शिवसेना ने तेवर तो बहुत दिखाए, पर कर लिया कम सीटों पर समझौता

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बीते दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री सुभाष देसाई के बीच बैठक हुई। जिसमें सीट बंटवारे को लेकर आपसी सहमति बन चुकी है।

लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा अब विधानसभा चुनाव की तरफ बढ़ गई हैं। महाराष्ट्र चुनाव की बात करें तो नितिन गडकरी ने साफ कर दिया था कि भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन तय हो गया है बस सीट बंटवारे को लेकर पेच अभी भी फंसा हुआ है। हालांकि इसकी जल्द ही घोषणा की जाएगी। 

गडकरी ने जल्द घोषणा की बात कर दी थी और टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सीट बंटवारे को लेकर भी आपसी सहमति बन गई है। बीते दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री सुभाष देसाई के बीच बैठक हुई। जिसमें सीट बंटवारे को लेकर आपसी सहमति बन चुकी है। 

सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर टीओआई को बताया कि 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में भाजपा 162 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि शेष 126 सीटों पर शिवसेना अपने उम्मीदवार उतारेगी। सीटों की औपचारिक घोषणा 1-2 दिन में होने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि शिवसेना लगातार 50-50 फॉर्मूल को अपनाने की बात कर रही थी।

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संजय राउत भी दबाव बनाने की कर चुके कोशिश

गडकरी ने यह बयान दिया ही था कि शिवसेना नेता संजय राउत अपनी तरफ से सीटों की पेशकश कर दी और कह दिया कि अगर आप हमें इतनी सीटें नहीं देंगे तो गठबंधन नहीं होगा। संजय राउत ने एएनआई संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि अगर पार्टी को 144 सीटें नहीं दी गईं तो फिर भाजपा के साथ गठबंधन टूट सकता है। राउत का यह बयान शिवसेना नेता और राज्य सरकार में मंत्री दिवाकर राउत के बयान के समर्थन में आया था।

राउत ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने 50-50 प्रतिशत सीटों के बंटवारे के फॉर्मूला पर फैसला हुआ था, मंत्री दिवाकर राउत का बयान गलत नहीं है। हम चुनाव साथ लड़ेंगे, क्यों नहीं लड़ेंगे।

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आखिर क्या कहा था दिवाकर राउत ने ?

हाल ही में दिवाकर राउत ने एक मराठी टीवी चैनल को दिए बयान में कहा था कि शिवसेना महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 144 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है, अगर भाजपा ने शिवसेना को बराबर सीटें नहीं दीं तो गठबंधन नहीं होगा। 

यह कोई पहला मौका नहीं है जब दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे को लेकर टकराव देखा गया हो। साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी दोनों पार्टियों के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाई थी। जिसके बाद दोनो दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। हालांकि बाद में सरकार बनाने के लिए एक बार फिर से दोनों दलों ने हाथ थाम लिया था।

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2014 में गठबंधन टूटने के बाद अकेले लड़ी थी दोनों पार्टियां

साल 2014 में गठबंधन टूटने के बाद प्रदेश की 288 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 260 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 122 सीट जीती थी। जबकि गठबंधन तोड़ शिवसेना ने 282 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा था और उन्हें महज 63 सीटों पर ही जीत का स्वाद चखने का मौका मिला था। हालांकि चुनाव परिणामों के बाद अपने मतभेद भुलाकर दोनों पार्टियों के बीच वापस गठबंधन हो गया था।

कभी फडणवीस के नाम पर बना था संशय

लोकसभा चुनाव के पहले यानि की पिछली दीवाली की पूर्वसंध्या को मीडिया के साथ एक अनौपचारिक बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जब मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर सवाल पूछा गया था कि आखिर कौन होगा महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री तो उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। गौर करने वाली बात तो यह थी कि इस बैठक में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। 

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लेकिन ऐसा क्या हुआ कि आज विधानसभा चुनाव करीब आते ही उम्मीदवार का चेहरा तय हो गया। चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करें या फिर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उनकी जबान पर नाम सिर्फ एक ही होता है देवेंद्र फडणवीस... आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब खुलकर फडणवीस के नाम को आगे बढ़ाया जा रहा है। तो आपको यह स्पष्ट कर देते हैं कि विधानसभा चुनाव से ठीक छह महीने पहले भाजपा ने लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल की वो भी तब जब पूरा विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने में लगा था। 

देवेंद्र फडणवीस ने भी विपक्षियों को सामना किया और महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा (23) और शिवसेना (18) ने मिलकर 41 सीटों पर जीत हासिल की और पार्टी के लिए इतना काफी था कि प्रदेश में देवेंद्र फडणवीस का काम बोल रहा था। 

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