पवार के मस्जिद में धमाके वाले झूठ ने मुंबई को जलने से कैसे बचाया

शरद पवार की जिंदगी से जुड़े किस्से को याद किया जाए तो बिना 1991 के उस दौर को याद किए पूरा नहीं किया जा सकता जिसकी टीस आज भी पवार को है। 1991 का वो साल था जब पवार को लगा कि वो हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने के सबसे करीब हैं। ये राजीव गांधी के बाद का युग था और कांग्रेस सत्ता में आई थी। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उन्हें रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा।
1977 का वो दौर था। देश में इमर्जेंसी लगने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वसंतदादा पाटिल उनकी जगह महाराष्ट्र के सीएम बने। बाद में कांग्रेस में टूट हो गई और पार्टी कांग्रेस (U) तथा कांग्रेस (I) में बंट गई। इस दौरान शरद पवार के गुरु यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। शरद पवार भी कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। वर्ष 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। बाद में जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने एक साथ मिलकर सरकार बनाई। वसंतदादा पाटिल सीएम बने रहे। इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने। जुलाई 1978 में शरद पवार ने अपने गुरु के इशारे पर कांग्रेस (U) से खुद को अलग कर लिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। मात्र 38 साल की उम्र में शरद पवार राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने।
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