Chai Par Sameeksha: उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे क्या मिलकर बदल डालेंगे महाराष्ट्रकी राजनीति?

प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने साफ तौर पर कहा कि दोनों भाइयों के गिले शिकवे कितने मिटे इस पर सवाल है। लेकिन हां, आने वाले चुनाव में दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होगी। इसलिए साथ आना उनकी मजबूरी है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता लगातार दोनों भाइयों को खारिज करती हुई दिखाई दे रही है।
प्रभासाक्षी के साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह हमने महाराष्ट्र की राजनीति और कर्नाटक कांग्रेस को लेकर चर्चा की। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की एकजुटता को लेकर प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने पूछे गए सवाल पर कहा कि क्या दोनों हमेशा के लिए साथ रहेंगे क्योंकि दोनों तो कह रहे हैं कि हम साथ रहने के लिए आए हैं लेकिन कितने दिनों तक साथ रहेंगे, यह सवाल बना हुआ है। इसके साथ ही नीरज दुबे ने कहा कि जीरो प्लस जीरो, जीरो ही होता है और इसलिए महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।
नीरज दुबे ने यह दावा किया कि भले ही दोनों भाई एक साथ हुए हैं लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति को, महाराष्ट्र के लोगों को भाषा के नाम पर बांट दिया है। हर कोई एक साथ रहना चाहता है। लेकिन मराठी को लेकर महाराष्ट्र में लगातार कुछ पार्टी के लोगों के द्वारा गुंडागर्दी की जा रही है जो कि कहीं ना कहीं बिल्कुल बर्दाश्त के योग्य नहीं है। नीरज दुबे ने कहा कि महाराष्ट्र में जहां पूरी फिल्म इंडस्ट्री है, वहां से अगर हिंदी का विरोध किया जा रहा है तो यह कतई लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
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उन्होंने साफ तौर पर कहा कि दोनों भाइयों के गिले शिकवे कितने मिटे इस पर सवाल है। लेकिन हां, आने वाले चुनाव में दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होगी। इसलिए साथ आना उनकी मजबूरी है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता लगातार दोनों भाइयों को खारिज करती हुई दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि ठाकरे ब्रदर की ओर से हिंदी पर मराठी की जीत उत्सव मनाया गया। नीरज दुबे ने कहा कि यह कतई सही नहीं है। यह भाषा के जीत नहीं बल्कि यह आपकी बांटने वाली राजनीति के जीत है। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे राज ठाकरे हो या उद्धव ठाकरे, दोनों ही बाला साहब ठाकरे के राजनीतिक विरासत का नेतृत्व नहीं करते हैं।
कर्नाटक को लेकर चल रही सियासी चर्चाओं पर भी हमने नीरज दुबे की राय जानना चाहा। नीरज दुबे ने कहा कि डीके शिवाकुमार की जो आकांक्षा है वह जायज भी है। डीके शिवाकुमार पार्टी के लिए मेहनत करते हैं। डीके शिवाकुमार पार्टी के लिए संकटमोचक है। हर संकट में वह पार्टी के लिए खड़े रहते हैं। कहीं भी किसी भी राज्य में पार्टी के भीतर कोई समस्या आती है तो वह सबसे आगे रहते हैं। डीके शिवाकुमार पुराने कांग्रेसी हैं। कर्नाटक में वह कांग्रेस को मजबूत करते रहे हैं। ऐसे में अगर वह सीएम बनने की आकांक्षा रखते हैं तो इसमें गलत क्या है। डीके शिवाकुमार को इस बात का मलाल जरूर रहता है कि जब भी सीएम की बात आती है तब सिद्धारमैया बाजी मार ले जाते हैं। जबकि पार्टी के लिए मैं लगातार काम करता हूं। सिद्धारमैया कांग्रेसी नहीं है। वह किसी दूसरे पार्टी से आए हैं। बावजूद इसके सिद्धारमैया पर आलाकमान का विश्वास है। नीरज दुबे ने कहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष है वह भी डीके शिवकुमार के साथ है। लेकिन कांग्रेस सिद्धारमैया के सामने क्या मजबूरी है, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
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