जब राज्यपाल के लिए बंद हों विधानसभा के दरवाजे तो जनता का भविष्य क्या होगा?

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अभिनय आकाश । Dec 9 2019 4:24PM

संविधान बचाने का नारा लगाने वाली ममता बनर्जी कुछ इस तरह बीच सड़क पर संविधान की धज्जियां उड़ा रही हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का विधानसभा जाने का कार्यक्रम था। लेकिन विधानसभा का ताला बंद था और राज्यपाल अंदर नहीं जा सके।

देश में यह पहली बार नहीं है जब राज्यपाल का किसी मुख्यमंत्री के साथ मतभेद या विवाद हुआ है। देश के तकरीबन हर बड़े राज्य के राज्यपालों के साथ राज्य सरकार का टकराव होता रहा है। कभी राज्यपाल के बयान तो कभी फैसले राजनीतिक टकराव के कारण बने हैं। हालांकि, बंगाल में यह पहली बार हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के खिलाफ सीधा मोर्चा खोला हो। वैसे तो पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने भी उत्तर 24 परगना के सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सीएम पर सवाल उठाए थे। जिसके बाद ममता बनर्जी ने राज्यपाल पर धमकी देने और अपमान करने का आरोप भी लगाया था। लेकिन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य की सीएम ममता बनर्जी के बीच शीत युद्ध चरम पर है। कोलकाता में विधानसभा के इस गेट से उस गेट तक भागते पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़। ममता बनर्जी के राज्य में एक राज्यपाल की हालात ये है कि विधानसभा में उनके घुसने पर पाबंदी लग गई है। राज्यपाल जो राज्य के संवैधानिक पद की वरिष्ठता सूची में सबसे आगे हैं। वो पैदल सड़क प र भागते दिखें। आखिर ये सब क्या हुआ और क्यों हुआ ये जानने के लिए थोड़ा फ्लैश बैक में चलकर ममता बनर्जी का एक वीडियो देख लीजिए।

जब फरवरी 2019 में सारदा चिटफंड घोटाले के आरोपी और कोलकाता के कमिश्नर राजीव कुमार के समर्थन में ममता बनर्जी ने संविधान बचाओ के नाम से एक धरना दिया था। और अब संविधान बचाने का नारा लगाने वाली ममता बनर्जी कुछ इस तरह बीच सड़क पर संविधान की धज्जियां उड़ा रही हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का विधानसभा जाने का कार्यक्रम था। लेकिन विधानसभा का ताला बंद था और राज्यपाल अंदर नहीं जा सके।

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सवाल है कि जब स्पीकर ने लंच कैंसिल कर दिया तो राज्यपाल लंच करने क्यों पहुंचे। गेट बंद था तो इसलिए विधानसभा के बाहर अफरा-तफरी मच गई। गेट पर ही खड़े-खड़े राज्यपाल ने मीडिया को अपनी फरियाद सुना दी। 

इसके बाद जब राज्यपाल कोलकाता यूनिवर्सिटी गए तो वहां भी ताला लटका दिया गया। यूनिवर्सिटी की गेट के बाहर राज्यपाल बेबस खड़े दिखें। लेकिन न तो ताला खुला और न ही वाइस चांसलर मिलने आए। 

ममता बनर्जी की पहचान अलग-अलग लोगों की नज़रों में अलग अलग तरह से है। जनाधार वाली नेता, गरीबों की मसीहा, दयालु पर तीखे तेवर, दबंग व तानाशाह, ईमानदार पर भ्रष्टाचार की अनदेखी करने वाली शासक। जैसे कई सवाल ममता बनर्जी की पहचान से जुड़े हैं। लेकिन ममता दीदी के राजनैतिक सफ़र की कामयाबी पर किसी को कोई शक नहीं। किसी की नज़रों में वह हिटलर दीदी हैं तो कोई उन्हें बंगाल के सियासत की मज़बूरी बताता है। बंगाल की राजनीति में हमेशा से ममता अपने चाहने वालों के दिलों में और विरोधियों के निशाने पर लगातार बनी रही। विरोधियों के लिए भले ही ममता कठोर, तुनकमिजाज और मनमानी चलाने वाली हों पर अपने सपोर्टरों की नज़रों में मोम की तरह नरम दिल रखने वाली दीदी उनके हर गम और तकलीफ में उनके साथ खड़ी रहने वाली राजनेता हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव में जनता की ममता मोदी सरकार पर जमकर बरसी और बंगाल ने तो 2 सीटों से 18  सीटों पर पहुंचा दिया। नतीजतन कभी लाल किले का ख्वाब देखने वाली ममता अब कोलकाता का किला बचाने के लिए हाथ-पैर मार रही हैं। ममता बनर्जी पर तानाशाही के आरोप लगते रहे हैं। मोदी सरकार से ममता का बैर पुराना है।

मोदी सरकार के आयुष्मान भारत योजना से पश्चिम बंगाल ने खुद को अलग किया।

नवंबर 2018 में कोलकाता में CBI  को जांच की इजाजत नहीं दी गई। 

दिसंबर 2016 में कोलकाता में सेना के रूटीन अभ्यास पर सवाल उठाए और केंद्र पर बंगाल में सेना तैनाती का आरोप लगाया। 

