यूपी भाजपा की पहली पीढ़ी अब राजभवनों की शान बढ़ा रही

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अंकित सिंह । Jul 15 2019 7:12PM

कल्याण सिंह पिछड़े वर्ग की राजनीति के विशेषज्ञ माने गए तो लालजी टंडन भाजपा के कोर वोटर बनिया को साधने में कामयाब रहते थे। कलराज मिश्र और केसरीनाथ त्रिपाठी ब्राह्मण राजनीति के खवैया बने।

कल्याण सिंह, कलराज मिश्र, केसरीनाथ त्रिपाठी और लालजी टंडन यह चार नाम ऐसे हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा को ना सिर्फ संवारा है बल्कि सत्ता के शिखर तक पहुंचाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है। राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा की इस पीढ़ी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में अलग-अलग जिम्मेदारियां संभालीं। जानकार मानते हैं कि कल्याण सिंह जहां हिन्दुत्व की राजनीति के साथ-साथ पिछड़े वर्ग को भाजपा से जोड़ने में सफल हुए तो कलराज मिश्र संघ और पार्टी के बीच में एक सेतु की तरह काम करते रहे। केसरीनाथ त्रिपाठी भाजपा के लिए गठबंधन की सरकार में संटक मोचक हुआ करते थे तो लालजी टंडन अटल-आडवाणी के निर्देशों का पार्टी में अमल करवाते थे। इन चारों ने राम मंदिर के पक्ष में हमेशा खुलकर बोला और आज भी इसके पक्ष में पैरवी करते रहते हैं। इन चार बड़े नेताओं के जरिए भाजपा उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण को भी साधने में कामयाब रही। कल्याण सिंह पिछड़े वर्ग की राजनीति के विशेषज्ञ माने गए तो लालजी टंडन भाजपा के कोर वोटर बनिया को साधने में कामयाब रहते थे। कलराज मिश्र और केसरीनाथ त्रिपाठी ब्राह्मण राजनीति के खवैया बने। 

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2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उत्तर प्रदेश के पहली पीढ़ी के इन नेताओं को काफी महत्व दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए कल्याण सिंह को राजस्थान जैसे बड़े प्रदश का राज्यपाल बनाया गया तो कलराज मिश्र पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर मंत्री बने। अब उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। केसरीनाथ त्रिपाठी को बंगाल जैसे भाजपा के लिए महत्वाकांक्षी राज्य का राज्यपाल बनाया गया तो लालजी टंडन को संगठन में ईमानदारी के काम करने का ईनाम देते हुए बिहार का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। हां, इन चारों की एक खासियत रही और वह यह है कि इस सभी ने केंद्रीय स्तर पर हुए भाजपा में बदलाव को सहर्ष स्वीकार किया। अन्य पूराने नेता ने जहां समय-समय पर मोदी-शाह को लेकर प्रतिक्रियाएं देते रहते थे पर इन चारों ने इससे दूरी बनाए रखी। चलिए आपको इनके बारे में बताते हैं।

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कल्याण सिंह- 1932 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे कल्याण सिंह ने बीए-एलएलबी की पढ़ाई की है। छात्र जीवन के समय में ही राजनीति की तरफ झुकाव हुआ और वह भारतीय जनसंघ से जुड़ गए। 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और 1980 तक बने रहे। 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और वह मुख्यमंत्री बने। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 1997 में वह दोबारा मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1997 में, वह फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने और वर्ष 1999 तक पद पर बने रहे। मतभेदों के कारण उन्होंने भाजपा छोड़कर 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' नाम की अपनी अलग पार्टी बना ली। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर वह भाजपा में वापस आ गए और 2004 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने। 2009 के चुनावों में उन्होंने एक बार फिर भाजपा से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी। इसी साल वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 2013 में भाजपा में फिर से उनकी वापसी हुई और 2014 में राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए। 

