सर्वाधिक विवादास्पद राज्यपाल और उपराष्ट्रपति रहे हैं धनखड़

जगदीप धनखड़ 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। इस दौरान उनका हमेशा सीएम ममता बनर्जी से टकराव बना रहा। धनखड़ ने कई बार सीएम ममता बनर्जी और उनकी सरकार की आलोचना की। धनखड़ ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार और शासन की विफलता के आरोप लगाए।
कार्यकाल समाप्ति से दो साल पहले उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ का कार्यकाल सर्वाधिक विवादों से भरा रहा है। देश में इतने विवाद उपराष्ट्रपति और राज्यपाल पद पर रहते हुए किसी के साथ नहीं जुड़े, जितने धनखड़ के नाम दर्ज हैं। इस पद पर रहते हुए धनखड़ पर कई तरीके के आरोप लगे। उपराष्ट्रपति पद से पहले पश्चिम बंगाल में राज्यपाल रहते हुए भी धनखड़ विवादों से घिरे रहे। केंद्र की भाजपा सरकार ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने वाले धनखड़ को ईनाम के तौर पर उपराष्ट्रपति पद से नवाजा था। इसके बावजूद कि धनखड़ का न तो भारतीय जनता पार्टी और न ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कभी गहरा सरोकार रहा।
जगदीप धनखड़ 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। इस दौरान उनका हमेशा सीएम ममता बनर्जी से टकराव बना रहा। धनखड़ ने कई बार सीएम ममता बनर्जी और उनकी सरकार की आलोचना की। धनखड़ ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार और शासन की विफलता के आरोप लगाए। उनके इस रुख को विपक्ष ने पक्षपातपूर्ण माना, क्योंकि एक संवैधानिक पद पर रहते हुए उनकी टिप्पणियां सरकार के खिलाफ थीं। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ का विपक्षी दलों के साथ रिश्ता हमेशा तनावपूर्ण रहा। विपक्ष ने उन पर पक्षपात और सरकार के पक्ष में बोलने का आरोप लगाया। राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में धनखड़ पर पक्षपात के आरोप लगे।
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विपक्षी इंडिया गठबंधन ने आरोप लगाया कि धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही में पक्षपात किया और भाजपा सदस्यों को प्राथमिकता दी जबकि विपक्ष की आवाज को दबाया। विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए उपराष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम करार दिया था। देश में ऐसा पहली बार हुआ जब विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। हालांकि इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल सकी। विपक्षी दलों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और वाम दलों के 60 से ज्यादा सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 67(ब) के तहत धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव में उन्हें सरकार का प्रवक्ता कहा गया और निष्पक्षता की गंभीर कमी बताई गई।
जनवरी 2023 में धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की मूल संरचना सिद्धांत के पुनरावृत्ति के संदर्भ में बयान दिया था, जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया था। उन्होंने कहा था कि संसद के बनाए कानूनों को अगर अदालत रोक देती है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा होगा। विपक्ष ने उपराष्ट्रपति के बयान पर केंद्र सरकार पर हमला बोला। विपक्ष ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया। जस्टिस वर्मा के घर पर कैश बरामदगी मामले में धनखड़ के बयान के बाद भी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को लेकर बहस छिड़ गई थी धनखड़ ने कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द नहीं किया होता तो बात कुछ अलग होती। गौरतलब है कि एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर 2020 दिसंबर में भी धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संसद की संप्रभुता से समझौता है और जनादेश का अपमान है। मार्च 2023 में धनखड़ ने शैक्षणिक संस्थानों और छात्र राजनीति पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा था कि कुछ विश्वविद्यालय देश विरोधी विचारधाराओं की शरणस्थली बन चुके हैं। उपराष्ट्रपति के इस बयान को जेएनयू और कुछ अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की ओर इशारा माना गया। विपक्षी दल, जैसे सीपीआई और सीपीएम ने उपराष्ट्रपति के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उपराष्ट्रपति की यह भाषा संघी एजेंडे की झलक देती है। छात्र संगठनों ने धनखड़ से बयान वापस लेने की मांग की थी। किसान आंदोलन के दौरान जगदीप धनखड़ ने किसानों की आलोचना की। उन्होंने कहा था कि किसान आंदोलन के नाम पर सड़कों पर बैठ कर राष्ट्र को बदनाम कर रहे है, वे किसान नहीं है। धनखड़ की इस टिप्पणी पर किसान संगठनों और खाप संगठनों ने आपत्ति जताई। अक्टूबर 2024 में उन्होंने सीबीआई और ईडी के समर्थन में बयान दिया था। