विश्वासघाती चीन की कम्पनियों को बाहर का रास्ता दिखाने का समय आ गया है

chinese president

भारत में पाँव पसार रही चीन की कम्पनियों को भी बाहर का रास्ता दिखाना होगा। तानाशाह चीन को यह कड़ा संदेश देने की आवश्यकता है कि यह बदलता भारत है, वह 1962 वाला भारत सोचने की भूल न करे। भारत अब ताकतवर देशों की श्रेणी में है।

कोरोना वायरस को लेकर इस दिनों विश्व के निशाने पर आये चीन ने लद्दाख के गलवान घाटी पर दबदबे को लेकर जो आक्रामक रुख अख्तियार किया है उसका जवाब देना जरूरी है। एलएसी पर गलवान घाटी और पैंगाग पर अतिक्रमण किए चीन के सैनिकों द्वारा अस्थाई निर्माण की सूचना के बाद पहुंचे भारतीय सैनिकों से खूनी संघर्ष किया जिसमें भारत के कर्नल सहित 20 जवानों की शहादत हुई। यह क्षति देश बर्दाश्त नहीं कर सकेगा और समय पर इसका माकूल जवाब देना भी जरूरी है। इस घटना से चीन ने न केवल भारत के भरोसे पर विश्वासघात किया है बल्कि अपने दोहरे चरित्र का प्रमाण भी दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधरने के आसार थे मगर वर्तमान परिस्थिति ने वर्ष 1962 के युद्ध के बाद वाले हालात पैदा कर दिए हैं। 

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मित्रता की आड़ में शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाकर भारत को नीचे दिखाने की चीन की आदत बन गई है। वर्ष 2017 में डोकलाम घटना के बाद भी चीन को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने चेतावनी दी थी मगर चीन धूर्तता की पराकाष्ठा को पार कर चुका है। भारत लगातार संयम बरतते हुए विवाद सुलझाने का प्रयास कर रहा था लेकिन चीन उसे भारत की कमजोरी मान बैठा है। चीन से वर्ष 1962 युद्ध हारने के बाद भी समय-समय पर भारत से सीनाजोरी करता रहा है। वर्ष 1967 में भी सिक्किम बार्डर पर चीन के सैनिकों ने गोलीबारी की थी जिसमें भारत ने 80 सैनिक शहीद हुए जबकि चीन के 340 सैनिक मारे गए थे। इसके बाद वर्ष 1975 में भी अरुणांचल प्रदेश के तुलुंग ला में भी चीन के सैनिकों ने झड़प की जिसमें 4 भारतीय जवान शहीद हुए थे। यह झड़प बताती है कि चीन पर विश्वास करना बिल्कुल ठीक नहीं है।

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यह वक्त की मांग है कि देश आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े और भारतीय बाजारों से चीन निर्मित उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार हो। यह ठीक है कि भारत जुनूनी देश है और आक्रोश में क्षणिक बहिष्कार कर पुनः उन उत्पादों को अपना लेते हैं, मगर अब पानी सर से ऊपर बह चुका है और केंद्र सरकार को इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए चीन को आर्थिक चोट पहुंचानी होगी। साथ ही भारत में पाँव पसार रही चीन की कम्पनियों को भी बाहर का रास्ता दिखाना होगा। तानाशाह चीन को यह कड़ा संदेश देने की आवश्यकता है कि यह बदलता भारत है, वह 1962 वाला भारत सोचने की भूल न करे। भारत अब ताकतवर देशों की श्रेणी में है, जहां आधुनिकता के साथ भारी सैन्यबल है। इनके जुनून और जिद के आगे अन्य किसी भी देश के सैनिक परास्त हो जाएंगे। 

-अवनिन्द्र कुमार सिंह

दुर्गाकुंड, वाराणसी

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