कर्नाटक सरकार स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित करे: उच्च न्यायालय

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है ताकि कर्नाटक लोक सेवा आयोग (केपीएससी) द्वारा सरकारी नौकरियों की भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।

बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है ताकि कर्नाटक लोक सेवा आयोग (केपीएससी) द्वारा सरकारी नौकरियों की भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके। अदालत ने कहा है कि उपयुक्त उम्मीदवारों को वंचित नहीं किया जाना चाहिए और पूरी ईमानदारी के साथ न्याय होना चाहिए। अदालत ने कहा कि ऐसे में यह आवश्यक है कि भर्ती के दौरान केपीएससी को अपना मेडिकल बोर्ड और विशेषज्ञ चुनने की खुली छूट नहीं दी जाये।

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उच्च न्यायालय ने उक्त निर्देश उस हालिया फैसले में दिए, जिसमें अदालत ने पाया कि बॉरिंग एंड लेडी कर्जल अस्पताल के डॉ. जी नंदकुमार द्वारा जारी चिकित्सा प्रमाणपत्र में गलत जानकारी दी गई। प्रमाणपत्र में एक उम्मीदवार के वर्णांधता से पीड़ित होने के साथ ही उसकी ऊंचाई को आवश्यक ऊंचाई से आधा सेंटीमीटर कम दर्शाया गया था। बाद में केपीएससी ने इस चिकित्सा प्रमाणपत्र के आधार पर 16 जुलाई 2021 को मोटर वाहन निरीक्षक पद के आवेदक शिवनंनजे गौड़ा बी एन की उम्मीदवारी खारिज कर दी थी। गौड़ा ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण का रुख किया, जिसने केपीएएसी के रुख को बरकरार रखा।

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बाद में गौड़ा ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जहां न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति बी रचैया की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने 18 अप्रैल, 2022 को गौड़ा की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में तथ्यों का पता लगाने के लिए मिंटो नेत्र चिकित्सा अस्पताल में मेडिकल जांच कराने का निर्देश दिया। अदालत को सौंपी गई रिपोर्ट से पता चला कि याचिकाकर्ता वर्णांधता से पीड़ित नहीं है और मोटर वाहन निरीक्षक के पद के लिए योग्य है। उल्लेखनीय है कि वर्णांधता, आंखों का एक रोग है जिसमें रोगी को किसी एक या एक से अधिक रंगों का बोध नहीं हो पाता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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