वक्फ कानून की वैधता के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर अदालत ने केन्द्र से जवाब मांगा

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने, वक्फ कानून को संविधान का उल्लंघन और लोगों की निजी संपत्तियों का नियमन सिर्फ समान नागरिक संहिता के आधार पर किए जाने की घोषणा का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर बृहस्पतिवार को केन्द्र से जवाब मांगा।

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने, वक्फ कानून को संविधान का उल्लंघन और लोगों की निजी संपत्तियों का नियमन सिर्फ समान नागरिक संहिता के आधार पर किए जाने की घोषणा का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर बृहस्पतिवार को केन्द्र से जवाब मांगा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने देवेन्द्र नाथ त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी करते हुए प्रतिवादी को जवाब दाखिल करने का वक्त दिया।

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याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि भारत सरकार को गैर-मुसलमान नागरिकों को अलग रखते हुए वक्फ या धार्मिक संपत्तियों के संबंध में कानून बनाने का विधायी अधिकार नहीं है और एक कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है कि वह भारत के सभी नागरिकों को समान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक स्वतंत्रता मुहैया कराए और वक्फ अधिनियम जैसे कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है।

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याचिका में कहा गया है, ‘‘वक्फ अधिनियम, 1995 मनमाना है क्योंकि विधायिका के पास (भारतीय संविधान की) सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की एंट्री 10 और 28 के तहत ऐसा कानून बनाने का अधिकार नहीं है इसलिए माननीय अदालत को इसे (वक्फ कानून) रद्द कर देना चाहिए... एक कल्याणकारी राज्य द्वारा धार्मिक वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का नियमन किया जाना संविधान के प्रावधानों और खास तौर से अनुच्देद 14, 15 और 21 तथा संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है।’’ याचिका में यह भी कहा गया है कि वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन धार्मिक नियमों के अनुसार होता है और राज्य को अन्य धर्मों को दरकिनार कर इसका नियम करने की अनुमति नहीं है। मामले में अगली सुनवाई अब 28 जुलाई को होनी है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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