दो बार परिणाम भुगत चुके हैं अखिलेश, तीसरी बार फिर नहीं मान रहे मुलायम की बात

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ज्ञात हो कि मुलायम सिंह ने पहले कांग्रेस के साथ फिर बसपा के साथ चुनावी गठबंधन करने से बेटे अखिलेश को रोका था लेकिन वह नहीं माने थे और उसका नतीजा यह रहा कि दोनों पार्टियां अपनी स्थिति को मजबूत कर सपा का साथ छोड़ गईं।

लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अब समाजवादी पार्टी नवम्बर में होने वाले उपचुनाव की तैयारियों में जुट गई है और इसके लिए वह एक नया दल भी तलाश कर रही है कि वह उसके साथ गठबंधन कर सके। मिली जानकारी के मुताबिक समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के साथ गठबंधन कर सकते हैं। 

दरअसल, ओम प्रकाश राजभर ने शुक्रवार को अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। प्रदेश में 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर यह मुलाकात राजनीतिक गलियारों में महत्तवपूर्ण मानी जा रही है। समाजवादी पार्टी मुख्यालय में दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में आधा घंटे तक मुलाकात हुई, इस मुलाकात में क्या बात हुई इसका पता नहीं चल सका है। सपा के एक नेता ने बताया कि उत्तर प्रदेश की एक दर्जन से अधिक सीटों पर विधानसभा उप चुनाव होने हैं, क्योंकि कई विधायक लोकसभा चुनाव जीत गये हैं। इसके अलावा 2022 विधानसभा चुनाव भी हैं। संभवत: इन्हीं मुददों पर दोनों नेताओं में बात हुई होगी। 

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश को गठबंधन करने से मना किया है। ज्ञात हो कि मुलायम सिंह ने पहले कांग्रेस के साथ फिर बसपा के साथ चुनावी गठबंधन करने से बेटे अखिलेश को रोका था लेकिन वह नहीं माने थे और उसका नतीजा यह रहा कि दोनों पार्टियां अपनी स्थिति को मजबूत कर सपा का साथ छोड़ गईं।

दूसरी तरफ मोदी-शाह की मैजिकल जोड़ी को शिकस्त देने के लिए अब नई रणनीति भी बनाई जा रही है। आपको बता दें कि मोदी-शाह की जोड़ी ने अभी भी साल 2014 से लगभग हर चुनाव जीते हैं। ऐसे में अब राजनीतिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पार्टियां अब दिग्गज नेताओं को अपनी कमान सौंपने जा रही है क्योंकि युवाओं के रहते हुए पार्टी को फायदा कम घाटा ज्यादा सहना पड़ा है। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने कमान राहुल गांधी के हाथों सौंपी थी और राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन वह मोदी-शाह की जोड़ी से पार नहीं पा पाए और लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद नेताओं ने माना कि कमान सोनिया गांधी को सौंपी जाए ताकि वह अपने तजुर्बे से पार्टी की इज्जत को मिट्टी में मिलने से बचा सकें।

ठीक यही परिस्थिति अब समाजवादी पार्टी की भी देखने को मिल रही है। पिता मुलायम के मना करने के बावजूद अखिलेश ने विगत वर्षों में गठबंधन किए थे और पार्टी के जनाधार को भी कमजोर कर दिया था। जिसके बाद ऐसा कहा जाने लगा कि अखिलेश यादव पार्टी को बचाने के लिए क्या मुलायम सिंह यादव को कमान सौंप सकते हैं। हालांकि इस मामले पर अभी तक कोई भी औपचारिक टिप्पणी नहीं हुई है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अखिलेश इस दिशा की तरफ भी विचार कर रहे हैं।

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जब गठबंधन का फायदा बसपा को मिला

लोकसभा चुनाव के दरमियां समाजवादी पार्टी ने अपनी चिर विरोधी पार्टी बसपा के साथ हाथ मिला लिया और मिलकर चुनाव अभियान चलाया। ऐसा कहा जाने लगा कि उत्तर प्रदेश का महागठबंधन मोदी-शाह के मैजिक को तोड़कर नया इतिहास लिखेगा। लेकिन हुआ इसका उलटा...बबुआ को बुआ का साथ भारी पड़ा। जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो बबुआ आजमगढ़ से जीत गए लेकिन पार्टी के खाते में महज 5 सीटें ही आईं। सपा के लिए यह चुनाव परिणाम इतने निराशाजनक थे कि अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव खुद अपनी पारंपरिक सीट कन्नौज से हार गईं थीं। हालांकि बुआ को खासा फायदा हुआ। साल 2014 में एक भी सीट जीत नहीं पाने वाली बसपा ने इस बार 10 सीटों पर कब्जा कर लिया था।

नतीजे सामने आने के बाद अखिलेश खुद का ठगा हुआ महसूस कर रहे थे और आगे कुछ होता उससे पहले ही बुआ ने बबुआ का साथ छोड़ दिया और उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन क्यों किया था।

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शिवपाल के साथ जब सुलह कराने में जुटे मुलायम

लोकसभा चुनाव में निराशाजनक नतीजे सामने आने के बाद मुलायम सिंह यादव अपने बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल के बीच सुलह कराने में जुट गए, लेकिन उनका प्रयास सफल नहीं हुआ। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को समाजवादी पार्टी में विलय कराने से साफ इनकार जो कर दिया था। 

मुलायम सिंह यह चाहते थे कि 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले शिवपाल की पार्टी का सपा में विलय हो जाए क्योंकि खाटी वोटर ही सपा का मुख्य जनाधार है और शिवपाल को पार्टी से अलग किए जाने के बाद यह वोटबैंक उनके खाते में चला गया।

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सुभासपा के साथ गठबंधन के पीछे का गणित

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की वजह से सुभासपा को चार सीटें हासिल हुई और उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया लेकिन आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर मतभेद के बाद दोनों पार्टियों के बीच तनातनी देखने को मिली। इसके साथ ही सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुखर हो गए, जिसके चलते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। 

ऐसा कहा जाता है कि पूर्वांचल के कुछ इलाकों में खासकर राजभर बिरादरी में सुभासपा का अच्छा दबदबा है। उत्तर प्रदेश में चार प्रतिशत के करीब राजभर समुदाय के लोग हैं और आजमगढ़, मऊ, घोसी, बलिया, सलेमपुर, जौनपुर, लालगंज, गाजीपुर तथा देवरिया सीटों पर राजभर समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव है। पूर्वांचल में करीब 20 प्रतिशत इनकी आबादी है और पूर्वी उप्र में यादव बिरादरी के बाद सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रभाव वाली बिरादरी राजभर समुदाय की ही है। इसलिए अखिलेश सुभासपा के साथ गठबंधन के बारे में विचार कर रहे हैं। 

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राजभर समुदाय को लुभाने के लिए भाजपा ने बनाया कैबिनेट मंत्री

कड़ी आलोचना सहने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओम प्रकाश राजभर को अपनी कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था लेकिन हालही में हुए कैबिनेट विस्तार में उन्होंने राजभर समुदाय से आने वाले अनिल राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया। ताकि नवम्बर में होने वाले उपचुनाव के दरमियां राजभर वोटबैंक को लुभाया जा सकें।

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