझे भी मार डालने की अपील की है कि जिस तरह टीपू को मारा गया था। अश्वथ नारायण, आप लोगों को भड़काने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? खुद ही बंदूक ले आओ।

टीपू सुल्तान की कब्र पर पहुंचे बसपा सांसद

अमरोही से सांसद दानिश अली का एक विवादित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें दानिश ने खुद को टीपू सुल्तान का फॉलोर बताते हुए कहा है कि वो देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। यानी टीपू सुल्तान को देश का पहला फ्रीडम फाइटर बना दिया गया। ये वीडियो टीपू सुल्तान की कब्र से बनाया गया। अब दानिश ने नलिन कतिल को टीपू सुल्तान विवाद में सीधी चुनौती भी दी है। बीएसपी सांसद वीडियो में कहते नजर आते हैं कि मैं इस वक्त भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान साहब के मजार पर हूं। मुझे फक्र है कि मैं टीपू सुल्तान का फॉलोअर हूं। दानिश अली ने कहा कि मैं उन लोगों को चैलेंज करना चाहता हूं जो लोग गोडसे के फॉलोअर्स हैं। जो हिन्दुस्तान में सबसे पहले आतंकवादी के फॉलोवर हैं। वो आज ये चैलेंज कर रहे हैं कि टीपू सुल्तान को मानने वालों को इस देश में रहने का हक नहीं है या जीने का हक नहीं है। मैं ऐसे उन सब लोगों को कहना चाहता हूं कि मैं वो ही खासतौर से बीजेपी के कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष का बयान मैंने देखा। इसलिए मैं श्रीरंगपटना आया हूं। जहां टीपू सुल्तान साहब की शहादत हुई। उस जगह पर मैं मौजूद हूं। 

कौन था टीपू सुल्तान? 

इतिहास की किताबों में हम पढ़ते आए हैं कि टीपू सुल्तान मैसूर का शेर था। लेकिन कोडावा समुदाय, भाजपा और कुछ दक्षिणपंथी संगठन के मुताबिक, टीपू धार्मिक आधार पर कट्टर था। जबरन उसने लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर इस्लाम कबूल कराया था। टीपू सुल्तान को लेकर पिछले कुछ सालों से राजनीतिक विवाद काफी हावी रहा है। मैसूर के सुल्तान हैदर अली के सबसे बड़े बेटे के रूप में टीपू सुल्तान 1782 में अपने पिता की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठे थे। शासक के रूप में उसने अपने प्रशासन में कई नई चीजों को लागू किया और लौह आधारित मैसूरियन रॉकेट का भी विस्तार किया। जिसे दुनिया का पहला रॉकेट भी कहा जाता है। उसके पिता के फ्रांसीसी के साथ राजनयिक संबंध थे। जिसकी वजह से टीपू सुल्तान को फ्रांसीसी अधिकारियों से सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त हुआ था। शासक बनने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उसने फ्रांसीसी के साथ मिलकर अपने संघर्ष में पिता की नीति को जारी रखा। साल 1784 में उन्होंने अंग्रेजों के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए और मैसूर के सुल्तान की उपाधि मिली।

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काफिरों के विनाश के लिए चमक रही तलवार

टीपू सुल्तान 18वीं सदी में मैसूर राज्य का शासक था। इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान को शेर-ए-मैसूर बताया गया है। टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली ने अंग्रेजों को कई युद्धों में हराया था। अंग्रोजों के साथ चौथे युद्ध में टीपू सुल्तान मारा गया। टीपू सुल्तान की तलवार बहुत मशहूर हुई थी जो wootx steel से बनी हुई थी। जिससे वो दुश्मन के लौह कवच को भी आसानी से चीर देता था। आप कह रहे होंगे कि ये सब कुछ तो हम किताबों में अक्सर पढ़ते आए हैं। ये तो बताया जाता है कि टीपू सुल्तान की तलवार के हैंडल पर कुरान की आयतें लिखी थी। लेकिन ये नहीं बताया गया कि तलवार के हैंडल पर लिखे लाइन का मतलब क्या है? टीवी सुल्तान की तलवार के हैंडल पर लिखा था कि मेरी विजयी तलवार काफिरों के विनाश के लिए चमक रही है। 

