आखिर भारत का 'असली' दुश्मन कौन?

Sam Pitroda
ANI
कमलेश पांडे । Feb 19 2025 4:11PM

इसलिए स्वाभाविक सवाल है कि भारत का असली दुश्मन कौन है? तो जवाब होगा कि भारत के कई दुश्मन हैं और इसके कारण भी अलग-अलग हैं। जहां तक राजनीतिक नजरिए और भौगोलिक सीमाओं का सवाल है तो चीन हमारा दुश्मन नम्बर वन है।

जब ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा दलील देते हैं कि भारत को चीन को अपना दुश्मन नहीं मानना चाहिए, तो सवाल पैदा होता है कि आखिर इंडिया गठबंधन के मुख्य घटक समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने चीन को भारत का दुश्मन नम्बर वन क्यों करार दिया था? 

दरअसल, 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर 2020 के गलवान घाटी हिंसक झड़प तक, क्रमशः उसके पहले या इसके बाद भारत को लेकर चीन के जो अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार दिखते आए हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि चीन भारत का मजबूत दुश्मन है। नेहरू-मोदी की मित्रता की भावना को उसने कुचला है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से पता चलता है कि भले ही ईसाईयत और इस्लाम से सम्भाव्य मुकाबले के लिए हिंदुत्व (भारत) को बुद्धत्व (चीन) की जरूरत पड़ेगी, लेकिन इसके लिए दोनों देशों को समझदारी भरी दूरदर्शिता दिखानी पड़ेगी, अन्यथा वैश्विक परिस्थितियों की धर्मांध चक्की में दोनों देश पिसे जाएंगे और युगों-युगों तक पछताएंगे।

इसलिए स्वाभाविक सवाल है कि भारत का असली दुश्मन कौन है? तो जवाब होगा कि भारत के कई दुश्मन हैं और इसके कारण भी अलग-अलग हैं। जहां तक राजनीतिक नजरिए और भौगोलिक सीमाओं का सवाल है तो चीन हमारा दुश्मन नम्बर वन है। वहीं, पाकिस्तान दुश्मन नम्बर 2, बंगलादेश दुश्मन नम्बर 3, नेपाल दुश्मन नम्बर 4, श्रीलंका दुश्मन नम्बर 5, मालदीव दुश्मन नम्बर 6, म्यामांर दुश्मन नम्बर 7, अफगानिस्तान दुश्मन नम्बर 8 और भूटान दुश्मन नम्बर 9 हैं। इन सबकी दांवपेंच भरी नीतियों से भारत किसी न किसी रूप में परेशान रहता है, क्योंकि अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस और पश्चिमी देशों के शह पर ये भारत विरोधी नीतियों पर बहुधा अमल करते आए हैं। 

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वहीं, सांस्कृतिक नजरिए से हिन्दू विरोधी होने के कारण कट्टर इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध आदि के आंतरिक गठजोड़ भी भारत के लिए आस्तीन के सांप जैसे हैं। क्योंकि पाकिस्तान, तुर्किये, ईरान आदि की शह पर कभी मुस्लिम देशों के संघ द्वारा, तो कभी ईसाई देशों के संघ द्वारा और इनके धर्मांध कारोबारियों द्वारा भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचे जाते हैं। साथ ही जैसे भारतीय मूल वाले सिख धर्म से जुड़े विदेशी लोगों को कनाडा-यूएसए द्वारा, दलित बौद्धों को चीन द्वारा भड़काया जाता है, अलगाववाद को बढ़वाया जाता है, वह भी भारत के भविष्य से दुश्मनी जैसा ही है। क्योंकि इनको शह देने वाले मुल्क भारत के हिंदुओं की जातीय और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काकर न केवल धर्मांतरण करवाते हैं, बल्कि गृह युद्ध के बीज भी यत्र-तत्र-सर्वत्र बुनते रहते हैं। दलित-ओबीसी साहित्य, साम्प्रदायिक इतिहास को शह आदि इनके सांस्कृतिक औजार बन चुके हैं।

वहीं, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में गुटनिरपेक्षता, सत्य व अहिंसा से अभिप्रेरित वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया जैसी उदात्त सोच से ग्लोबल साउथ मतलब तीसरी दुनिया के देशों के हितों की वकालत के चलते भी पश्चिमी राष्ट्र कनाडा, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली आदि भारत से कभी प्रत्यक्ष और कभी परोक्ष शत्रुता रखते आए हैं।

हालांकि, कड़वा सच यह है कि भारत के असली शत्रु हमारे मूढ़ राजनेता हैं, जो 'महाभारत' काल से अभिप्रेरित सार्थक नीतियों को प्रश्रय देने तथा राष्ट्रवाद-हिंदूवाद को संरक्षित करने के बजाय पश्चिमी लोकतंत्र प्रेरित उस क्षुद्र धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते आए हैं जो एक अंतर्राष्ट्रीय नैतिक महामारी समझी जाती है। चूंकि इसके सिद्धांत और व्यवहार में काफी अंतर दुनिया के देशों में पाया जाता है, इसलिए एशियाई संदर्भ में यह धर्मनिरपेक्षता भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति को कुचलने का एक बौद्धिक हथियार समझी जाती है। 

