ऑपरेशन सिंदूर स्वराज की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता का बेहतरीन उदाहरण, पुणे में बोले अमित शाह

Amit Shah
ANI
अंकित सिंह । Jul 4 2025 4:34PM

शाह ने कहा कि युद्ध की कला के कुछ नियम कभी कालबाह्य नहीं होते...युद्ध में व्यूह रचना का महत्त्व, त्वरा का महत्त्व, समर्पण का भाव, देशभक्ति का भाव और बलिदान का भाव...यही सेनाओं को विजय दिलाते हैं, बस हथियार बदलते रहते हैं...और इन सभी गुणों का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण 500 वर्षों के भारतीय इतिहास में केवल श्रीमंत बाजीराव पेशवा में ही मिलता है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि भारत के सशस्त्र बल और नेतृत्व 'स्वराज' या देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह बहुत अच्छे ढंग से प्रदर्शित हुआ। पुणे में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में मराठा राजनेता और जनरल पेशवा बाजीराव प्रथम की घुड़सवार प्रतिमा के अनावरण के बाद बोलते हुए, भाजपा नेता ने यह भी कहा कि जब भी वह नकारात्मक विचारों से ग्रस्त होते हैं, तो उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज और बाजीराव की याद आती है।

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शाह ने कहा कि एनडीए बाजीराव के स्मारक के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है क्योंकि यह एक ऐसा संस्थान है जहां सैन्य नेतृत्व को प्रशिक्षित किया जाता है। शाह ने कहा कि पुणे की धरती स्वराज के संस्कार का उद्गम स्थान है। 17वीं शताब्दी में यहीं से स्वराज का आलेख देशभर में पहुंचा। जब अंग्रेजों के सामने फिर से स्वराज के लिए लड़ने का समय आया तो सबसे पहले सिंह गर्जना तिलक महाराज ने की – 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।' एक व्यक्ति अपने जीवन में अपने देश के लिए कितना कर सकता है, इसका उदाहरण भी महाराष्ट्र की पुण्यभूमि से ही वीर सावरकर जी ने प्रस्तुत किया। 

उन्होंने कहा कि तीनों सेनाओं के प्रमुख जहाँ से अभ्यास करके निकलते हैं, उस नेशनल डिफेंस अकादमी में श्रीमंत बाजीराव की मूर्ति लगने से जो प्रेरणा मिलेगी, उससे भारत की सीमाओं को कोई छू नहीं पाएगा। शाह ने कहा कि युद्ध की कला के कुछ नियम कभी कालबाह्य नहीं होते...युद्ध में व्यूह रचना का महत्त्व, त्वरा का महत्त्व, समर्पण का भाव, देशभक्ति का भाव और बलिदान का भाव...यही सेनाओं को विजय दिलाते हैं, बस हथियार बदलते रहते हैं...और इन सभी गुणों का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण 500 वर्षों के भारतीय इतिहास में केवल श्रीमंत बाजीराव पेशवा में ही मिलता है। 

अमित शाह ने कहा कि जब पूरा दक्षिण भारत आदिलशाही, कुतुबशाही, निजामशाही और इमादशाही से पीड़ित था और उत्तर भारत मुगलों के अधीन था... ऐसे समय में एक 12 साल के बालक ने देश को स्वतंत्र कराने और हिन्दवी स्वराज की स्थापना का संकल्प लिया... शिवाजी महाराज जी की यह वीरता अकल्पनीय है। उन्होंने युवाओं के मन में स्वराज के संस्कार भरने का काम किया। शिवाजी महाराज जी के बाद धर्मवीर संभाजी महाराज, वीर ताराबाई, धनोजी-संतोजी — कई सारे लोगों ने शिवाजी महाराज की परंपरा को आगे बढ़ाया

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शाह ने कहा, ‘‘जब भी मेरे मन में नकारात्मक विचार आते हैं, तो मैं आमतौर पर बाल शिवाजी और पेशवा बाजीराव के बारे में सोचता हूं कि वे प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच ‘स्वराज’ स्थापित करने में सक्षम रहे।’’ शाह ने कहा कि स्वराज की रक्षा करने की जिम्मेदारी अब 140 करोड़ भारतीयों पर है। उन्होंने कहा, ‘‘जब स्वराज की स्थापना के लिए लड़ाई लड़ने का समय आया तो हमने ऐसा किया। जब स्वराज की रक्षा के लिए लड़ाई की आवश्यकता होगी तो हमारी सेना एवं नेतृत्व निश्चित रूप से ऐसा करेंगे और ऑपरेशन सिंदूर इसका सबसे अच्छा उदाहरण था।’’

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