टीपू सुल्तान ने उजाड़े कई शहर, मंदिरों-चर्च को किया नष्ट

टीपू सुल्तान के बारे में दावा किया जाता है कि उसने अपने राज में हजारों महिला, पुरुष, बच्चों का कत्लेआम किया। टीपू सुल्तान ने सैकड़ों हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया और मैंगलोर, कुर्ग, कोयंबटूर, जैसी जगहों पर हजारों लोगों का धर्मांतरण भी किया। टीपू सुल्तान ने केवल हिन्दुओं बल्कि ईसाइयों पर भी अत्याचार किए। उसने चर्च नष्ट किए, धर्मांतरण करवाएं। लेकिन टीपू सुल्तान का ये क्रूर चेहरा किताबों में नहीं पढ़ाया जाता। टीपू सुल्तान ने 1788 में कर्नाटक के कोडागू (तब के कुर्ग) में हमला किया। टीपू की सेना ने कोडागू में कई कस्बों और गांवों को तबाह कर दिया था। कुशालपुरा, तालकावेरी, मदीकेरी गांव पूरी तरह से उजाड़ दिए। 40 हजार हिन्दुओँ को जबरन मुसलमान बनाया। इन गावों में सात हजार मुस्लिम परिवारों को बसाया गया था। इसी तरह से टीपू सुल्तान ने कालीकट के मालाबार में भी सेना भेजी थी। मालाबार में 7 हजार ब्राह्मणों समेत कई हिन्दू परिवार रहते थे। ये दावा किया जाता है कि टीपू सुल्तान ने 2 हजार ब्राह्मणों का कत्ल करवा दिया। सैकड़ों का जबरन धर्मांतरण करवाया। कई हिन्दुओं ने जंगलों में भागकर अपनी जान बचाई थी। 

मासूम बच्चों को उसकी मांओं के गले से बांधकर फांसी पर लटकाया 

कालीकट में टीपू सुल्तान की सेना के अत्याचार के बारे में पुर्तगाली यात्री फादर बाथलमयू ने अपनी किताब वॉयेज टू द ईस्ट इंडीज में लिखा है कि 30 हजार बर्बर सैनिकों के दल ने रास्ते में जो भी मिला उसे मार डाला। सैनिकों के साथ एक हाथी पर सवार टीपू सुल्तान भी चल रहा था। उसके पीछे 30 हजार सैनिकों का एक और दल था। कालीकट में ज्यादातर पुरुषों और महिलाओं को फांसी पर लटका दिया गया। मासूम बच्चों को उसकी मांओं के गले से बांधकर फांसी पर लटकाया गया। हिन्दुओं और ईसाइयों को कपड़े उतारकर हाथी के पैरों से बांध दिया गया था और हाथियों को तबतक घुमाया गया जबतक लोगों के शरीर के टुकड़े-टुकडे नहीं हो गए। 

टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने नहीं, वोक्कालिगा प्रमुख नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा ने मारा

पुराने मैसूर क्षेत्र में एक वर्ग का दावा है कि टीपू की मृत्यु अंग्रेजों से लड़ते हुए नहीं हुई थी, बल्कि उन्हें दो वोक्कालिगा सरदारों उरी गौड़ा और नांजे गौड़ा द्वारा मारा गया था। हालांकि कुछ इतिहासकार इससे असहमति जताते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गौड़ा सरदारों द्वारा टीपू की हत्या की गई थी, शायद पहली बार मैसूरु में प्रस्तुत एक नाटक में कहा गया था। राइटर और डायरेक्टर अडांडा सी करियप्पा ने इस नाटक ‘टीपू निंजा कनसुगलु’ यानी Real Dreams Of Tipu को लिखा है। इतिहासकारों ने टीपू की मौत कैसे हुई, इस पर आरोप लगाने के लिए करियप्पा किताब और नाटक की आलोचना की। उन्होंने करियप्पा के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि "टीपू द्वारा 80,000 कूर्गियों का नरसंहार किया गया था," यह दावा करते हुए कि उस समय कूर्गी की वास्तविक आबादी 10,000 से अधिक नहीं हो सकती थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला वक्फ बोर्ड समिति के पिछले अध्यक्ष द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में, बेंगलुरु में अतिरिक्त शहर सिविल और सत्र न्यायालय ने पुस्तक के वितरण और बिक्री पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। मैसूर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व के प्रोफेसर एन एस रंगराजू ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उरी गौड़ा और नानजे गौड़ा हैदर अली के सैनिक थे जिन्होंने वास्तव में एक युद्ध में टीपू और उसकी मां को मराठों के चंगुल से बचाया था। हालांकि, चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान जब टीपू की मृत्यु हुई, तो लक्ष्मणमणि, ब्रिटिश, मराठों और निजामों के बीच एक संधि हुई। इसके तहत टीपू पर हमले के लिए समय, स्थान और अन्य रणनीतियों सहित सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि टीपू की सेना इतनी शक्तिशाली और अभेद्य थी कि कोई भी दो व्यक्ति उसे आसानी से नहीं मार सकते थे।

टीपू कर्नाटक में चुनावी मुद्दा क्यों बनते हैं? 

टीपू सुल्तान के वंशजों का कहना है कि राजनीतिक लाभ के लिएटीपू सुल्तान की छवि के "लगातार खराब होने" को समाप्त करने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं। हमारे पूर्वज टीपू सुल्तान का नाम क्यों घसीटा जा रहा है और हर मौके पर इसका राजनीतिकरण किया जा रहा है? राजनीतिक दल जब भी उन्हें सुविधाजनक लगे, उनके नाम का उपयोग नहीं कर सकते।  टीपू सुल्तान के वंशज साहबज़ादा मंसूर अली ने कहा कि  हम अब से उनके नाम का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने के लिए मजबूर होंगे।

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