इसके अलावा दलित-महादलित, पिछड़ा-अत्यंत पिछड़ा की जातीय अवधारणा, आदिवासी और आर्य के अंतर्राष्ट्रीय विभेद, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के धार्मिक विभेद, भाषाई क्षेत्रवाद और एक समान कानून बनाने के बजाय आभिजात्य वर्गों के हितों के मुताबिक कानून निर्माण और इनको लेकर बहुमत-अल्पमत की आत्मघाती राजनीति ऐसे संवैधानिक सवाल हैं जिसका विवेकसम्मत समाधान हमारे राजनेताओं को देना चाहिए लेकिन वह पीछे 75 साल में वह इस मामले में विफल रहे हैं। 

इस नजरिए से संविधान संरक्षण को लेकर अविवेकी न्यायिक हठ और कुतर्क भी एक बड़ी वजह है जिससे धर्मनिरपेक्षता जैसी टुच्ची सोच लाभान्वित है। वहीं जातीयता आदि विधि व्यवस्था के सवाल पर प्रशासनिक पूर्वाग्रह भी एक राजनैतिक त्रासदी ही है। इसलिए भारत के इस असली शत्रु को यदि हमलोग पहचान लिए, वैदिक संस्कृति के मुताबिक यहां के जनमानस को ढाल लिए, राजनीतिक अश्वमेध यज्ञ की पुनः शुरुआत कर लिए, तो भारत के जितने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष शत्रु हैं, सबके दांत खट्टे किए जा सकते हैं। 

निःसन्देह, बदलते विश्व की यही डिमांड भी है, जिसको लेकर भारत के लोगों के बीच सांस्कृतिक व राजनीतिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इससे अखण्ड भारत यानी महाभारत के सपनों को पुनः हासिल करना आसान हो जाएगा। हमारा देश विश्व गुरु और सोने की चिड़िया बन जाएगा।

अब बात पुनः सैम पित्रोदा के बयानों की। ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने भले ही एक इंटरव्यू में कहा कि चीन से खतरे को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इसलिए भारत को चीन को अपना दुश्मन मानना बंद कर देना चाहिए। ऐसा करके उन्होंने भाजपा और सपा दोनों पर निशाना साध दिया। सपा तो मित्रतापूर्ण सम्बन्धों के चलते चुप रही लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उनके बयान आलोचना की है। लिहाजा, पित्रोदा के बयान के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है। इस बीच पार्टी ने उनके बयान से खुद को अलग कर लिया है। इस संबंध में कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "सैम पित्रोदा के चीन पर व्यक्त किए गए कथित विचार कांग्रेस के विचार नहीं हैं।" 

सवाल है कि चीन के बारे में पित्रोदा का नजरिया ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा भी चीन को लेकर अक्सर ढुलमुल ही रही है। तभी तो ब्रेक के बाद मोदी-चिनफिंग मिले और बंगलादेश जैसा भारत विरोधी कुकाण्ड हो गया। इसलिए चीन के सवाल पर भाजपा-कांग्रेस में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। चाहे इनकी राजनीतिक दलीलें पित्रोदा को लेकर कुछ भी हो। हां, उनके चीन सम्बन्धी बयानों से कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी की ईर्ष्या जरूर बढ़ेगी।

चूंकि कांग्रेस इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर रही है और यूपी में सपा के साथ उसके रिश्ते भी उतार-चढ़ाव भरे सियासी दांवपेंच वाले होते हैं, तो क्या यह समझा जाए कि पित्रोदा का यह बयान भी समाजवादी पार्टी की मौलिक विदेश नीति पर करारा तमाचा है। क्योंकि यूपी के कद्दावर मुख्यमंत्री रहे स्व. मुलायम सिंह यादव के पुत्र और सपा प्रमुख अखिलेश यादव, पूर्व मुख्यमंत्री, यूपी के राजनीतिक पैंतरों से अक्सर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी परेशान रहा करते हैं। यूपी के दो लड़के के नाम से मशहूर यह सियासी जोड़ी जब एकजूट रहती है तो कभी सफल तो कभी विफल होती है।

चूंकि सैम पित्रोदा राहुल गांधी के अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारों में शुमार किये जाते हैं, इसलिए उनके ताजा बयानों को एक तीर से कई शिकार करने की सियासी कवायद समझा जा रहा है। राजनीति में यही होता भी आया है। अमेरिका से लेकर चीन तक और भारत से जुड़े विभिन्न सुलगते सवालों पर सैम पित्रोदा अपनी अटपटी बयानबाजियों के लिए मशहूर रहे हैं। इसलिए कभी कांग्रेस उन्हें अपनी पार्टी से हटाती है तो कभी ससम्मान लाकर ओवरसीज कांग्रेस सम्बन्धी पुरानी जिम्मेदारियों को थोप देती है। 

