बापू की बातें करने की जगह राहुल गांधी और गौरव भाटिया ने की विवादित टिप्पणी

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तभी बोले जब वो मौन से बेहतर हो... यह महात्मा गांधी के विचार थे लेकिन क्या गांधी की बात करने वाले लोग आज उनके विचारो को अपनाते हैं। जवाब मिलेगा नहीं... क्योंकि आज के समय में लोगों को दिखने और छपने का शौक बहुत ज्यादा है।

तभी बोले जब वो मौन से बेहतर हो... यह महात्मा गांधी के विचार थे लेकिन क्या गांधी की बात करने वाले लोग आज उनके विचारो को अपनाते हैं। जवाब मिलेगा नहीं... क्योंकि आज के समय में लोगों को दिखने और छपने का शौक बहुत ज्यादा है। न्यू इंडिया में लोगों के बीच में बने रहने के लिए कुछ-न-कुछ करते रहना पड़ता है। तभी तो गांधी की बातों को अपनाने वाले या कहें गांधी को मानने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी बातें नहीं सुन रहे उनके नेता... सिर्फ भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी कुछ कम नहीं है। खुद को गांधी की विरासत बताने वाली कांग्रेस का शायद ही कोई नेता आज के समय में बचा हो जो मौन की बात करता हो... बयानों की सीरीज कहां से बनती है...बस एक नेता ने किसी मुद्दे पर कुछ कहा उसे बिना सुने हुए दूसरे ने अपनी प्रतिक्रिया दे दी और ये चेन बनती जाती है। हम आज गांधी के विचारों और इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं क्योंकि गांधी के नाम पर आज सिर्फ गांधी का ही विरोध हो रहा है। गांधी का विरोध यानी कि शांति का विरोध...

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गांधी को कितना मानते हैं राजनेता ?

वक्त अभी दिल्ली चुनाव का है... शांति, सद्भाव और स्वच्छता की हर कोई बात करता है लेकिन अपनाते कितना है वह उनके व्यवहारों और वक्तव्यों से आंका जाता है। खुद को महात्मा गांधी की पार्टी बताने वाली कांग्रेस ने आज अपने आधिकारिक ट्विटर पर गांधी को जमकर याद किया लेकिन वह भूल गए कि गांधी सिर्फ कांग्रेस के ही नहीं अपितु पूरे हिन्दुस्तान के थे...सिर्फ हिन्दुस्तान भी कहना गलत होगा क्योंकि विश्व में भी उन्हें ख्याति प्राप्त थी तभी तो अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के 75वें जन्मदिन पर एक संदेश लिखा था- जिसमें उन्होंने कहा था कि आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था...

खैर ये तो अलग बात हुई हम राजनेताओं की बात कर रहे थे...कांग्रेस ने कई सारी बापू की कहानियां और उनके विचारों को आज साझा किया लेकिन जब हम भाजपा के ट्विटर हैंडल पर अपनी नजर दौड़ाते हैं तो उसमें सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजघाट में महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने का वीडियो नजर आता है। 

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तो क्या प्रधानमंत्री को फॉलो नहीं करते राजनेता ?

ऐसा बिल्कुल नहीं है... आप भाजपा के किसी भी बड़े नेता का नाम उठा लीजिए और उनका सोशल मीडिया हैंडल चेक कर लीजिए... आप पाएंगे कि न्यू इंडिया के जमाने में किसी भी नेता या महात्मा को कभी भी ये लोग नहीं भूलते हैं न ही दूसरी पार्टियां भी तो आज महात्मा गांधी को कैसे भूल सकते हैं। जबकि खुद प्रधानमंत्री मोदी महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते हैं। 

गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम भाजपा नेताओं  ने आज याद किया। प्रेम के अरमानों में जिंदा रहने वाले बापू को कांग्रेस के तमाम आला नेताओं ने भी श्रद्धांजलि दी। 

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फिर गांधी के नाम पर क्यों फैलाई जा रही है नफरत ?

आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि और जिसे शहीद दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है और पुण्यतिथि के मौके पर कांग्रेस सांसद अपने क्षेत्र वायनाड पहुंचे हैं। जहां पर उन्होंने बापू के हत्यारे यानी की नाथूराम गोडसे का जिक्र किया। लेकिन गोडसे के नाम लेते-लेते उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम ले लिया...राहुल द्वारा नाथूराम गोडसे और पीएम मोदी की विचारधारा को एक समान बताना विवादित था... क्या आप लोगों ने सोचा है अगर बापू होते तो ऐसा कभी बोलते ? आप किसी की विचारधारा से सहमत नहीं है इसका मतलब यह तो नहीं कि आप उसे गलत ठहराए या उसे बोलने न दें... हम बात सिर्फ राहुल गांधी की टिप्पणी की नहीं कर रहे हैं। राहुल की टिप्पणी जितनी गलत थी उतनी ही ज्यादा गलत टिप्पणी भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया की है। 

गौरव भाटिया ने कहा कि सोने का चम्मच मुंह में रखकर बोलने वाले राहुल गांधी तुम्हारी विचारधारा तो हफ़ीज़ सईद से मिलती है, कुछ अंश ज़ाकिर नाइक के भी हैं और हां, अफ़ज़ल गुरु तो तुम्हारा गुरु है...

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अब आप लोग अपने विवेक का इस्तेमाल करिए क्या सही है और क्या गलत... और सोचिए कि अगर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अभी जिन्दा होते तो क्या वह ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने की आज्ञा देते ?  अगर नहीं तो क्या हमें उनके विचारों को अपनाने की जरूरत नहीं है ? सिर्फ अच्छा ज्ञान पढ़ने से अच्छाई नहीं आती है बल्कि उसे अपनाना पड़ता है और सबसे ज्यादा अच्छाई को आगे बढ़ाना पड़ता है।

क्यों दिए जा रहे हैं ऐसे बयान ?

बयानों के पीछे वजह साफ है...वोटर्स को साधने की... लेकिन चुनाव दिल्ली में हो रहे हैं और कांग्रेस नेता कभी जयपुर में युवा आक्रोश रैली करके तो कभी अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से भाजपा पर हमला बोलते हैं। सवाल यहीं पर खड़ा होता है अगर आपको रैली करनी ही थी तो क्या दिल्ली इसके लिए उपयुक्त स्थान नहीं था... या फिर दिल्लीवासी ये समझ लें कि कांग्रेसियों ने आम आदमी पार्टी और भाजपा के समझ अपने घुटने टेक दिए हैं।

जब हमने मीडिया रिपोर्ट्स को खंगाला तो पाया कि कांग्रेस चुनावी प्रचार करने के मामले में काफी पिछड़ी हुई है या ये कहें कि अभी तक उन्होंने इसकी शुरुआत ही नहीं की है। कहा ये भी जा रहा है कि वह बजट पेश होने के बाद वोटर्स को साधेंगे। यानि कि 1 फरवरी के बाद और 6 फरवरी की शाम 5 बजे से पहले कांग्रेस के आला नेता रैलियों पे रैलियां करेंगे अब ये देखना होगा कि कांग्रेस कि कुछ एक रैलियां का वोटर्स पर प्रभाव पड़ता है या फिर आम आदमी पार्टी और भाजपा द्वारा की गई ताबड़तोड़ रैलियों का।

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