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इसके अलावा 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक को रैली के लिए हेलीकाप्टर उतारने की इजाजत नहीं दी। यही नहीं राज्यपाल के लिए विधानसभा का गेट बंद करवाने वाली ममता सरकार ने जिलों के दौरों के लिए भी उन्हें हेलीकाप्टर मुहैया नहीं करवाया था। हालांकि जब राज्य की कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में होती है तो राज्यपाल भी ममता पर सीधे हमले करने से नहीं चूकते हैं। एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने बंगाल को लेकर कहा भी था कि खुली आंख से और खुले कान से ये कहता हूं कि बंगाल में भय का वातावरण है। राजनीतिक विरोधियों को पुलिस की मदद से दबाया जा रहा है। ऐसे में ऐसा तो नहीं कि राज्यपाल के इन्हीं तीखे हमलों की वजह से ममता बनर्जी बिफरी पड़ी हैं। लेकिन राज्यपाल के साथ विधानसभा के बाहर जो हुआ वो संविधान पद पर बैठे व्यक्ति का अपमान है। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल बनाम सरकार की जंग इस मुहाने तक पहुंच गई की धनखड़ ने ममता द्वारा उन्हें चीज बड़ी है मस्त कहने का आरोप भी लगाया। राज्यपाल धनखड़ ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'मुख्यमंत्री ने मेरे लिए कथित रूप से कहा- तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त।' राज्यपाल धनखड़ ने अपने ट्वीट में एक बांग्ला अखबार की खबर को साझा किया है। इस खबर में कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के बारे में बात करते हुए बिना उनका नाम लिए हुए कहा, 'तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त।' 

किसी भी राज्य का राज्यपाल उस विधानमंडल का प्रथम सदस्य होता है। राज्यपाल को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त है जिसके हनन पर राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। 

राज्यपाल की शपथ, राष्ट्रपति जैसी

आर्टिकल 60 में राष्ट्रपति के शपथ संबंधी उल्लेख है तो आर्टिकल 159 में राज्यपाल के शपथ के संबंध में जानकारी दी गई है। इसमें अंतर सिर्फ इतना है कि राष्ट्रपति देश के लिए शपथ लेते हैं तो राज्यपाल संबंधित राज्यों के लिए।

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चुनौतीहीन शक्तियां -

संवैधानिक रूप से राज्यपाल राज्य में देश के राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है। इन्हीं मिली शक्तियां राज्य में मुख्यमंत्री से ज्यादा होती हैं। 

- राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करे। उसके इस अधिकार को राष्ट्रपति अथवा देश के किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

- अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्यपाल की अनुमति के बिना राज्य सरकार न तो विधानसभा का सत्र बुला सकती है और न ही स्थगित कर सकती है।

- राज्यपाल राज्य सरकार को बर्खास्त कर किसी भी अन्य दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकता है।

- राज्य विधानसभा में धन विधेयक तभी पेश किया जाता है, जब राज्यपाल ने विधेयक पेश करने के लिए अपनी अनुमति दे दी हो।

- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करता है और राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही विधेयक अधिनियम के रूप में प्रवृत्त होता है। यदि वह हस्ताक्षर नहीं करता है तो उसके अधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती।

अब जरा जगदीप धनखड़ के राजनीतिक सफर को भी 4 लाइनों में समझ लेते हैं। 

जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं इसके अलावा वह राजस्थान के झुंझुंनूं से लोकसभा के लिए निर्वाचित हो चुके हैं। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने झुंझुंनूं से अपना प्रत्याशी उतारने की बजाय गठबंधन के तहत जनता दल प्रत्याशी जगदीप धनखड़ का समर्थन किया था। लेकिन जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें वहां हार का मुँह देखना पड़ा। धनखड़ किशनगढ़ क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। जाटों को ओबीसी दर्जा दिलाने के लिए धनखड़ ने काफी प्रयास किये। वह विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं। उन्हें जुलाई 2019 में पश्चिम बंगाल बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

बहरहाल, पहले राज्यपाल धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कम से कम एक-दूसरे के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी। अब तो दोनों-एक-दूसरे का नाम लिए बिना खुल कर बोलने लगे हैं। राज्यपाल ने ममता बनर्जी और राज्य सरकार पर राज्यपाल पद की गरिमा कम करने, अपमानित करने जैसे आरोप लगाए हैं तो ममता ने उनका नाम लिए बिना कहा है कि कुछ लोग समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच लगातार चौड़ी होती खाई लोकतंत्र के हित में नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ पंडित कहते हैं, "अब राज्यपाल और राज्य सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री खुल कर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। इससे संवैधानिक संकट पैदा होने का खतरा बढ़ रहा है। राज्य में अगले साल सौ से ज्यादा नगर निगमों और उसके बाद वर्ष 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इस तरह की तल्की से न मुख्यमंत्री का भला होगा और न ही संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल का और बीच में बेचारी जनता मूक दर्शक की तरह यूं ही सारा तमाशा देखती रहेगी।

- अभिनय आकाश

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