SYL नहर को लेकर पंजाब और हरियाणा आमने-सामने, 1966 से चल रहा विवाद

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यह मुद्दा उस वक्त और भी ज्यादा गर्मा जाता है जब दोनों राज्यों में अलग-अलग दल की सरकार होती है और अभी तो पंजाब में कांग्रेस नीति सरकार और हरियाणा में भाजपा नीति सरकार है।

चंडीगढ़। सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर को लेकर एक बार फिर से पंजाब और हरियाणा के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। एक तरफ जहां पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि अगर प्रदेश को हरियाणा के साथ पानी साझा करने को कहा तो पंजाब जलने लगेगा। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने पंजाब जाकर यह ऐलान कर दिया है कि वह सतलुज का पानी लेकर रहेंगे। जिसके बाद से यह विवाद काफी ज्यादा गर्माता जा रहा है। 

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सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा के बीच मध्यस्थता कराने का जिम्मा केंद्र सरकार को सौंपा था ताकि एसवाईएल नहर का काम पूरा कराया जाए। मगर दोनों राज्यों के बीच बात बनने से ज्यादा बिगड़ती जा रही है। आपको बता दें कि यह मुद्दा उस वक्त और भी ज्यादा गर्मा जाता है जब दोनों राज्यों में अलग-अलग दल की सरकार होती है और अभी तो पंजाब में कांग्रेस नीति सरकार और हरियाणा में भाजपा नीति सरकार है। ऐसे में मुद्दे का गर्माना तो स्वभाविक है। 

विशेषज्ञों ने बताया कि एसवाईएल विवाद पंजाब में जनभावना से जुड़ा हुआ है। यदि किसी पार्टी या फिर दल ने इस पर सहमति जताते हुए हरियाणा को पानी देना शुरू कर दिया या फिर इस पर सहमति ही जता दी तो फिर उस पार्टी को यहां की जनता सत्ता से उखाड़ फेकेगी और यह बात कैप्टन अमरिंदर सिंह अच्छी तरह से समझते हैं। 

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1966 से चल रहा है विवाद

दोनों राज्यों के बीच विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब पंजाब से अलग होकर हरियाणा का गठन हुआ। फिर 10 साल बाद केंद्र सरकार के दखल के बाद दोनों राज्यों के बीच 1976 में पानी के बंटवारे के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने पर सहमति बनी और केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की। अब पंजाब को अपने पानी में से आधा हिस्सा यानी कि 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी हरियाणा को देना था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आतंकवाद के दौर में एसवाईएल के निर्माण कार्य में जुटे इंजीनियर्स समेत 30 मजदूरों की हत्या कर दी गई जिसके बाद नहर निर्माण का काम बंद हो गया था। हालांकि फिर 1996 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर दिया और पंजाब ने कुछ वक्त बाद समझौते को मानने से इनकार कर दिया। साल 2004 में पंजाब सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक लाकर समझौते को खारिज कर दिया। इस विधेयक को पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एंग्रीमेंट एक्ट 2004 का नाम दिया गया है।

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