पवार के मस्जिद में धमाके वाले झूठ ने मुंबई को जलने से कैसे बचाया

how-pawar-lie-about-blasts-in-mosque-saved-mumbai-from-burning
अभिनय आकाश । Nov 27 2019 12:00AM

शरद पवार की जिंदगी से जुड़े किस्से को याद किया जाए तो बिना 1991 के उस दौर को याद किए पूरा नहीं किया जा सकता जिसकी टीस आज भी पवार को है। 1991 का वो साल था जब पवार को लगा कि वो हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने के सबसे करीब हैं। ये राजीव गांधी के बाद का युग था और कांग्रेस सत्ता में आई थी। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उन्हें रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा।

1977 का वो दौर था। देश में इमर्जेंसी लगने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्‍गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। महाराष्‍ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शंकर राव चव्‍हाण ने हार की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। वसंतदादा पाटिल उनकी जगह महाराष्‍ट्र के सीएम बने। बाद में कांग्रेस में टूट हो गई और पार्टी कांग्रेस (U) तथा कांग्रेस (I) में बंट गई। इस दौरान शरद पवार के गुरु यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। शरद पवार भी कांग्रेस (U) में शामिल हो गए। वर्ष 1978 में महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। बाद में जनता पार्टी को सत्‍ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने एक साथ म‍िलकर सरकार बनाई। वसंतदादा पाटिल सीएम बने रहे। इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने। जुलाई 1978 में शरद पवार ने अपने गुरु के इशारे पर कांग्रेस (U) से खुद को अलग कर लिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। मात्र 38 साल की उम्र में शरद पवार राज्‍य के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री बने। 

इसे भी पढ़ें: शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस ने अनैतिक तरीके से सरकार बनाई: राम नाईक

शरद पवार की जिंदगी से जुड़े किस्से को याद किया जाए तो बिना 1991 के उस दौर को याद किए पूरा नहीं किया जा सकता जिसकी टीस आज भी पवार को है। 1991 का वो साल था जब पवार को लगा कि वो हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने के सबसे करीब हैं। ये राजीव गांधी के बाद का युग था और कांग्रेस सत्ता में आई थी। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उन्हें रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा। जिसका जिक्र शरद पवार अपनी आत्मकथा 'ऑन माय टर्म्स' में किया है। जिसमें लिखा है कि सोनिया गांधी ने मुझे 1991 में प्रधानमंत्री बनने दिया। वो नहीं चाहती थी कि कोई भी आजाद विचारों वाला शख्स प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस के बड़े नेता मुझे लंबी रेस का घोड़ा मानते हुए कहते थे कि अगर मैं पीएम बन गया तो ये गांधी परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा। 

इसे भी पढ़ें: सुप्रिया सुले पवार की महान विरासत की ‘योग्य उत्तराधिकारी’: मिलिंद देवड़ा

6 मार्च 1993 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का ताज शरद पवार को एक बार फिर मिला। तब का वो दौर सबसे कठिन था क्योंकि तभी सीएम पवार के सामने मुंबई धमाकों ने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया। जिसको लेकर शरद पवार ने अपनी जीवनी ‘ऑन माई टर्म्‍स’ में कई खुलासे किए। पवार ने इसमें 1993 में चौथी बार मुख्‍यमंत्री बनने के बाद हुए बम धमाकों को लेकर जिक्र किया है। किताब के अनुसार, पवार अफवाहों के फैलने से परेशान थे और शांति लाना चाहते थे। मुंबई में जिन 11 जगहों पर ब्लास्ट हुए थे वे सभी हिंदू बहुल इलाके थे। आतंकियों की मंशा यही थी कि ब्लास्ट के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल जाए। इसलिए उन्होंने टेलीविजन स्टूडियो से यह ऐलान किया कि मुंबई में 11 नहीं बल्कि 12 बम ब्लास्ट किए गए हैं। 12वां ब्लास्ट मस्जिद बांदेर इलाके में भी हुआ है। इससे दोनों ही समुदायों में यह संदेश गया कि समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया गया है। पवार ने बताया कि इसका उल्लेख उन्होंने जस्टिस श्रीकृष्ण कमिशन के सामने भी किया था और इस तात्कालिक निर्णय का कमिशन ने तारीफ भी की थी। पवार ने बताया कि प्रशासन संभालने के दौरान कभी कभी ऐसे हालात भी आते हैं, जब जनहित में आपको झूठ भी बोलना पड़ता है। पवार ने कहा कि उस झूठ का असर भी दिखा और अगले कुछ रोज में मुंबई की लाइफ दोबारा पटरी पर आ सकी।

