ज्योतिरादित्य हार की समीक्षा तो तब करें जब बैठकों में बवाल शांत हो

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी तत्कालीन मध्य प्रदेश के गुना से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी गई। जिसके बाद दो धड़ों में बांटी गई सीटों में से 41 सीटों की जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर आई।

नयी दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अब कांग्रेस खेमे में घमासान मचा हुआ है। पंजाब, राजस्थान और अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के आपसी टकराव की जानकारियां सामने आ रही हैं। हालांकि नेता अभी भी इस बात से परेशान हैं कि इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद उत्तर प्रदेश में मौजूद कांग्रेस के दो गढ़ों में से एक किला कैसे ध्वस्त हो गया। कांग्रेस ने पहले तो महागठबंधन बनाने का प्रयास किया लेकिन जब यह मुमकिन नहीं हो पाया तो अकेले ही उत्तर प्रदेश का मोर्चा संभाल लिया और इसकी जिम्मेदारी दो महासचिवों को मिली। क्रमश: एक के पास पूर्वी उत्तर प्रदेश का तो दूसरे के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिम्मा सौंपा गया।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी तत्कालीन मध्य प्रदेश के गुना से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी गई। जिसके बाद दो धड़ों में बांटी गई सीटों में से 41 सीटों की जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर आई। यह भार इतना ज्यादा था कि सिंधिया संभाल नहीं पाए और 41 की 41 सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। सिंधिया ने न केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश खोया था बल्कि राहुल के उस विश्वास को भी खो दिया था जब राहुल और प्रियंका ने पहली बार यूपी में एक साथ रोड शो करते हुए कहा था कि हमारा ध्यान विधानसभा में अपनी सरकार बनाने की तरफ है। 

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सिंधिया ने तोड़ा गुना की जनता का विश्वास

अतिआत्मविश्वास से ग्रसित कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन तो अब सभी को स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है। जहां ज्योतिरादित्य ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटें गंवा दीं वहीं उनके हाथ से उनका गृहक्षेत्र भी निकल गया। भाजपा प्रत्याशी केपी यादव ने करीब डेढ़ लाख वोटों के अंतर से ज्योतिरादित्य को हराया था और वह इस बात से चिंतित थे कि आखिर वह हारे कैसे? जबकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब गुना से दिवंगत माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ा था तो वह हार गए थे। लेकिन यह सीट सिंधिया घराने ने गंवाई नहीं थी लेकिन इस बार की मोदी सुनामी के सामने ज्योतिरादित्य को भी नतमस्तक होना पड़ा। हाल ही में ज्योतिरादित्य हार के बाद पहली बार शिवपुरी पहुंचे। जहां पर उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में अन्नदाता और जनता को भगवान माना है। जनता का जो फैसला है वह उन्हें शिरोधार्य है। 

शिवपुरी के दौरे का बाद वापस उत्तर प्रदेश की तरफ सिंधिया का ध्यान

गृहक्षेत्र का दौरा कर ज्योतिरादित्य ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर के साथ मिलकर चुनाव में हार के कारणों की समीक्षा की। इसके लिए उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 10 जिले के नेताओं को चुना। समीक्षा की खबरें सामने आईं ही थी कि झड़पों की खबरों ने सुर्खियां बटोर लीं। सिंधिया ने दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थिति कांग्रेस के वॉर रूम में बैठक की। यहां पर पहले कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया की तू-तू मैं-मैं हुई बाद में झड़पों की भी तस्वीरें सामने आईं। 

बैठक में पहले तो गाजियाबाद से कांग्रेस नेता केके शर्मा ने वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की शिकायत की, जिस पर सिंधिया ने आपत्ति दर्ज कराई। आपत्ति दर्ज कराए जाने के बाद मामला इतना बढ़ गया कि दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। दरअसल केके शर्मा ने शिकायत करते हुए आजाद पर टिकट के लिए पैसे लेने के आरोप लगाए थे।

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आलाकमान प्रदेशों में नेताओं के प्रदर्शन से नाखुश

लोकसभा चुनाव में मिली हार को स्वीकार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता करते हुए नरेंद्र मोदी को जीत की बधाई दी थी। इसके बाद हार की समीक्षा के लिए सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाई गई, जिसमें राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की और यह कहा कि अब इस पद के लिए गांधी परिवार के किसी भी व्यक्ति के बारे में वरिष्ठ नेता विचार न करें। हालांकि बाद में सभी नेताओं ने राहुल गांधी को मनाने का प्रयास किया कि वह अपनी हठ को त्याग कर पार्टी का काम सुचारू तौर पर चलाने में मदद करें।

ऐसा कहा जा रहा था कि राहुल गांधी इस हार से इतने ज्यादा आहत हुए कि उन्होंने प्रदेश के नेताओं से मुलाकात करने से भी मना कर दिया। उन्होंने अपने बयान में कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश को सिर्फ 10 लोग मिलकर चला रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए कि संगठन के स्तर पर काम हो तथा हर कोई अपनी भागीदारी निभाए और निर्णायक भूमिका अदा करें। इतना ही नहीं राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट राहुल गांधी से मिलने उनके आवास पहुंचे थे लेकिन राहुल ने मिलने से मना कर दिया।

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राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मौजूदा हालातों की अगर समीक्षा की जाए तो इन राज्यों में कांग्रेस के धड़ों में फूंट स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। राजस्थान में जहां सचिन पायलट हार के लिए अशोक गहलोत को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो पंजाब में सिद्धू और अमरिंदर का विवाद शांत होने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ मध्य प्रदेश में आए दिन सरकार गिरने का डर कमलनाथ को सता रहा हैं तो उत्तर प्रदेश में ज्योतिरादित्य के साथ तू-तू मैं-मैं की खबरें सामने आ रही हैं।

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