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा था कि, सीबीआई और ईडी पर सवाल उठाना भारत के न्यायिक तंत्र को कमजोर करता है। उनके इस बयान को विपक्षी दलों ने जांच एजेंसियों की मनमानी कार्रवाई का समर्थन के तौर पर माना।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश द्वारा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव 27 मार्च 2025 को लाया गया। इस विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव को धनखड़ ने खारिज कर दिया। अमित शाह ने आरोप लगाया था कि यूपीए शासनकाल में पीएमएनआरएफ (प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) पर सोनिया गांधी का नियंत्रण था। धनखड़ ने एक प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए इसे सत्यापित बयान बताया। अगस्त 2024 में महिला गरिमा पर बहस के दौरान राज्यसभा में समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने धनखड़ की बोलने की शैली और हाव-भाव पर आपत्ति जताई। बच्चन ने कहा कि उनकी टोन अनुचित है। इसके जवाब में धनखड़ ने कहा कि आप सेलिब्रिटी हो सकते हैं लेकिन सदन की मर्यादा समझिए।
दिसंबर 2023 में उपराष्ट्रपति धनखड़ पर अधिवेशन में विपक्षी सांसदों को रोकने का आरोप लगा था। विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि संसद के शीत सत्र में विपक्षी सांसदों के साथ पक्षपात किया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा था कि यह उपराष्ट्रपति नहीं, भाजपा प्रवक्ता की तरह बर्ताव कर रहे हैं। सभापति धनखड़ संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सदन की कार्यवाही का संचालन करते हुए लोकतंत्र को खतरा वाला बयान दिया। जिसे लेकर जमकर विवाद हुआ। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग लोकतंत्र को खत्म करने में लगे हैं और उन्हें संसद में नहीं देशद्रोहियों के कटघरे में होना चाहिए। उपराष्ट्रपति धनखड़ का यह बयान इशारे के तौर पर विपक्ष की संसद में बहिष्कार रणनीति के संदर्भ में दिया गया। कई विपक्षी नेताओं ने असहमति जताते हुए कहा था कि यह लोकतंत्र में असहमति को दबाने की कोशिश है।
धनखड़ अपने कार्यकाल के दौरान संवैधानिक संस्थानों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर अपनी टिप्पणियों के लिए भी चर्चा में रहे। उन्होंने आरएसएस को वैश्विक थिंक टैंक और राष्ट्र निर्माण में निर्विवाद भूमिका वाला संगठन बताया, जिसे विपक्ष ने भाजपा के प्रति उनकी निष्ठा के रूप में बताया। राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा चुनाव के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ के बार-बार राजस्थान दौरे को लेकर आपत्ति जताई थी। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा था कि शेखावत साहब भी उपराष्ट्रपति बने थे। लेकिन उन्होंने कहा था कि राजस्थान मेरा घर है। यहां कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा। जबकि उपराष्ट्रपति धनखड़ पूरे प्रोटोकॉल के तहत राजस्थान के दौरे पर आ रहे हैं।
गहलोत ने उपराष्ट्रपति धनखड़ पर तंज कसते हुए कहा था कि आप उपराष्ट्रपति हैं। आपका स्वागत है। लेकिन इस तरीके से बार-बार राजस्थान में अपना दौरा करेंगे तो, जनता तो सब समझती है। इस दौरे को करने की क्या तुक हैं। जनता समझती है। राजस्थान में चुनाव है, इसलिए उपराष्ट्रपति भी सक्रिय हैं। संविधान में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों के लिए विशेष प्रावधान और सम्मान है। सवाल यह है कि इन प्रावधानों और सम्मान के विपरीत पदों को विवादित बनाने से इन पदों की गरिमा कैसे बनी रहेगी, यह इन पदों पर आसीन लोगों के विचारणीय प्रश्न है।
- योगेन्द्र योगी
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