कोयला खदान हादसे पर राजनीति करने की बजाय जरा कारणों पर भी गौर कर लेते

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दिनकर कुमार । Jan 4 2019 11:18AM

संगठित कोयला तस्कर पुलिस वालों, आयकर अधिकारियों और परिवहन अधिकारियों को निगरानी चौकियों पर रिश्वत देते हैं। वे सीसीटीवी कैमरा रहते हुए भी अपनी मनमानी करते हैं और कोयले को भंडारों में छुपा कर रखते हैं, फिर दूसरे राज्यों को भेजते हैं।

मेघालय के कोयला खदान में फंसे बाल मजदूरों के बचाव अभियान को लेकर राजनीति जारी है जबकि बचाव के तमाम प्रयास के बावजूद उनके परिवार वाले अब उम्मीद खोते जा रहे हैं। एक पखवाड़े से अधिक का वक़्त बीत चुका है जब पंद्रह बाल मजदूर पूर्व जयंतिया हिल्स जिले के शान गांव के पास एक रैट होल खदान के अंदर कोयला निकालने के लिए गए थे। खदान के भीतर पानी भर जाने की वजह से खदान धंस गया और मजदूर अंदर ही फंस गए। जैसे-जैसे समय गुजरता जा रहा है मजदूरों के जीवित बच निकलने की उम्मीद क्षीण होती जा रही है।

वैसे इस हादसे की खबर दुनिया के सामने शायद ही आ पाती। हादसे में जान बचाने में सफल रहे एक मजदूर साएब अली ने ही इस भीषण हादसे का विवरण मीडिया को बताया। इसके बाद राज्य सरकार ने बचाव अभियान शुरू किया लेकिन जरूरी उपकरण के अभाव में इस अभियान को ठीक से चलाया नहीं जा सका। उपकरण की प्रतीक्षा में काफी समय गुजर गया। फिर वायु सेना की तरफ से भारी पंप और उपकरण को बचाव अभियान में लगाया गया।


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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि आप पुल पर तस्वीरें खिंचवाना बंद कीजिए और खदान में फंसे बाल मजदूरों की सुरक्षा कीजिए। दूसरी तरफ मेघालय में कांग्रेस मांग कर रही है कि राज्य में रैट होल कोयला खनन को स्वीकृति मिलनी चाहिए और इसकी ठोस नीति बनाई जानी चाहिए। राज्य की सत्ताधारी एनपीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बचाव अभियान को लेकर संतोष व्यक्त कर रही है और इसके एक नेता ने बयान दिया है कि इसी तरह का एक हादसा 2012 में उस समय हुआ था जब कांग्रेस सत्ता में थी। उस समय दक्षिण गारो हिल्स जिले में खदान के अंदर फंसे 14 बाल मजदूरों की लाशों को कभी बाहर निकाला नहीं जा सका था।

  

मेघालय में कोयला खदान हादसों का सिलसिला वर्षों से चलता रहा है। रैट होल खनन की वजह से निर्दोष मजदूर अक्सर जिंदा ही दफन होते रहे हैं और जब तक इस अमानवीय किस्म के कोयला खनन पर पूरी तरह रोक नहीं लग जाती, भविष्य में भी दफन होते रहेंगे। 1992 में दक्षिण गारो हिल्स जिले में इसी तरह 30 मजदूर खदान के अंदर फंस गए थे और उनमे से आधे मारे गए थे। जो मारे गए उनके शवों को कभी बाहर नहीं निकाला जा सका। 2012 में गारो हिल्स में 15 मजदूर खदान हादसे में मारे गए। उनके शव भी बाहर नहीं निकाले जा सके। ज़्यादातर मजदूर नेपाल और बांग्लादेश के नागरिक हैं जो गरीबी की वजह से इस तरह जान जोखिम में डालकर कोयला खनन का काम करते हैं।