इसे भी पढ़ें: उद्धव के बहुमत साबित करने के दावे पर फडणवीस का तंज, कहा- आंकड़े नहीं थे तो दावा क्यों किया

1999 का वो दौर था जब शरद पवार ने कांग्रेस से हटकर अपनी अलग पार्टी बनाई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। पवार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस में उनका ग्रोथ नहीं हो रहा था। ऐसे में वो देश के सबसे बड़े पद पर कांग्रेस में रहते हुए नहीं पहुंच सकेंगे। अपनी इसी महात्वकांक्षा के लिए उन्होंनेखुद की अलग पार्टी बना ली। उसी साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी थे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ये कहते हुए शरद पवार ने गठबंधन कर लिया कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा केंद्र पर लागू होता है, महाराष्ट्र पर नहीं। लेकिन आगे जाकर शरद पवार की पार्टी तीन बार महाराष्ट्र की सत्ता में कांग्रेस के साथ मिलकर आई। महाराष्ट्र में 1999 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनी और फिर 2004 व 2009 में भी शरद पवार की पार्टी महाराष्ट्र की सत्ता में रही। साल 2014 में शरद पवार ने महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनने के लिए अपने समर्थन का ऐलान कर दिया। जिसे शरद पवार की चूक कहे या राजनीतिक पैंतरा लेकिन इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ा। लोकसभा चुनाव के बाद एनसीपी के कई बड़े नेता पूर्व मंत्री और विधायकों का बीजेपी में शामिल होना शुरु हो गया। यहां तक की कई संस्थापक सदस्यों ने भी पवार का साथ छोड़ बीजेपी और शिवसेना का दामन थाम लिया। विधानसभा चुनाव से पहले तक कहा जाने लगा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस अब अपनी अंतिम सांसे गिन रही है। उसके सामने अस्तित्व का संकट छाने लगा है। लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान पवार ने राज्यभर का दौरा किया और 80 साल की उम्र में भी बारिश में भींग कर जो कैंपेन कर रहे थे उसने एक तरह से उनके प्रति सहानभूति पैदा की और एनसीपी को फायदा हुआ। 

इसे भी पढ़ें: सत्ता का समझौता तो फायदेमंद रहा पर विचारधारा से समझौता ले डूबेगा शिवसेना को

शरद पवार के राजनीतिक जीवन का तीसरा और सबसे बड़ा मोड़ जब शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही कहा कि शाम 5 बजे तक फडणवीस को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा उसके बाद तो बीजेपी की जमीन ही खिसक गई। पहले अजित पवार का इस्तीफा हुआ फिर फडणवीस का। जिस अजित पवार ने अंधेरी रात में उम्मीद का दिया फडणवीस के हाथ में दिया उसकी लौ पवार की आंधी में बुझ गई। 

इसे भी पढ़ें: शिवसेना को ''रिमोट कंट्रोल'' से CM की कुर्सी तक पहुंचाने वाले उद्धव

नारेयण राणे दावा कर रहे थे कि किसी भी कीमत पर सरकार बनवाएंगे, नरेंद्र मोदी तो अपने देवेंद्र की तुलन वसंतराव नाइक से करने लगे थे। राष्ट्रीय राजनीति के चाणक्य अमित शाह दिल्ली दरबार में बैठे सत्ता की चाबी घुमा रहे थे। वहीं छोटे पवार का साथ पाकर तो फडणवीस को लगने लगा कि अपना तो हो गया और बात बन गई। लेकि होना क्या होता है वो शरद पवार ने कर दिखाया। मानो ऐसे कि जिस जगह से खत्म आपकी बात होती है उस जगह से हमारी शुरुआत होती है। सुबह से तमाम लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टकटकी लगाए बैठे थे। लेकिन शरद पवार को इंतजार था कि अजित पवार इस्तीफा कब देते हैं। वो जानते थे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जो हो लेकिन अजित पवार का इस्तीफा तो तय है। दिल्ली में बैठे राजनीति के चंद्रगुप्त और चाणक्य की जोड़ी माने जाने वाले मोदी और शाह के सिपेहसालारों का मानना है कि वो अजेय हैं। लेकिन पवार ने बिना किसी शोर-शराबे के बता दिया कि आप दिल्ली में जो होंगे वो होंगे महाराष्ट्र में तो हम ही हम हैं। सियासत में खेल खराब कर देना क्या होता है ये हाल के वर्षों में पहली बार पवार ने बीजेपी को समझाया और वो भी पूरी तफ्सील के साथ और एक से एक दिग्गजों से भरी बीजेपी पवार के सामने बेचारी हो गई। 

 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़