उपराष्ट्रपति नायडू ने दलबदल को स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जाने पर दिया जोर
![m-venkaiah-naidu-speaks-on-anti-defection-law-in-amravati m-venkaiah-naidu-speaks-on-anti-defection-law-in-amravati](https://images.prabhasakshi.com/2019/8/m-venkaiah-naidu_650x_2019082719503137.jpg)
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि 10 वीं अनुसूची में यह अस्पष्ट है। दलबदल, विलय के संबंध में स्पष्ट परिभाषा की जरूरत है।
अमरावती। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने मंगलवार को कहा कि अब समय आ गया है जब दलबदल को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए क्योंकि संविधान की 10 वीं अनुसूची में यह ‘अस्पष्ट’ है। नायडू ने कहा कि 10 वीं अनुसूची में यह अस्पष्ट है। दलबदल, विलय के संबंध में स्पष्ट परिभाषा की जरूरत है। इस तरह के मामलों का समयबद्ध तरीके से निपटारा भी किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए विशेष न्यायाधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति के रूप में दो साल पूरे करने पर नायडू विजयवाड़ा में एक विशेष कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। पिछली विधानसभा में 23 वाईएसआर कांग्रेस विधायकों के दलबदल कर तेलुगु देशम पार्टी में शामिल होने का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि उनका कार्यकाल समाप्त हो गया लेकिन मामला अब भी लंबित है।
इसे भी पढ़ें: संसद के नये भवन सहित विभिन्न विकल्पों पर सरकार कर रही है विचार: नरेन्द्र मोदी
दलबदल करने वाले कुछ विधायकों ने मंत्रियों के रूप में भी काम किया। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि 2009 के चुनाव (लोकसभा) का एक मामला अब भी अदालत में लंबित है। उन्होंने कहा कि वह तमिलनाडु के एक लोकप्रिय नेता हैं जो अभी एक विवाद में उलझे हुए हैं। लेकिन मैं नाम का खुलासा नहीं करूंगा। उन्होंने 2009 से 2014 तक का कार्यकाल पूरा किया। 2014 भी चला गया और हम 2019 में हैं, लेकिन 2009 का मामला अब भी लंबित है। एक राजनीतिक दल के दूसरे में विलय पर उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग का क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि अयोग्यता, दलबदल से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायाधिकरणों की आवश्यकता है। अगर वह समय-सीमा के भीतर मामलों का निपटारा करने में विफल रहे तो (अध्यक्ष के खिलाफ) किसी भी कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं है।
नायडू ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधिकरण स्थापित करने पर भी जोर दिया। नायडू ने उन धारणाओं को भी दूर करने की कोशिश की कि वह जिस पद पर हैं,वह उन पर थोपा गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि बहुत से लोग क्या सोचते हैं, लेकिन मैं उस पर ध्यान नहीं दूंगा। उपराष्ट्रपति का पद मुझ पर थोपा नहीं गया था। उन्होंने कहा कि मुझे उस समय (जब उन्होंने उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया) पार्टी छोड़ने का दुख हुआ और यह भी कि मैं लोगों के साथ सक्रिय नहीं रह सकता। यह कोई रहस्य नहीं है। लेकिन मैंने उपराष्ट्रपति के पद को एक नया आयाम देने की कोशिश की और सभी लोगों (सभी वर्गों) के साथ जुड़ने और खुद को प्रबुद्ध करने की कोशिश की।
इसे भी पढ़ें: अनुच्छेद 370 पर बोले उपराष्ट्रपति, इसे समाप्त करना वक्त की मांग है
नायडू ने कहा कि लोगों को सही रास्ता दिखाना उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारियों में से एक है। उपराष्ट्रपति के रूप में, नायडू ने अब तक 22 देशों का दौरा किया है क्योंकि कूटनीति दूसरों को प्रभावित करने का एक प्रभावशाली तरीका है।
We must build the required infrastructure for skilling existing and new entrants to the labor force. Here I would urge the Industry and Industry bodies such as CII, FICCI, ASOCHAM, and others to play a more pro-active role in creating skilled manpower for various sectors. pic.twitter.com/kjNROzVmgR
— VicePresidentOfIndia (@VPSecretariat) August 27, 2019
अन्य न्यूज़