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जमीनी सच्चाई यही है कि मेघालय की सभी राजनीतिक पार्टियां स्थानीय लोगों की जीविका के साधन के हक में रैट होल कोयला खनन का समर्थन करती रही है। 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने रैट होल खनन को गैरकानूनी बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था और तर्क दिया था कि यह विज्ञान सम्मत नहीं है और पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। हाल ही में मेघालय के कुछ नागरिक समाज संगठनों ने जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश की है उससे एक अलग ही तस्वीर उभर कर सामने आई है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि भले ही कोयला खनन पर राज्य में एनजीटी की तरफ से रोक लगाई गई है लेकिन मेघालय में कई राजनेताओं के संरक्षण में धड़ल्ले से कोयला खनन किया जाता रहा है। इस बार जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें 30 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार ऐसे थे जो या तो कोयला खदानों के मालिक थे या कोयला खनन एवं परिवहन के साथ जुड़े हुए थे। इनमें से अब कई मंत्री भी बनाए जा चुके हैं।

मेघालय में कोयला खनन आज भी बेतरतीब और बाबा आदम के जमाने से प्रचलित तरीके से किया जा रहा है। कोई स्पष्ट नीति न होने की वजह से कई कोयला माफिया अपना वर्चस्व कायम कर चुके हैं। इसी तरह का भ्रष्टाचार पड़ोसी राज्य असम में भी है। यह अवैध कोयला खनन इसीलिए जारी रहा चूंकि एनजीटी ने रैट होल खनन पर रोक तो लगा दी लेकिन उसने अप्रैल 2014 से पहले निकाले गए कोयले के सीमित परिवहन की अनुमति दे दी। यही वजह है कि कोयला खनन जारी रहा और उनका परिवहन यह बता कर किया जाता रहा कि अप्रैल 2014 से पहले ही खनन किया गया था। यह पता लगाना लगभग नामुमकिन है कि जिस कोयले का परिवहन किया जा रहा है वह अप्रैल 2014 से पहले निकाला गया था या उसके बाद में निकाला गया।

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मेघालय से असम के कछार और करीमगंज जिले तक और फिर त्रिपुरा और बांग्लादेश तक, इसी तरह मेघालय से कार्बी आंगलोंग, धरमतुल, जागीरोड, जोराबाट और अन्य स्थानों तक कोयला से लदे ट्रकों को नकली चालान के जरिए भेजा जाता रहा है और भारी पैमाने पर राजस्व को नुकसान भी पहुंचाया जाता रहा है। संगठित कोयला तस्कर पुलिस वालों, आयकर अधिकारियों और परिवहन अधिकारियों को निगरानी चौकियों पर रिश्वत देते हैं। वे सीसीटीवी कैमरा रहते हुए भी अपनी मनमानी करते हैं और कोयले को भंडारों में छुपा कर रखते हैं, फिर दूसरे राज्यों को भेजते हैं। इस वर्ष असम में दो कोयला माफिया को गिरफ्तार किया गया। एक बराक घाटी से कोयला की तस्करी का काम संचालित कर रहा था तो दूसरा मेघालय के बर्नीहाट से गुवाहाटी के खानापाड़ा के बीच अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा था। पूछताछ के दौरान दोनों ने महत्वपूर्ण जानकारियां दी। बराक घाटी से पकड़े गए कोयला माफिया की डायरी से कई नेताओं, विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के नामों का पता चला है जिन्हें नियमित रूप से रिश्वत दी जाती रही थी। अभी तक किसी के खिलाफ सीआईडी और सीबीआई की जांच शुरू नहीं की गई है। इससे पता चलता है की कोयला माफिया की पहुंच किस कदर ऊपर तक है। 10 शीर्ष कोयला उत्पादक राज्यों में शामिल मेघालय और असम में कोयला खनन को गैरकानूनी तरीके से किए जाने की अनुमति राज्य सरकारों की तरफ से मिलती रही है और हमेशा इसका नतीजा गरीब श्रमिकों को भुगतना पड़ता है, जो रोज अपने जीवन को खतरे में डालकर कोयला खनन का काम करते हैं। 

-दिनकर कुमार

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