भगवंत मान के गैर-जिम्मेदाराना बयान से मोदी के कूटनीतिक प्रयासों पर फिर सकता है पानी

इस बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई है और अपने बयान में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं की आलोचना वाली टिप्पणी की निंदा करते हुए इसे 'गैरजिम्मेदाराना' करार दिया है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं पर कटाक्ष करते हुए एक बेहद गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी की है जिसको लेकर विवाद गहरा गया है। देखा जाये तो राजनीति में एक दूसरे की आलोचना करना या विचारों से असहमति जताना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह टिप्पणी देश की विदेश नीति या प्रधानमंत्री की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जुड़ी हो, तब यह सिर्फ आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसके राजनयिक प्रभाव भी हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि भगवंत मान ने एक मीडिया ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह 140 करोड़ लोगों वाले देश में नहीं रहते, बल्कि 10,000 की आबादी वाले देशों का दौरा करते हैं।
इस बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई है और अपने बयान में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं की आलोचना वाली टिप्पणी की निंदा करते हुए इसे "गैरजिम्मेदाराना" करार दिया है। भगवंत मान का नाम लिए बिना मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार ‘‘राज्य के एक उच्च पदाधिकारी’’ द्वारा की गई उन अनुचित टिप्पणियों से खुद को अलग करती है, जिसमें मित्र देशों के साथ भारत के संबंधों की अनदेखी की गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमने ग्लोबल साउथ के मित्र देशों के साथ भारत के संबंधों के बारे में राज्य के एक उच्च पदाधिकारी द्वारा की गई कुछ टिप्पणियां देखी हैं।" उन्होंने भगवंत मान की टिप्पणी पर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा, "ये टिप्पणियां गैरजिम्मेदाराना और खेदजनक हैं तथा राज्य के किसी पदाधिकारी को शोभा नहीं देतीं।" जायसवाल ने कहा, "भारत सरकार मित्र देशों के साथ भारत के संबंधों को कमजोर करने वाली ऐसी अनुचित टिप्पणियों से खुद को अलग करती है।"
देखा जाये तो भगवंत मान को समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं केवल द्विपक्षीय या बहुपक्षीय बैठकें नहीं होतीं, बल्कि वे भारत की वैश्विक स्थिति, रणनीतिक भागीदारी, निवेश संभावनाओं और सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर को मजबूत करने का माध्यम भी होती हैं। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों के दौरान दिये गये बयान और घोषणाएं भारत की विदेश नीति का चेहरा बनती हैं। ऐसे में जब देश का एक मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से इन यात्राओं की खिल्ली उड़ाता है, तो विदेशी सरकारें और कूटनीतिक संस्थान भारत की आंतरिक एकता, राजनीतिक परिपक्वता और स्थायित्व पर सवाल उठा सकते हैं।
भगवंत मान को समझना चाहिए कि विदेशी राष्ट्र भारत के भीतर के राजनीतिक मतभेदों को सावधानी से परखते हैं। भगवंत मान जैसे नेताओं की टिप्पणियां यह संकेत दे सकती हैं कि भारत की विदेश नीति पर विपक्षी दलों में विश्वास की कमी है। इससे भारत की राजनयिक विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है, विशेष रूप से तब, जब भारत ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने और G20 जैसे मंचों पर मुखर भूमिका निभा रहा हो।
भगवंत मान को समझना चाहिए कि एक लोकतांत्रिक देश में आलोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है। लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि नेता राष्ट्रीय मंचों और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर सार्वजनिक बयान देते समय राष्ट्रीय हितों की मर्यादा का ध्यान रखें। प्रधानमंत्री विदेश में न केवल सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि पूरे भारत का भी। ऐसे में उनके प्रयासों का उपहास उड़ाना अंततः देश के सामूहिक सम्मान को नुकसान पहुंचा सकता है। विदेशी मीडिया भारतीय नेताओं की ऐसी टिप्पणियों को उद्धृत करता है और कई बार उन्हें संदर्भ से बाहर पेश कर भारत को नुकसान पहुँचाया जाता है। भगवंत मान की टिप्पणी भी इसी श्रेणी में आ सकती है, जिससे भारत की विदेश नीति को लेकर भ्रम फैल सकता है। यह बात निवेशकों, रणनीतिक भागीदारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भारत के प्रति धारणा को भी प्रभावित कर सकती है।
भगवंत मान को समझना चाहिए कि भारत जैसी उभरती वैश्विक शक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसके आंतरिक राजनीतिक मतभेद अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित नहीं करें। विदेश यात्रा जैसे संवेदनशील विषयों पर राजनीतिक बयानबाज़ी भारत की एकजुटता पर सवाल खड़े कर सकती है। इससे यह संदेश जा सकता है कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व राष्ट्रीय हितों पर राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता देता है, जो किसी भी देश की छवि के लिए सकारात्मक संकेत नहीं होता।
हम आपको यह भी बता दें कि भगवंत मान ने पहली बार हल्के स्तर का बयान नहीं दिया है। इससे पहले भी वह विवादित बयान दे चुके हैं जिससे भारतीय कूटनीति के लिए असहज स्थिति बनी है। इंटरनेट पर खोजने पर ऐसी मीडिया रिपोर्टें मिलती हैं कि भगवंत मान ने अपने विदेश दौरों पर (विशेषकर जर्मनी और यूके) अप्रत्यक्ष रूप से भारत में लोकतंत्र के हालात पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कथित रूप से कहा था कि "हम पंजाब में लोकतंत्र को जिंदा रखे हुए हैं जबकि अन्य राज्य दबाव में हैं।" इससे विदेशी राजनयिक समुदाय में यह संदेश गया था कि भारत के भीतर लोकतांत्रिक स्थिति पर निर्वाचित नेता भी असहमति जताते हैं। देखा जाये तो यह भारत के विरुद्ध प्रचार को बल देता है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री भगवंत मान की प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं पर की गई टिप्पणी एक सीमित राजनीतिक फायदे की मंशा से की गई हो सकती है, लेकिन इसके प्रभाव व्यापक और बहुआयामी हो सकते हैं। लोकतंत्र में आलोचना आवश्यक है, लेकिन ऐसा राष्ट्रीय हितों के साथ संतुलन बनाकर किया जाना चाहिए। कूटनीति केवल विदेश मंत्रालय की ही नहीं बल्कि सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी होती है इसलिए सभी को देश की वैश्विक प्रतिष्ठा के संरक्षण में अपनी भूमिका समझनी चाहिए और उसी के अनुरूप आचरण करना चाहिए। व्यक्तिगत बयानबाज़ी का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है यह बात भगवंत मान जैसे नेताओं को समझनी चाहिए।
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