बता दें कि यह पहला मौका नहीं है, जब उन्होंने इस तरह का विवादित बयान दिया हो। दरअसल उनके विवादित बयानों के फेहरिस्त लंबी है। उनके सात अटपटे बयान निम्नलिखित हैं, जिनमें से कुछ पर उन्होंने माफी भी मांगी है।

पहला, मई 2024 में सैम पित्रोदा पिछले साल द स्टेट्समैन को दिए एक इंटरव्यू में कहा भारतीय नागरिकों की तुलना चीनी, अफ्रीकी, अंग्रेजों और अरबों से की थी। उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा कि हम भारत जैसे विविधतापूर्ण देश को जोड़ कर रख सकते हैं, जहां पूर्वोत्तर राज्यों में लोग चीनी जैसे दिखते हैं, पश्चिम भारत में लोग अरब जैसे दिखते हैं, उत्तर के लोग व्हाइट जैसे दिखते हैं और दक्षिण भारतीय अफ्रीकी जैसे दिखते हैं।

दूसरा, अप्रैल 2024 में उन्होंने इनडायरेक्ट रुप में अमेरिका में लगाए जाने वाले विरासत टैक्स की वकालत करते हुए कहा था कि अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स लगता है। इसके तहत अगर किसी के पास 100 मिलियन डॉलर की संपत्ति है और वह मर जाता है, तो वह केवल 45 प्रतिशत प्रॉपर्टी ही अपने बच्चों को ट्रांसफर कर सकता है। बाकी 55 फीसदी संपत्ति सरकार ले लेती है। हालांकि, भारत में ऐसा नहीं। ऐसे में अगर कोई शख्स 10 अरब का मालिक है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसके बच्चों को उसकी पूरी राशि विरासत में मिलती है और जनता को कुछ भी नहीं मिलता है। ये ऐसे मुद्दा है जिस पर हमें बहस और चर्चा करने की जरूरत है।

तीसरा, जनवरी 2024 में सुधींद्र कुलकर्णी के एक लेख का हवाला देते हुए सैम पित्रोदा ने सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि संविधान के निर्माण में जवाहरलाल नेहरू ने बीआर आंबेडकर से ज़्यादा महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इस बयान पर भी बहस छिड़ गई और बाद में इसे वापस ले लिया गया।

चौथा, जून 2023 में राम मंदिर मुद्दे पर पित्रोदा की टिप्पणी को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया था। तब उन्होंने तर्क दिया कि बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों को छोड़कर धार्मिक मामलों को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा, "मुझे किसी भी धर्म से कोई दिक्कत नहीं है। कभी-कभार मंदिर जाना ठीक है, लेकिन आप उसे मुख्य मंच नहीं बना सकते।"

पांचवां, मई 2019 में भी पित्रोदा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर एक सवाल पर कहा कि जो हुआ तो हुआ। पिछले पांच साल में क्या हुआ, इस पर बात करें। इस टिप्पणी को लेकर भी उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। हालांकि, बाद में उन्होंने माफी मांग ली थी।

छठा, इसी तरह अप्रैल 2019 में सैम पित्रोदा ने मिडिल क्लास को स्वार्थी बताया था। तब उन्होंने कहा था कि अगर न्यूनतम आय योजना (NYAY) लागू की जाती है तो टैक्स थोड़ा बढ़ सकता है। ऐसे में मध्यम वर्ग को स्वार्थी नहीं होना चाहिए और उसका दिल बड़ा होना चाहिए। बाद में पीएम मोदी ने भी पित्रोदा की टिप्पणी के लिए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया था और आरोप लगाया कि कांग्रेस ज्यादा टैक्स लगाकर मध्यम वर्ग को दंडित करना चाहती है।

सातवां, फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद सैम पित्रोदा ने बालाकोट पर भारतीय वायु सेना द्वारा किए गए जवाबी हवाई हमलों पर सवाल उठाकर भी एक नए विवाद को जन्म दिया था। तब उनकी टिप्पणियों ने आतंकवादी घटनाओं पर भारत की प्रतिक्रिया और ऐसे संकटों के लिए उचित कूटनीतिक दृष्टिकोण पर बिल्कुल एक नई बहस छेड़ दी।

इससे साफ है कि राहुल गांधी के गुरू सैम पित्रोदा अपनी अंतर्राष्ट्रीय अहमियत बनाए रखने के लिए यह सब कुछ वो बोलते रहते हैं, ताकि भारत विरोधी पश्चिमी-पूर्वी देशों में उन्हें तवज्जो मिलती रहे। चूंकि वो कांग्रेस का दूसरा शशि थरूर बनना चाहते हैं, इसलिए थरूर भी भाजपा से सॉफ्टकार्नर रखते हैं। ऐसे लोग ही भारत के असली दुश्मन हैं। चूंकि इन जैसों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, इसलिए इनका भविष्य भी उज्ज्वल है, समुज्ज्वल है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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