बैंकिंग के चमकते सितारे चंदा कोचर पर कैसे लगा ग्रहण... यहां जानें पूरी कहानी
पढ़ाई में हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाली चंदा सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थीं, लेकिन फिर उन्होंने फाइनेंस का रूख किया और मुंबई के जय हिंद कालेज से बी–कॉम करने के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ कोस्ट अकाउंटेंट आफ इंडिया से पढ़ाई की।
नयी दिल्ली। छोटे छोटे कदमों से मंजिल तक पहुंचने का भरोसा रखने वाली आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व एमडी और सीईओ चंदा कोचर का जीवन और करियर एक साल पहले तक सिर्फ शीर्ष की ओर ही बढ़ रहा था। उन्होंने वह मुकाम भी हासिल किए, जिनके बारे में उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा था, लेकिन दोनों हाथों से दौलत और शोहरत के नजराने लुटाने वाली दुनिया, जब लेने पर आई तो उनकी नौकरी और रूतबा ही नहीं बल्कि मान सम्मान तक ले गई।
राजस्थान के जोधपुर में 17 नवंबर 1961 को जन्मीं चंदा कोचर के पिता रूपचंद अडवाणी जयपुर इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल और मां गृहिणी थीं। जयपुर के सेंट एंजेला सोफिया स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के दौरान ही चंदा के सिर से पिता का साया उठ गया। उस समय उनकी उम्र महज 13 वर्ष थी। पढ़ाई में हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाली चंदा सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थीं, लेकिन फिर उन्होंने फाइनेंस का रूख किया और मुंबई के जय हिंद कालेज से बी–कॉम करने के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ कोस्ट अकाउंटेंट आफ इंडिया से पढ़ाई की।
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पढ़ाई का सिलसिला यहीं नहीं रूका। उन्होंने प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। उनकी शिक्षा उनके जीवन में पहली स्वर्णिम सफलता लेकर आई, जब उन्हें मैनेजमेंट स्टडीज और अकाउंटेंसी में शानदार प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल दिया गया।
मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान ही चंदा की पहचान दीपक कोचर से हुई और दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई। कॉलेज के आखिरी दिन दीपक ने चंदा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। इस दौरान दोनों अच्छे दोस्त बने रहे। फिर दो साल बाद चंदा ने दीपक के सामने शादी का प्रस्ताव रखा और कुछ ही समय बाद दोनों ने शादी कर ली।
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करियर के सफर की बात करें तो वर्ष 1984 में चंदा ने आईसीआईसीआई बैंक में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर कदम रखा और यहां से उनके सपनों को पंख लगने शुरू हुए। इस दौरान उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी गई उन्होंने उसे बखूबी निभाया और अपनी प्रतिभा के दम पर बैंकिंग सेक्टर पर धीरे धीरे उनकी पकड़ मजबूत होने लगी।
चंदा को आईसीआईसीआई में दस बरस हो चुके थे और 1994 में आईसीआईसीआई संपूर्ण स्वामित्व वाली बैंकिंग कंपनी बन गई, जिसके बाद उन्हें असिस्टेंट जनरल मैनेजर की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। फिर वह डिप्टी जनरल मैनेजर, जनरल मैनेजर, 2001 में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, चीफ़ फ़ाइनेंशियल ऑफ़िसर बनाई गईं। चंदा की अगुवाई में ही बैंक ने रिटेल बिजनेस में कदम रखा और उसकी अपार सफलता का श्रेय भी चंदा को ही दिया गया।
शोहरत की बुलंदी की तरफ बढ़ते चंदा कोचर के कदमों की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2009 में फोर्ब्स पत्रिका ने विश्च की 100 शीर्ष महिलाओं की सूची में चंदा कोचर को 20वां स्थान दिया। यहां खास तौर से यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि इस सूची में सोनिया गांधी को 13वां स्थान दिया गया था। 2011 में देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण देकर भारत सरकार ने भी बैंकिंग सेक्टर में चंदा कोचर के योगदान को मान्यता दी। साल दर साल बैंक तरक्की की राह पर चलता रहा और देश दुनिया में चंदा को तरह तरह के पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा।
ICICI confirms Justice Sri krishna report finds #ChandaKochhar in violation of its code of conduct. Bank severs ties but this raises big questions about why the bank protected her for so long pic.twitter.com/vFxWgz0YTV
— barkha dutt (@BDUTT) January 30, 2019
चंदा की किस्मत के सितारे 2018 तक बुलंदी पर रहे, लेकिन उसके बाद जैसे शिखर से उतरने का सिलसिला शुरू हुआ। मार्च 2018 में उनपर अपने पति को आर्थिक फायदा पहुंचाने के आरोप लगे और मार्च में बैंक ने उनके खिलाफ स्वतंत्र जांच बिठा दी। इस सबके बीच कोचर ने छुट्टी पर जाने का निर्णय लिया और फिर इस्तीफा दे दिया। उसके बाद का घटनाक्रम उनके लिए बद से बदतर होता चला गया। आरोप सिद्ध होने तक उन्हें दोषी तो नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इतना तो तय है कि बैंकिंग की दुनिया का एक चमकता सितारा अपने अस्ताचल की ओर है।
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