पर्यावरण और जलवायु के समझदार रक्षक (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jan 15 2020 6:11PM

खबर है इसमें अपना सक्रिय योगदान देने के लिए खूबसूरती के प्रायोजकों ने दुनिया में पहली बार, मिस क्लाइमेट आयोजित कर पर्यावरण जागरुकता व जलवायु परिवर्तन की ईमानदार व संजीदा रक्षा करने के लिए अपने सशक्त कदम बढ़ा दिए गए हैं...

यह तथ्य स्थापित होता जा रहा है कि दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे, पर्यावरण और जलवायु के समझदार रक्षक बढ़ते जा रहे हैं। इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में दर्ज है कि पर्यावरण और जलवायु को  बचाने के लिए सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक बुद्धिजीवियों द्वारा अभी तक अथक प्रयास किए गए। यह प्रयास बहुत ज्यादा, बहुत संजीदा और हद से ज्यादा ईमानदार थे जिनकी सफलता सुनिश्चित की गई थी। सैंकड़ों क़ानून, हज़ारों सरकारी योजनाओं, लाखों सेमीनार, प्रतियोगिताएं और पुरस्कार, बुद्धिमान नेताओं के भाषण, करोड़ों के लाखों लुभावने विज्ञापन, अनगिनत अख़बारों में सचित्र समाचार के बावजूद अभी तक यह रहस्य है कि किसी को अभी तक यह समझ नहीं आ पाया कि पर्यावरण और जलवायु पूरी तरह से खुश क्यूं नहीं हुए। लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद उदास होने की ज़रूरत नहीं है। परेशान पर्यावरण की नई रक्षा के लिए अब नए प्रयोग जोर शोर से किए जा रहे हैं। 

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खबर है इसमें अपना सक्रिय योगदान देने के लिए खूबसूरती के प्रायोजकों ने दुनिया में पहली बार, मिस क्लाइमेट आयोजित कर पर्यावरण जागरुकता व जलवायु परिवर्तन की ईमानदार व संजीदा रक्षा करने के लिए अपने सशक्त कदम बढ़ा दिए गए हैं। ब्यूटी विद रेस्पोंसिबिटी में लिपटे आयोजन ने साबित कर दिया कि सुन्दर लोग ज्यादा ज़िम्मेदारी के साथ पर्यावरण की रक्षा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यह सचाई फिर स्थापित कर दी गई कि जागरूकता फैलाने से ही कितने ही काम संपन्न हो जाते हैं। यह सन्देश सबके शरीर में प्रवेश कर गया है कि सभी इको फ्रैंडली वस्त्र पहनने लगें तो कार्बन उत्सर्जन रुक सकता है।

यह अभिनव प्रयोग, पर्यावरणीय मामलों में हो रही आलोचना से परेशान सरकारों की ज़िन्दगी में हरित क्रान्ति ला सकता है। अच्छी बात यह है कि इस सम्बन्ध में विदेशों की बेहतर नक़ल की गई है जहां शो रूम्स में कब से ताज़ा आर्गेनिक ड्रेसेस मिल रही हैं। यह प्रयास, विशाल पर्यावरण रक्षक व जलवायु परिवर्तन रोकने वाला होगा, जब बड़े ही नहीं छोटे शहरों व गाँवों में भी ऐसे वस्त्र मिलने लगेंगे जिन्हें पहनकर घोषणा की जा सकेगी कि पर्यावरण दूषित होने से बच रहा है और जलवायु परिवर्तन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर सक्रिय सहयोग किया जा रहा है। लेकिन गरीब सत्य यह है कि हर कोई महंगे पर्यावरण मित्र वस्त्र खरीद नहीं सकता। ईको फ्रैंडली वस्त्र निर्माण में समय और पैसा लगता है तो हमेशा की तरह विकासजी के सहयोग से सही राष्ट्रीय वैकल्पिक योजना बनाकर, करोड़ों वोटरों का सहयोग लेकर सीधे सीधे कुदरत के उत्पादों को वस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

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गर्व की एक बात यह भी है कि हमारा वन क्षेत्र हर वर्ष बिना वृक्ष लगाए बढ़ रहा है। इस वर्ष होने वाले वृक्षारोपण अभियान के माध्यम से लम्बे चौड़े नर्म पत्ते उगा सकते हैं जिन्हें वस्त्रों के रूप में पहना जा सकता है। यह प्राकृतिक रूप से काफी व्यवहारिक कदम माना जाएगा। सबसे अच्छे गवाह, इतिहासजी बताते हैं कि लम्बा अरसा नंगे रहने के बाद, सभ्यता ने समझदार होते हुए पत्तों को भी वस्त्र बनाया था और अब जब सब, तरह तरह से नंगे हो रहे हैं तो सभ्यता को बचाने के लिए पुन पत्ते ओढ़ लेने में समझदारी है। यह काम कर्मठता से करने पर पर्यावरण व जलवायु की बड़ी मदद हो सकती है और रोज़गार की राष्ट्रीय समस्या भी हल हो सकती है। और हां, विश्वगुरु का रूतबा भी और ऊंचा हो सकता है।

- संतोष उत्सुक

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