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कलराज मिश्र- उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में एक जुलाई 1941 को जन्मे कलराज मिश्र भाजपा के बड़े नेता माने जाते हैं। 1963 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के तौर पर वह गोरखपुर में थे और यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। कलराज मिश्र को संगठन में कार्य करने का अच्छा-खासा अनुभव है। वह भाजयुमो के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। वह 1978, 2001 और 2006 में तीन बाद राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। वह तीन बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के भी सदस्य रहे हैं। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री पद का जिम्मा संभाल चुके हैं। एक समय तो यह मुख्यमंत्री पद की रेस में भी थे। वह उत्तर प्रदेश भाजपा का कमान भी संभाल चुके हैं। 2012 में उन्होंने पहली बार पूर्वी लखनऊ से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता भी। 2014 के आम चुनाव में पार्टी ने देवरिया से टिकट दिया और 365386 वोटों से जीत दर्ज लोकसभा पहुंचे। मोदी सरकार में मंत्री बने। 75 वर्ष की आयु सीमा पार करने के बाद खुद ही मंत्रीपद से हटने के बात कही और हट भी गए। पार्टी के लिए काम करते रहे। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रचार भी किया। हरियाणा के चुनाव प्रभारी भी बनाए गए। 

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केसरी नाथ त्रिपाठी- इलाहाबाद में जन्मे केसरी नाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के बड़े भाजपा नेताओं में से एक हैं। केसरी नाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन बार अध्यक्ष रहे हैं जबकि पांच बार विधायक रहे हैं। 1977-1979 तक जनता पार्टी की सरकार में वह मंत्री भी रहे। केसरी नाथ त्रिपाठी भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार में एक संकटमोचक की भूमिका निभाते थे। इन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में कई किताबें भी लिखी हैं। 2014 में वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने जबकि वह बिहार और मिजोरम के भी राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभाल चुके है। ममता बनर्जी इन पर लगातार भाजपा का एजेंडा चलाने का आरोप लगाती रहती हैं पर वह मजबूती से डटे हुए है। इन्हें विधि विशेषज्ञ माना जाता है और सरकार गठन के समय इसका पूरा फायदा भाजपा को होता है।  

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लालजी टंडन- जब-जब इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र होगा तब-तब लालजी टंडन का नाम आएगा। 1935 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मे लालजी टंडन अटल बिहारी वाजपेयी के सांसद प्रतिनीधि हुआ करते थे। वह दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे और 1990-96 तक सदन के नेता बने रहे। इसके बाद वह तीन बार 1996-2009 तक विधान सभा के सदस्य रहे और 2003-07 के बीच विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। वह कल्याण सिंह और मायावती की सरकार में कई मंत्रालयों का जिम्मा भी संभाल चुके हैं। 2009 में उन्होंने लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। 2018 में इन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से इनके रिश्ते हमेशा मधुर रहे हैं चाहे वह अटल-आडवाणी का वक्त हो या फिर मोदी-शाह का। फिलहाल इनके बेटे आशुतोष टंडन योगी सरकार में मंत्री हैं।  

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उत्तर प्रदेश के और भी बड़े नेता जैसे कि बेबी रानी मौर्य, सत्यपाल मलिक, ओम प्रकाश कोहली और गंगा प्रसाद भी क्रमश: उत्तराखंड, गुजरात और सिक्किम के राज्यपाल के तौर पर अपनी-अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं का खासकर एक ही पीढ़ी के नेताओं का राज्यपाल बनाया जाना राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यजनक भी लग रहा है। कुछ का मानना है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य के बड़े नेताओं को महत्व नहीं दे रही है तो कुछ का मानना है कि इन नेताओं के लिए पार्टी में कोई कार्य बचा नहीं है। वजह चाहे जो भी हो पर यह जरूर कहा जा रहा है कि भाजपा संगठन के लिए काम करने वाले अपने नेताओं को ईनाम दे रही है। 

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